कहा जाता है कि 'नाम में क्या रखा है', पर बात जब मुलायम सिंह यादव जैसे नेता की हो रही हो तो फिर मानना पड़ेगा कि नाम में बहुत कुछ रखा है. मुलायम ने अपनी जिंदगी में कुछ ऐसे चुनाव लड़े, जिसमें उनका खुद का नाम ही उनके लिए सिरदर्द बन गया. हुआ यूं कि मतदाताओं को कन्फ्यूजन में रखने के लिए कई चुनावों में उनके खिलाफ उनके ही नाम वाले प्रत्याशी उतारे गए. ऐसे हालात में मुलायम को खुद मुलायम से ही चुनाव के मैदान में लड़ना पड़ा.


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ऐसा मौका मुलायम के साथ सबसे पहली बार 1989 के चुनाव में आया जब जसवंत नगर विधानसभा के लिए लड़ रहे चुनाव के दौरान उन्हें उन्हीं की नाम राशि वाले व्यक्ति मुलायम सिंह यादव ने चुनौती पेश की. तब मुलायम को मतदाताओं को यह बताने के लिए कि वही असली मुलायम सिंह यादव हैं, अपने नाम में अपने पिता का नाम सुघड़ सिंह जोड़ना पड़ा और बैलेट पेपर पर उनका नाम छपा मुलायम सुघड़ सिंह यादव.


इस साल में वह जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे और उनके आगे मुलायम नाम का जो अन्य उम्मीदवार उतारा गया था वह निर्दलीय खड़ा था. मुलायम को मुलायम के नाम से चुनौती देने की उनके विरोधियों की यह तरकीब काम नहीं कर पाई और निर्दलीय मुलायम केवल 1032 वोट हासिल कर पाया. मुलायम सिंह यादव ने उस समय 64.5 हजार वोटों से बड़ी जीत हासिल की थी.


चिंता पूरे चुनाव में बनी रही
आज के सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव आगे दो साल बाद 1991 में भी जसवंतनगर सीट से ही चुनाव लड़े, पर पार्टी जनता दल नहीं इस बार जनता पार्टी थी. इस चुनाव  में भी उनके आगे पिछले चुनाव जैसी स्थिति बनी. यहां भी मुलायम  सामने थे, पर वह उन्हें कोई बड़ी चुनौती नहीं दे पाए और निर्दलीय लड़े यह मुलायम खुद के नाम केवल 328 वोट ही हासिल कर पाए.


इस चुनाव में भी मुलायम को उनके नाम वाले प्रतिद्वंदी ने कोई टक्कर तो नहीं दी पर उसके नाम पर वोट कटने की चिंता मुलायम सिंह के सिर पर पूरे चुनाव में सवार रही. आखिरकार जीत के बाद ही उन्हें राहत मिली. इसी चुनाव में ही यूपी के मैदान में एक अन्य मुलायम सिंह नजर आये, लेकिन वे सपा के जनक मुलायम के आगे नहीं बल्कि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में बरौली विधानसभा सीट से लड़े. ये वाले मुलायम 218 वोट ही हासिल कर पाये.


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एक साथ तीन-तीन मुलायम
मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1993 के चुनावों में एक साथ तीन सीटों से खंब ठोका. वह इटावा जिले की जसवंतनगर, फिरोजाबाद की शिकोहाबाद और एटा जिले की निधौली कलां सीटों से लडे. इस बार वे अपनी नई बनाई पार्टी सपा से चुनाव लड़े. इस चुनाव में तो स्थिति बिल्कुल ही अजीब थी. तीनों ही सीटों पर मुलायम को उनके ही नाम वाले प्रतिद्वंदी चुनौती देने तैयार थे. बहुत संभव है कि मुलायम के हमनाम उम्मीदवारों को यह सोचकर मैदान में उतारा जाता होगा कि कुछ मतदाता तो नाम के फेर में फंसकर गलत जगह पर वोटिंग कर दें और मुलायम के वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके.


पर मुलायम के खिलाफ इस बार भी यह रणनीति सफल होती दिखी नहीं. इस चुनाव में जसवंत नगर में मुलायम को 60 हजार 242 वोट मिले, वहीं उनसे लड़ने वाले मुलायम निर्दलीय को केवल 192 वोट मिले. शिकोहाबाद सीट पर मुलायम को 55 हजार 249 वोट पड़े, जबकि उनके नाम वाले मुलायम निर्दलीय को केवल 154 मत मिल सके. ऐसे ही तीसरी सीट निधौली कलां में मुलायम ने 41 हजार 683 वोट पाकर विजयश्री का वरण किया, वहीं उनकी नाम राशि वाले निर्दलीय ने केवल 184 वोट पाए.


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मुलायम से पहले भी चमके हैं मुलायम
ऐसा नहीं है कि मुलायम सिंह यादव का नाम उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा वाले मुलायम से पहले नहीं चमकता था. आज वाले मुलायम के चुनावी राजनीति में उतरने से बहुत पहले ही 1951 के पहले चुनाव में यूपी की गुन्नौर उत्तर सीट से एक मुलायम सिंह उतरे थे और 2944 वोट भी उन्हें मिले थे.   


1985 के चुनावों में मुलायम जसवंतनगर सीट से लोकदल के टिकट पर जीत गए थे, पर उनकी इस सीट से दूर औरैया में उनकी नामराशि वाले एक मुलायम चुनाव लड़े थे.  मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली जनता दल-सेक्यूलर से लडते हुए जिस वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव को जसवंतनगर से हारा था, उसी साल उनकी नामराशि वाले एक उम्मीदवार ने इंडियन नेशनल कांग्रेस-यू से भर्थना सीट पर चुनाव लड़ा था, पर जीत नहीं पाए थे. तो कुछ ऐसा है मुलायम के नामों का किस्स, आगे भी हम आपको जी यूपी यूके वेबसाइट पर यूपी की सियासत के कुछ रोचक किस्से पढ़वाते रहेंगे.


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