उत्तरकाशी: यहां निकलती है नागदेवता की अनोखी डोली, हर 3 साल पर महिलाएं ससुराल से आकर करती हैं दर्शन
Uttarkashi Nag Devta Doli: हर तीसरे साल श्रीनागदेवता की उत्सव डोली 15 गांवों में जाती है. इस दौरान 15 दिन तक पूरे क्षेत्र में मांस-मदिरा बंद होता है...
हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी:
Uttarkashi Naag Devta Doli: उत्तराखंड में उत्तरकाशी की सीमा से लगे जौनपुर ब्लॉक के नागटिब्बा इड्वालस्यू पट्टी के 15 गांव में श्री नागदेवता की उत्सव डोली गांव-गांव में आशीर्वाद देने के लिए निकली है. नागटिब्बा की सरतली पर बसा इड्वालस्यू पट्टी के 15 गांव के ग्रामीण भगवान श्रीनागदेवता को अपना इष्टदेव मानते हुए उनकी पूजा अर्चना करते हैं. कुदरत के बीच बसे इस क्षेत्र में चारों ओर खूबसूरत हरियाली देखते ही बनती है. भटवाड़ी गांव से महज 1.5 किलोमीटर की दूरी पर देवीसौड़ में बुग्याल और ताल का नजारा स्वर्ग की अनुभूति करवाता है. इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. नागटिब्बा ट्रैक पर हजारों पर्यटक आकर कुदरत से रूबरू होते हैं.
हर्षोल्लास से मनाते हैं यह उत्सव
इड्वालस्यू पट्टी में हर तीसरे साल श्रीनागदेवता की उत्सव डोली की झांकी 15 गांव में पहुंचती है. इस दौरान 15 दिनों तक पूरे क्षेत्र में मांस-मदिरा पर प्रतिबंध रहता है. 15 गांव के ग्रामीण इस उत्सव को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं.
हर तीन साल पर महिलाएं ससुराल से आकर करती हैं दर्शन
भगवान नागराज के पुजारी ने बताया कि यह परंपरा काफी समय से चली आ रही है. नागराज अपने भक्तों को मनचाहा आशीर्वाद देते हैं, इसलिए उनकी पूजा करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है. गांव की जो महिलाएं विवाह के बाद अपने ससुराल जाती हैं, वह हर तीन साल पर नागराज के दर्शन करने वापस आती हैं. कहा जाता है कि भगवान के दर्शन मात्र से ही भक्त धन्य हो जाते हैं और उनके सामने काम पूरे हो जाते हैं.
एक गांव से दूसरे गांव जाती है डोली
ये 15 गांव एक-एक दिन के लिए भगवान नागराज का स्वागत करते हैं, उन्हें पूजते हैं. उनके साथ सभी अतिथियों का भी स्वागत किया जाता है. इसके बाद विधि-विधान से एक गांव से दूसरे गांव के लिए नागराज की डोली को विदा किया जाता है. इन 15 दिन महिलाएं खूब जश्न मनाती हैं. नाचती-गाती हैं और लोक नृत्य भी करती हैं.
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