लखनऊ: यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का आज 82 साल की आयु में निधन हो गया है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है. वहीं, नेताजी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. वहीं, सोशल मीडिया पर लगातार उनसे जुड़ी अनकही कहानियां और किस्से तैर रहे हैं. आइए बताते हैं आपको गेस्ट हाउस कांड की कहानी जिसने नेताजी और बहन मायावती को एक-दूसरे का दुश्मन बना दिया.


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दोनों कद्दावर नेताओं के बीच मनमुटाव बढ़ा. फिर क्या था 2 जून, 1995 को बीएसपी ने सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया, जिसके कारण सरकार अल्पमत में आ गई. इसके बाद सरकार को बचाने के लिए नेताजी ने जोड़-घटाव किया. सियासी घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था, लेकिन अंत तक बात नहीं बनी. तब लखनऊ के मीराबाई मार्ग के सरकारी गेस्ट हाउस में सपा के नाराज कार्यकर्ता और विधायक पहुंचे. उसी गेस्ट हाउस के कमरा नंबर-1 में बहन मायावती भी ठहरी हुई थीं.


मायावती लखनऊ के उसी गेस्ट हाउस के कमरा नंबर -1 में मीटिंग कर रही थीं. दिन था 2 जून 1995. कमरे में बहन जी पार्टी के विधायकों के साथ मीटिंग कर रहे थीं. कहा जाता है कि दोपहर तीन बजे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया. इस बात का जिक्र अजय बोस की किताब 'बहनजी' में मिलता है.


किताब में गेस्टहाउस की घटना का है जिक्र 
बताया जाता है कि 1995 में गेस्टहाउस कांड में जब कुछ कथित तौर पर सपा के गुंडों ने बसपा सुप्रीमो मायावती को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए थे. जैसे-तैसे मायावती ने खुद को कमरे में बंद किया. बाहर से सपा विधायक और समर्थक दरवाजे पर धक्का मारने लगे. तब बीजेपी के दबंग विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी ने अपनी जान पर खेलकर मायावती को बचाया था. शायद यही वजह थी कि खुद मायावती ब्रम्हदत्त द्विवेदी को भाई कहने लगीं. 
 
आपको बता दें कि ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के सेवक थे. उन्हें दंड भाजन बखूबी आता था. इसलिए वो एक लाठी लेकर भिड़ गए. यही वजह है कि मायावती ने भी उन्हें हमेशा  बड़ा भाई माना. इतना ही नहीं मायावती ने उनके खिलाफ कभी उम्मीदवार भी खड़ा नहीं  किया.


प्रदेश भर में मायावती भले बीजेपी का विरोध करें लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त द्विवेदी के लिए वह प्रचार करती थीं. वहीं, लखनऊ में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती और मुलायम की राहें अलग हो गई. सरकार के अल्पमत में आते ही बीजेपी ने बसपा का समर्थन किया. जिसके बाद बीजेपी के समर्थन और बसपा के 67 विधायकों के साथ मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं. इसी के साथ ही मायावती प्रदेश की पहली दलित महिला सीएम भी बन गईं. ऐसे ही धीरे-धीरे बसपा और सपा की दूरियां बढ़ी. हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव ने एक बार फिर मायावती से हाथ मिलाया और साथ ही चुनाव लड़ा, लेकिन अनुभव कुछ अच्छे नहीं रहे. 


प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए नेताजी
आपको बता दें कि 1996 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव मैनपुरी सीट से चुने गए, जिसके बाद उन्होंने संयुक्त मोर्चा की सरकार में अहम मंत्रालय संभाला. तब नेताजी देश के रक्षामंत्री बने. बता दें कि संयुक्त मोर्चा की सरकार भी लंबे समय तक नहीं चली. तब मुलायम प्रधानमंत्री की रेस में सबसे आगे थे. हालांकि, वह प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने पूरे मामले पर पानी फेर दिया.


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