भय, श्राप या परंपरा: UP के इस गांव की महिलाएं नहीं मनातीं करवाचौथ, व्रत रखने पर उजड़ जाता है सुहाग
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भय, श्राप या परंपरा: UP के इस गांव की महिलाएं नहीं मनातीं करवाचौथ, व्रत रखने पर उजड़ जाता है सुहाग

हिंदी पंचांग के मुताबिक, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ व्रत (Karwa Chauth 2021 Date) रखा जाता है. इस बार करवा चौथ 24 अक्टूबर रविवार को मनाया जाएगा.

 मथुरा के सुरीर गांव में बना सती का एक मंदिर.

कन्हैया लाल शर्मा/मथुरा: हिंदी पंचांग के मुताबिक, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ व्रत (Karwa Chauth 2021 Date) रखा जाता है. इस बार करवा चौथ 24 अक्टूबर रविवार को मनाया जाएगा. करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि एक ऐसी जगह भी है जहां करवा चौथ का पर्व आते ही गांव में सन्नाटा पसर जाता है, मायूसी छा जाती है. जी हां, मथुरा जिले (Mathura) के कस्बा सुरीर (Surir) में करवा चौथ नहीं मनाया जाता है. यहां की महिलाएं सुहाग के लिए व्रत रखने में डरती हैं कि कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए. 

श्राप के चलते महिलाएं नहीं रखती हैं व्रत 
सुरीर में करवाचौथ न मनाने के पीछे एक कहानी है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, करीब डेढ़ सौ साल पहले गांव रामनगला (नौहझील) का ब्राम्हण युवक अपनी पत्‍‌नी को ससुराल से विदा कराकर सुरीर के रास्ते भैंसा-बुग्गी से गांव लौट रहा था. तभी सुरीर में क्षत्रिय समाज के लोगों ने भैंसा-बुग्गी रोक ली. बुग्गी में लगा भैंसा अपना बताते हुए विवाद खड़ा कर दिया. इस विवाद में युवक की हत्या कर दी गई. इस दिन करवाचौथ था. अपने सामने पति की मौत से गुस्साई नव विवाहिता ने मोहल्ले के लोगों को श्राप दिया कि अगर यहां किसी सुहागिन ने करवा चौथ का व्रत रखा तो उसकी तरह ही विधवा हो जाएगी. इसके बाद वह सती हो गई. 

करवाचौथ पर श्रृंगार भी नहीं करती हैं सुहागिनें
इस घटना के बाद मोहल्ले में अनहोनी शुरू होने लगी. यहां कई नव विवाहिताएं विधवा हो गईं. इसे देखकर बुजुर्गों ने इसे सती का श्राप मान लिया और गलती के लिए क्षमा मांगी. तभी से यहां की कोई महिला करवा चौथ और अहोई अष्टमी मनाना तो दूर, इस दिन पूरा श्रृंगार भी नहीं करती है. 

क्षत्रिय समाज की महिलाएं भूलकर भी नहीं रखती व्रत
सुरीर में क्षत्रिय समाज की महिलाएं खासतौर पर व्रत नहीं रखती. यहां करीब 200 से ढाई सौ परिवार क्षत्रिय समाज के हैं. क्षत्रिय महिलाओं में आज तक भय का माहौल बना हुआ है. व्रत ना रखने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है. कहा जाता है इस समाज की कई महिलाएं करवा चौथ मनाने का श्राप झेल चुकी हैं. व्रत रखने पर उनके सुहाग उजड़ गए. यही वजह है कि गांव में आज तक डर का माहौल बना हुआ है.

"परंपरा को तोड़ने कि हिम्मत किसी में नहीं" 
यहां रहने वाली ओमवती देवी कहती हैं कि वह करवा चौथ के दिन व्रत नहीं रखतीं, बल्कि अपने परिवार की सलामती पर विश्वास रखती हैं. शांतिदेवी ने कहा कि सती माता अब श्राप नहीं, आशीर्वाद देती हैं. रही बात करवा चौथ और अहोई अष्टमी न मनाने की, तो वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं है.

अपने चांद को छलनी में देखने की आस अधूरी
सुरीर के मोहल्ला बाघ में ब्याह कर आई नव विवाहिताओं का पहला करवा चौथ है. अपने-अपने सुहाग की सलामती के लिए सभी व्रत रखना तो चाहती हैं, लेकिन जब उनके ससुराल वालों ने उन्हें यहां की परंपरा बताई तो सब पीछे हट गईं. उन्होंने व्रत रखने का ख्याल दिमाग से निकाल दिया. अपनी पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखना एक सपना बन कर रह गया. 

सुरीर और रामनगला में रोटी बेटी के संबंध खत्म
रामनगला में रहने वाली महिला सितारा देवी ने बताया कि सती वाली घटना के बाद आज भी किसी भी जाति या धर्म के लोगों के सुरीर गांव से रोटी-बेटी के संबंध खत्म होते चले जा रहे हैं. आज भी राम नगला की महिलाएं सुरीर में कहीं खाना तो दूर, पानी तक नहीं पीती हैं. 

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