राजनीतिक विशेषज्ञों का यह दावा था कि अगर बीजेपी की सरकार दोबारा बनी तो विपक्षियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में माना जा रहा है कि विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए सपा और रालोद की तरफ से ये एक्शन लिए जा रहे हैं..
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Jayant Chuadhary- Chandrashekhar Meeting: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के रिजल्ट ने यह तो साफ कर दिया है कि बीजेपी प्रदेश की सबसे पसंदीदा पार्टी है और जनता फिर योगी आदित्यनाथ को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहती है. इस बार तो 'लहर' नाम की भी कोई चीज नहीं थी, क्योंकि विशेषज्ञों का यह साफ मानना था कि सपा और बीजेपी के बीच में कोई ज्यादा अंतर नहीं होगा. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी+ 270 का मार्क क्रॉस कर के सरकार बनाने की तैयारी में जुट गई और समाजवादी पार्टी+ 115 सीटें पाकर दूसरे स्थान पर रही.
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दमदार विपक्ष बनाने की है तैयारी?
जाहिर है कि 2014 की मोदी लहर ने केंद्र के साथ प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनाने में बड़ा रोल निभाया. 2 लोकसभा और 2 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने विपक्ष को भारी अंतर से हराया. विपक्षी इस बार समझ गए हैं कि योगी आदित्यनाथ की दोबारा जीत किसी लहर की वजह से नहीं, बल्कि जनता के दिलों में उनको लेकर बनी जगह की वजह से हुई है. ऐसे में विपक्षी दलों के पास सबसे बड़ी चुनौती है अपने कैडर को बचाए रखना. ऐसे में अखिलेश यादव का दिल्ली छोड़कर लखनऊ आना और फिर रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी का आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर से मिलना यह साफ कर रहा है कि इस बार विपक्ष एकजुट होकर योगी सरकार के सामने खड़ा होने वाला है.
बीजेपी के जीतने पर विपक्षियों की बढ़ेंगी मुश्किलें?
राजनीतिक विशेषज्ञों का यह दावा था कि अगर बीजेपी की सरकार दोबारा बनी तो विपक्षियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में माना जा रहा है कि विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए सपा और रालोद की तरफ से ये एक्शन लिए जा रहे हैं.
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दलित वोट बैंक को साधने की बारी अब?
दरअसल, बहुत सालों से यूपी में दलितों की पार्टी केवल बसपा को ही माना जाता था, लेकिन फिर 2014 से अभी तक में यह देखा गया कि दलित मायावती का साथ छोड़ रहे हैं. इस चुनाव में भी बसपा की हालत बुरी ही दिखी. ऐसे में जयंत चौधरी का चंद्रशेखर से मिलने की एक बड़ी वजह बताई जा रही है. अब दलित वोट बैंक के लिए एक नया चेहरा लाने की कोशिश की जा रही है. चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर आजाद का साथ छोड़ दिया था. हालांकि, अब जयंत और आजाद की मुलाकात ने फिर चर्चाओं को तेज कर दिया है, ताकि विपक्ष को मजबूत बनाया जा सके.
क्या हैं चंद्रशेखर और जयंत की मुलाकात के मायने
कहा जाता है कि जयंत चौधरी जाट वोट बैंक को ही साधते हैं. हालांकि, उन्होंने इस चुनाव के लिए किसान आंदोलन को लेकर जितनी भी मेहनत की, वह खासा रंग नहीं लाई. सपा के साथ रालोद का गठबंधन होने के बाद भी लोगों ने बीजेपी पर ही ज्यादा भरोसा जताया.
ऐसे में जयंत की कोशिश है कि वह चंद्रशेखर को दलितों का प्रमुख चेहरा बनाएं और इस वर्ग को साध सकें. मायावती के हाथों से दलितों का साथ छूटने के बाद जयंत प्रयास कर रहे हैं कि चंद्रशेखर को दलितों का चेहरा बनाकर इस वर्ग के वोट बैंक का एक बड़ा शेयर सपा गठबंधन की ओर ले लें.
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