Shri Krishna Janmashtami 2022: भगवान श्री कृष्ण का नाम इस राक्षस की वजह से पड़ा था रणछोड़, बेहद दिलचस्प है कहानी
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand1307940

Shri Krishna Janmashtami 2022: भगवान श्री कृष्ण का नाम इस राक्षस की वजह से पड़ा था रणछोड़, बेहद दिलचस्प है कहानी

Bundelkhand News: ललितपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 K.M. की दुरी पर धोर्रा क्षेत्र के जंगलों के बीचो-बीच स्थित विन्ध्याचल पर्वत श्रृंखलाएं हैं. इन्ही पर्वत के बीचों बीच बनी हैं मुचकुंद गुफाएं....

Shri Krishna Janmashtami 2022: भगवान श्री कृष्ण का नाम इस राक्षस की वजह से पड़ा था रणछोड़, बेहद दिलचस्प है कहानी

अमित सोनी/ललितपुर: यूपी के ललितपुर जिले के मंदिरों और देवालयों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami 2022) की तैयारिया जोरों पर है.   तो वहीं कृष्ण भक्त भक्ति मे लीन हैं. माखन चोर, नन्द गोपाल, मोर मुकुट धारी ऐसे तमाम नाम भगवान श्रीकृष्ण को लोग जानते हैं. लेकिन, बुंदेलखंड में कृष्ण भगवान को रणछोड़ नाम से जाना जाता है. भगवान श्री कृष्ण का यह नाम कैसा पड़ा और क्यों पड़ा? इसकी एक कहानी है. इस कहानी का साक्षी बना है बुंदेलखंड का ललितपुर जिला, जहां पर ही भगवान श्री कृष्ण एक लीला के बाद रणछोड़ जी के नाम से पुकारे गए.    

मुचकुंद के गुफाओं में देवता करते थे विश्राम 
बुंदेलखंड का ललितपुर जिले में श्री कृष्ण ने अपने पावन कदम रख कर इस जिले की धरा को पवित्र किया था.  यहां पर अपने लीलाओं में एक और नाम जुड़वाया, जिसे भक्त भगवान रणछोड़ जी के नाम से जानते हैं. ललितपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 K.M. की दुरी पर धोर्रा क्षेत्र के जंगलों के बीचो-बीच स्थित विन्ध्याचल पर्वत श्रृंखलाएं हैं. इन्ही पर्वत के बीचों बीच बनी हैं मुचकुंद गुफाएं,  जिसका उल्लेख श्रीमद भागवत महापुराण में वर्णित है. इसलिए बुंदेलखंड क्षेत्र को जुहाती क्षेत्र भी कहा जाता था. बुंदेलखंड की पावन धरती युगों-युगों से विख्यात रही है, तभी तो इन्द्र देवता और बाकी देवतागण यहां पर स्थित मुचकुंद गुफाओं में आकर कभी निवास किया करते थे.   

बुंदेलखंड के विंध्याचल पर्वत की गुफाओं का नाम ऐसे पड़ा मुचकुंद
एक बार जब स्वर्ग पर असुरों ने आक्रमण कर दिया और देवता गण इस युद्ध में परास्त होने लगे तो इन्द्र देवता ने प्रथ्वीलोक के सुर्यवंसी राजा मुचकुंद जी को जो एक अजय योद्धा थे. उनसे असुरों के खिलाफ देवताओं का युद्ध में साथ देने का आग्रह किया और स्वर्ग में आकर असुरों से  युद्ध करने के लिए कहा राजा मुचकुंद ने 12 वर्षों तक असुरों से युद्ध किया और असुरों को परस्त किया. जब देवतागण युद्ध जीत गए तो महाराजा  मुचकुंद जी ने प्रथ्वी लोक पर अपने परिवार के पास वापिस जाने को कहा तो भगवान इन्द्र देवता ने राजा मुचकुन्द बोले 'महाराज... स्वर्ग लोक के 12 वर्ष प्रथ्वी लोक के 12 युगों के बराबर होते हैं. अब प्रथ्वीलोक मे आपके परिवार का कोई भी जीवित नहीं बचा होगा'. यह सुनकर महाराज मुचकुंद बहुत दुखी हुए. युद्ध के बाद थके और दुखी राजा ने इन्द्र देवता से कहा कि 'मैं अब आराम करना चाहते हूं. तब इन्द्र देवता ने राजा मुचकुंद को बुंदेलखंड के विंध्याचल पर्वत पर जंगलों के बीच स्थित इन शांत गुफाओं मे आराम करने को भेजा. साथ ही साथ ये भी वरदान भी दिया कि राजा मुचकुन्द की जो कोई भी निंद्रा मे दखल पहुंचायेगा वो राजा मुचकुन्द की नजर पड़ने पर उसी वक्त भस्म हो जाएगा .तभी से इन गुफाओं का नाम मुचकुंद गुफा पड़ा. 

