आज़म खान की बहू सिदरा अदीब की जी यूपी यूके से खास बातचीत...
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रामपुर: आज़म खान (Azam Khan) की बहू सिदरा अदीब (Sidra Adeeb) के इस समय सपा (Samajwadi Party) के टिकट पर चुनाव लड़ने की काफी चर्चा है. वह बीच-बीच में आज़म खान पर लदे केसों का मुद्दा उठाकर लोगों की सिम्पेथी गेन करने का दांव भी चलती रही हैं. अभी हाल ही में ज़ी यूपी-यूके ने उनसे खास बातचीत की. पढ़िए उन्होंने क्या कहा-
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दुख: हार की खुशियां गायब
देखिए अभी दिवाली का त्योहार मनाया जा रहा है और हमारे वालिद आजम खान हमारे साथ नहीं हैं. हर त्योहार की खुशियां तभी होती हैं जब घर के बड़े साथ होते हैं. वे हर मुश्किल, हर परेशानी इस तरीके से समेट लेते हैं कि कोई एहसास भी नहीं होने देते. उनके साथ खुशियां इस तरह से मिलती हैं कि वह हमेशा याद रहती हैं. आजम खान केवल मेरे ही नहीं, उन बच्चियों के भी वालिद हैं, जिनके मां-बाप इस दुनिया में नहीं हैं. अभी दिवाली का वक्त है और अभी कुछ समय पहले ईद का वक्त भी निकला है और इस समय वे हमारे साथ नहीं हैं.
रिश्ता: यहां के लोगों ने आजम को वालिद का दर्जा दिया
हमारे पूरे परिवार को, मुझे और रामपुर वालों को इस बात का एहसास है कि वह 2 सालों से हमारे साथ नहीं हैं. हम उनसे बेहद मोहब्बत करते हैं. यहां के लोगों ने आज़म खान को अपने वालिद का दर्जा दिया है. अभी 2 साल पहले तक अब्बा जब घर पर थे, तो वह हर रामपुर वाले के घर जाते थे. उन्होंने सबके साथ दीपावली मनाई और रक्षाबंधन भी मनाया है. यहां रामपुर में उनकी कई बहनें हैं, जिन्होंने उन्हें राखी बांधी है. होली पर भी वे अपने चाहने वालों से मिलने जरूर जाते थे.
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दावा: उनकी हिम्मत पस्त नहीं हो सकती
रामपुर के लोगों को भी एहसास है कि फिलहाल उनके कायदे मिल्लत आजम खान जेल में हैं, इसलिए वे दिवाली की खुशियां नहीं मना रहे हैं. हमें इस समय दुआ की जरूरत है, आप दुआ करें कि आजम खान अपने बेटे अब्दुल्ला के साथ जल्द जेल से बाहर आएं. जिन लोगों ने सोचा है कि वे उनकी हिम्मत को पस्त कर देंगे तो उनको बता दूं कि उनकी हिम्मत कभी पस्त नहीं हो सकती. यह उन लोगों के लिए गलतफहमी है.
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याद: जब मैं उनसे मिलने सीतापुर जेल गई
मुझे वह पहली ईद याद है जब मेरे वालिद आजम खान और अब्दुल्ला को जेल में ले जाया गया था. कभी सोचा नहीं था कि ऐसा वक्त देखना पड़ेगा कि हम उन लोगों के बिना ईद मनाएंगे. उस समय मेरे बच्चे बहुत छोटे थे. वे पूछते थे कि दादा कब आएंगे, दादी कब आएंगी, चाचा कब आएंगे. उस समय हमें बड़ी तकलीफ होती थी. जब मैं पहली बार उनसे सीतापुर जेल में मिलने पहुंची तो उस मंजर को सोचकर बेहद तकलीफ होती है. जब मैं जेल के बाहर खड़ी थी तो आंखों से आंसू बहे जा रहे थे. दिल में उन आंसुओं की याद अभी भी है. जब मैंने जेल में कदम रखा और अब्बा को दूर से देखा था, उस समय मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए यही कहा था कि, बेटा मैं इस समय हार गया, यदि मैं टूट गया तो मेरे रामपुर वालों को कोई नहीं संभाल पाएगा. मेरी हिम्मत और मेरी ताकत मेरे रामपुर वाले ही हैं.
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