आकाश शर्मा/मुरादाबाद: वैसे तो रामलीला का मंचन नवरात्र के साथ प्रारंभ होता है. विजयादमी के दिन रावण के वध के साथ रामलीला का समापन होता है. लेकिन मुरादाबाद (Moradabad) में आस्था के अलग ही रंग देखने को मिलते हैं. यहां एक रामलीला का शुभारंभ ही दशहरे के दिन होता है. 6 दिन चलने वाली इस रामलीला में अंतिम दिन रावण दहन को लेकर भी अलग मान्यता है. इस रामलीला में ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए सर्वश्रेष्ठ विद्वान रावण के दहन के बाद उनकी हड्डियां एकत्रित की जाती हैं. इसके बाद पूर्ण रूप से उनकी अस्थियां विसर्जित की जाती हैं. रामलीला कमेटी के सदस्यों के मुताबिक चूंकि रावण ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ था. इसलिए उसी के अनुसार उसके अंतिम संस्कार का कार्यक्रम किया जाता है. मुरादाबाद के मझोला थाना क्षेत्र के काशीराम नगर में इस रामलीला का आयोजन होता है. 


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कलाकारों को मिलता है मंच
रामलीला कमेटी के मुख्य आयोजकों की मानें तो दशहरे के दिन सभी पुलिस और प्रशासन की टीमें सब जगह व्यस्त होती हैं. कलाकार भी दूसरे कार्यक्रमों में शामिल रहते हैं. ऐसे में दशहरे के बाद रामलीला शुरू होने से इसकी लोकप्रियता और ज्यादा बढ़ जाती है. यही नहीं कलाकारों को भी अपनी कला दिखाने का एक से अधिक मंच मिल जाता है. 


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सामाजिक समरसता का संदेश
इस रामलीला का आयोजन पिछले 11 साल से हो रहा है. रामलीला कमेटी का कहना है कि मुरादाबाद के कलाकार देश के अलग-अलग हिस्सों में मंचन करने जाते हैं. इससे जनपद में स्थानीय कलाकारों की कमी हो जाती है. जैसे ही यह कलाकार दशहरे के बाद लौट आते हैं, वह यहां रामलीला मंचन में शामिल हो जाते हैं. रामलीला मंचन का यह कार्यक्रम लाइन पार,बुद्ध विहार, हिमगिरी क्षेत्र में रहने वाले आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बीच किया जाता है. इससे सामाजिक समरसता का संदेश भी जाता है.