Varanasi Ka Itihaas: बनारस में हर साल की तरह इस बार भी देव दीपावली महोत्सव में हजारों दीप गंगा के घाट जगमगाते दिखेंगे. शहर के लोग इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं. काशी जिसे बाबा की नगरी कहा जाता है, यहीं देवताओं को बचाने के लिए भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. इसके बाद देवता शिवजी से मिलने काशी आए और गंगा स्नान कर दीपदान किया. काशी अपनी संस्कृति और पहचान से पर्यटकों को लुभाता है. अलग अलग राज्‍यों के लोग अब बनारस में रच बस चुके हैं.


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काशी की पहचान
वाराणसी, काशी बनारस, तीनों एक शहर के ही नाम हैं. जिसकी गिनती भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के प्राचीनतम बसे शहरों में होती हैं. इसे  'मंदिरों का शहर, भारत की धार्मिक राजधानी, मोक्ष नगरी, भगवान शिव की नगरी, दीपों का शहर, ज्ञान नगरी जैसे नामों से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में यह शहर सबसे पवित्र नगरों में गिना जाता है. यहां स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है. इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इस जगह को पवित्र माना जाता है. काशी भारत और खासकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है.


वेद-पुराओं में भी काशी का जिक्र
गंगा में मिलने वाली वरुणा और असि नदी के बीच यह शहर बसा हुआ है. जिसका जिक्र पुराणों से लेकर वेदों में मिलता है. लेकिन सबके अलग-अलग मत हैं. पुराणों में विश्वेश्वर महादेव के द्वारा करीब पांच हजार साल पहले काशी की स्थापना का उल्लेख है. पुराणों में  कहा गया है कि मनु की 11वीं पीढ़ी के राजा काश के नाम पर काशी बसाई गई थी. इसके अन्य पौराणिक नामों में अविमुक्त नगर, कासिनगर, कासिपुर, रामनगर, जित्वरी आदि थे.


प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने अपनी किताब 'ट्रेवेलॉग फॉलोइंग द इक्वेटर' में लिखा है कि  “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है.”


शहर के एक दो नहीं 18 नाम
इस शहर के काशी, बनारस, वाराणसी जैसे नाम तो आपने भी सुने होंगे लेकिन करीब 18 नाम से काशी, जानी जाती है. इनमें बनारस,अविमुक्त, बेनारस, आनंदवन, रुद्रवास, महाश्मसान, जित्वरी, सुदर्शन, ब्रहमवर्धन, मालिनी, वाराणसी, फोलो-नाइ, पो लो निसेस, रामनगर, पुष्पावती, आनंदकानन, मोहम्मदाबाद प्रमुख हैं.


कैसे पड़ा वाराणसी नाम?
पौराणिक अनुश्रुतियों के मुताबिक 'वरुणा' और 'असि' नाम की नदियों के बीच में बसने की वजह से ही इसका नाम वाराणसी पड़ा. शहर हिंदू ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन धर्म का भी बड़ा केंद्र है. इसके नाम उस दौर में सुदर्शनपुरी और पुष्‍पावती भी रहे हैं.


शास्त्रीय संगीत की जननी?
कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जैसे कवि, लेखक, संगीतज्ञ यहीं से निकले.  गोस्वामी तुलसीदास ने  रामचरितमानस यहीं लिखी थी. जबकि गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं सारनाथ में दिया था.


मई 1956 में मिला वाराणसी नाम
24 मई 1956 को इस प्राचीनतम शहर का नाम सरकारी गजट में वाराणसी पड़ा. साल 1965 में आए उत्तर प्रदेश सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स में इसकी जानकारी दर्ज है. इससे पहले वाराणसी को बनारस या बेनारस के नाम से जाना जाता था.


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