krishna janmashtami 2022: अगर आपके मन में भी है जन्माष्टमी की तारीख-पूजा-मुहूर्त और व्रत को लेकर सवाल, यहां मिलेंगे सभी जवाब

इस राक्षस की वजह से भगवान श्री कृष्ण का नाम पड़ रणछोड़ 
मुचकुंद गुफा वेत्रवती (बेतवा ) नदी के सुरम्य एवं पावन तट पर स्थित रणछोड़ धाम मंदिर महाभारत कालीन से है. ऐतिहासिक तथा पुरातत्व की दृष्टि से भी  प्रसिद्द है. भागवत गीता में वर्णित है कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा कंश के मारे जाने की खबर से  क्रोधित होकर कंश के ससुर जरासंध ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया और पराजित हुआ. जरासंध 17 वीं बार उस समय के यमन देश का राजा एवं बलशाली योद्धा देत्य कालयवन को लेकर मथुरा में युद्ध करने के लिए आया. 

भगवान श्री कृष्ण को उसने युद्ध के लिए ललकारा तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला दिखाई और रथ से कुदकर भागने लगे, कालयवन देत्य ने उनका पीछा किया श्री कृष्ण भागते भागते यहां पहुंचे. देत्य भगवान श्री कृष्ण के पीछे-पीछे दौड़ता हुआ रणछोड़ के नाम से पुकार रहा था. तभी से उनका नाम रणछोड़ पड़ा. जब श्री कृष्ण यहां पहुंचे तो उन्हें पहले से ही जानकारी थी कि मुचकुंद महाराज जी इन गुफाओं मे निंद्रा में हैं. श्री कृष्ण जी ने अपनी चुनरिया मुचकुंद जी के ऊपर ओड़ा दिए और खुद छुप गए, जब पीछा करते हुए कालयवन देत्य पहुंचा तो चुनरी ओडे़ हुए राजा मुचकुंद को भगवान श्री कृष्ण समझकर लात मारकर उठाने लगा जैसे ही महाराज मुचकुंद जी उठे तो उनकी नजर कालयवन देत्य पर पड़ी. राजा की नजर पड़ते ही देत्य कालयवन वहीं जलकर भस्म हो गया.

उसके बाद श्री कृष्ण वहां सेनिकलकर महाराजा मुचकुंद के सामने आये राजा ने भगवान श्री कृष्ण को देख उनसे विनती की और आग्रह किया, हे प्रभु आप अपना निवास यहीं मेरे पास बनाएं,  जिससे आपकी इस पावन लीला को आपके भक्तगण हमेशा स्मरण करे. इसलिए वेत्रवती के तट पर राजा मुचकुंद द्वारा श्री कृष्ण की दिव्य मूर्ति की स्थापना की गयी. तभी से उनका और इस मंदिर का नाम रणछोड़ भगवान रखा गया. तब से अब तक लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी माने जाने वाली यह रणछोड़ भगवान की मूर्ति यहीं पर विराजमान है जिनके दर्शन के लिये दूर दराज से भक्तगण आते हैं और पुण्य व शान्ति प्राप्त करते हैं.

Punjabi Song Viral Video: पंजाबी गाने का लड़की पर चढ़ा ऐसा खुमार, जीम में लगाने लगी ठुमके

Trending news