कानून वापसी के बेहद बड़े फैसल से साफ है कि बीजेपी ने इस मामले के चलते यूपी की सत्ता किसी भी सूरत में हाथ से जाने नहीं देना चाहती है.
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लखनऊ: प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कृषि कानून वापस लेने के फैसले को देखते हुए इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए, कि उनका यह कदम यूपी चुनावों को हर हाल में जीतने की प्रतिबद्धता दिखाता है. किसान कानूनों को लेकर उपजी किसानों की नाराजगी को यूपी चुनाव जीतने के बीजेपी के लक्ष्य में बड़ा रोड़ा माना जा रहा था और विरोधी पार्टियां सपा और बसपा इसका लाभ उठाने की तैयारी में थे, लेकिन इस कानून वापसी के मास्टरस्ट्रोक से भाजपा के विपक्षियों के सभी समीकरण उलट पुलट करके रख दिए हैं.
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पश्चिमी यूपी सबसे जरूरी
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी यूपी हिस्से में इस मुद्दे का काफी प्रभाव था. लखनऊ से सटे बाराबंकी, सीतापुर और रायबरेली में भी इससे नुकसान हो सकता था. पश्चिमी उत्तरप्रदेश के 15 ज़िलों की 73 सीटों पर भाजपा प्रभावी है, पर इस कानून के चलते किसानों की नाराजगी भाजपा से स्पष्ट दिख रही थी. हालांकि यूपी में हुए पिछले तीन चुनावों 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिम यूपी से बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी और यह इलाका उसके लिए काफी इंपोर्टेंट था. 2017 में तो वेस्ट यूपी के 136 विधानसभा सीटों में से 109 सीटों पर बीजेपी काबिज रही थी, पर अब किसान आंदोलन उसके लिए चिंता की वजह बन गया था और इसके लिए कोई ठोस हल खोजना जरूरी था. कानून वापसी के बेहद बडे फैसल से साफ है कि बीजेपी ने इस मामले के चलते यूपी की सत्ता किसी भी सूरत में हाथ से जाने नहीं देना चाहती है.
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ध्रुवीकरण समीकरण फिर जिंदा
वेस्ट यूपी में जाट-मुस्लिम दो बडे वोट बैंक हैं. 2013 से पहले जाट राष्ट्रीय लोकदल के लॉयल वोट बैंक थे, पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट-मुस्लिम में आपस में बिखराव आया था. इसका सीधा फायदा 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिला. बीजेपी यहां ध्रुवीकरण के बल पर जीत हासिल करने लगी, लेकिन हालिया किसान आंदोलन के बाद से स्थितियां बदल गई थी और किसान मुद्दे पर जाट-मुस्लिम एकता का समीकरण फिर बन गया थाा, जो राजनैतिक दृष्टि से बीजेपी के विपक्षी दलों आरएलडी, सपा और कांग्रेस को फेवर कर सकता था. भाजपा ने किसान कानून वापस लेकर अपने जिताऊ ध्रुवीकरण समीकरण को जिंदा कर दिया है.
क्यों था वेस्ट यूपी में यह मुद्दा बीजेपी की चिंता
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