Stevia Plant Benefits: शुगर के पेशेंट के लिए ये पौधा है रामबाण, चीनी को भूल ही जाएंगे
स्टीविया कोई आम पौधा नहीं है. यह मीठे का प्राकृतिक स्रोत है. अगर आप भी मीठे के प्राकृतिक विकल्प की तलाश कर रहे हैं, तो स्टीविया आपके लिए सबसे सही विकल्प है. इसमें कई सारे बेहतर गुण हैं जिसे जानकर आप चौक जाएंगे. इसका प्रयोग भारत में ही नहीं पूरे विश्व में बड़ी मात्रा में हो रहा है.
Stevia Benefits For Diabetes: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे पास अपने लिए न तो समय होता है और ना मन की शांति. ऐसे में स्वस्थ रहना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती बन गई है. अस्त व्यस्त दिनचर्या के चलते शुगर जैसी बीमारी होना आम बात है, लेकिन नियमित दिनचर्या का पालन और कुछ जरूरी उपाय करके हम शुगर की समस्या से बच सकते हैं. वहीं, अगर आपका ब्लड शुगर लेवल ज्यादा हो गया है, तो उसमें भी लाभ होगा.
ऐसे ही एक गुणकारी पौधे के बारे में हम आपको बताने वाले हैं. जिसे हम स्टीविया (Stevia) के नाम से भी जानते हैं. स्टीविया कोई आम पौधा नहीं है. अगर आप भी मीठे के प्राकृतिक विकल्प की तलाश कर रहे हैं, तो स्टीविया आपके लिए सबसे सही विकल्प है. इसमें कई सारे बेहतर गुण हैं जिसे जानकर आप चौक जाएंगे. इसका पूरे विश्व में बड़ी मात्रा में हो रहा है.
प्राकृतिक स्वीटनर के तौर पर किया जाता है इस्तेमाल
आपको बता दें कि ठंड के मौसम में दक्षिण अमेरिकी देशों जैसे ब्राजील में स्टीविया पौधे की पत्तियों का इस्तेमाल प्राकृतिक स्वीटनर के तौर पर किया जाता रहा है. आज स्टीविया पूरे विश्व में पाया जाता है. बता दें कि मीठे के प्राकृतिक विकल्प के तौर पर स्टीविया काफी मशहूर है. स्टीविया खास तरह के पौधे से प्राप्त किया जाता है. स्वीटनर स्टेविया, रिबॉदियाना के पौधे से प्राप्त होता है. खास बात यह है कि मीठा पन इसमें प्राकृतिक रूप से पाया जाता है.
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इस पौधे में नहीं होते पोषक तत्व
आपको बता दें कि स्टीविया प्राकृतिक स्वीटनर को होता है, लेकिन इसमें पोषक तत्व नहीं होते. जिसका मतलब बिल्कुल साफ है. यह आपकी डाइट में कैलोरी की मात्रा बढ़ाता नहीं है. इसी वजह से ये चीनी की जगह एक अच्छा विकल्प हो सकता है.
स्टीविया के प्रोडक्ट, बाजार में उपलब्ध
आपको बता दें कि स्टीविया के प्रोडक्ट हमारे आसपास बाजार में भी उपलब्ध हैं. जिसमें स्टीविया टैबलेट और पाउडर के कई ब्रैंड मौजूद हैं. इनमें से अधिकतर चखने के थोड़ी देर के बाद कड़वे लगने लगते हैं. जिसकी वजह इसमें पाया जाने वाला स्टेवियोसाइड है. अगर आपको स्वाद न पसंद आए तो आप सिर्फ़ रिबॉडियोसाइड का इस्तेमाल करें. यह स्वाद में कड़वा नहीं होता.
चीनी से 200 गुणा ज्यादा मीठा होता है स्टीविया
दरअसल, स्टीविया को प्राकृतिक स्वीटनर के तौर पर भी जाना जाता है. इसलिए चीनी से इसकी तुलना होना बड़ी आम बात है. जानकारी के मुताबिक, स्टीविया साधारण चीनी से 200 गुणा अधिक मीठा होता है. क्योंकि इसमें स्टेवियोसाइड और रिबॉडियोसाइड नाम के दो मिश्रण होते हैं. इस वजह से यह पौधा प्राकृतिक स्वीटनर का काम कर पाता है.
हम घरों में भी चाय और कॉफी में चीनी की जगह स्टीविया का इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, यह जरूरी है कि इस्तेमाल से पहले इसकी मात्रा का जरूर ध्यान दें. जानकारी के मुताबिक, एक चुटकी स्टीविया से आपको एक चम्मच चीनी के बराबर मीठापन मिलता है.
ऐसे करें प्रयोग
स्टीविया का इस्तेमाल करना बेहद आसान है. आप इसके पाउडर को नाश्ता सीरियल या दही में भी डालकर खा सकते हैं. आप इसका इस्तेमाल आइस्क्रीम या फलों से बने डेजर्ट बनाने में कर सकते हैं.
डायबिटीज के रोगों पर स्टीविया का सकारात्मक प्रभाव
आपको बता दें कि स्टीविया को लेकर कई शोध भी हुए. ऐसा ही एक अध्ययन साल 2004 में किया गया. इस अध्ययन में पाया गया है कि डायबिटीज टाइप 2 से ग्रसित लोगों पर इसका अच्छा असर हुआ है. स्टिवियोसाइड का सेवन करने से ऐसे मरीजों के ब्लड ग्लूकोज लेवल में कमी आई.
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साल 2015 में इसके इस्तेमाल को लेकर मिली मंजूरी
आपको बता दें कि भारत में साल 2015 में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया, एफएसएसएआई ने स्टीविया को स्वीटनर के तौर पर इस्तेमाल को लेकर मंजूरी दी थी.
इसके इस्तेमाल के प्रति डेयरी कंपनियों की दिलचस्पी
आपको बता दें कि एफएसएसएआई ने दूध से बने डिजर्ट, दही, कार्बोनेटेड वॉटर (सोडा), फ्लेवर्ड ड्रिंक, जैम, रेडी टू इट सीरियल्स में इसके इस्तेमाल की मंज़ूरी दी थी. फिलहाल, अमूल और मदर डेयरी ने भी चीनी की जगह स्टीविया के इस्तेमाल में दिलचस्पी दिखाई है.
डिस्क्लेमरः इस जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता सुनिश्चित करने का हर सम्भव प्रयास किया गया है. हालांकि इसकी नैतिक जिम्मेदारी ज़ी न्यूज़ हिन्दी की नहीं है. हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें. हमारा उद्देश्य आपको जानकारी मुहैया कराना मात्र है.
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