विशांत श्रीवास्तव/वाराणसी: वाराणसी के ऐतिहासिक अर्धचंद्राकार घाटों को बचाने के एक महत्वपूर्ण योजना का काम पूरा होने वाला है. इस योजना से गंगा किनारे के घाटों को नया जीवन मिलेगा. साथ ही घाटों के सामने उस पार रेत पर पर्यटन और आस्था का नया केंद्र भी उभर कर सामने आएगा.  


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पर्यटन को मिलेगी उड़ान
गंगा की धारा से काशी के घाटों के किनारे खड़ी सदियों की विरासत, ऐतिहासिक धरोहरों  पर खतरा मंडराने लगा था. कछुआ सेंचुरी को शिफ़्ट करवाया दिया है. जिससे रेत पर ड्रेजिंग का काम तेजी से चल रहा है. कैनाल को चौड़ा किया जा रहा है जिससे पर्यटन को भी नई उड़ान मिलेगी. गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने और घाटों को संरक्षित करने का काम लगभग 90 परसेंट पूरा हो गया है. 


घाट किनारे खड़ीं इमारतों पर मंडरा रहा था खतरा
रामनगर इलाके में रेती जमा होने से गंगा का प्रवाह बदलने से काशी के पक्के घाटों पर पानी का दबाव बढ़ गया है. जिसके चलते घाट के सीढ़ियों के नीचे खोखला हो गया है. और घाटों के किनारे सदियों से खड़ीं की इमारतों पर खतरा मंडराने लगा था. 


ड्रेजिंग का तेजी से चल रहा काम
घाट से लेकर राजघाट तक गंगा पार रेती पर 11.95 करोड़ की लगत से ड्रेजिंग करके 5.3 किलोमीटर लम्बी और करीब 45 मीटर चौड़ी कैनाल को विकसित किया जा रहा है. ड्रेजिंग का काम तेज़ी से चल रहा है. जिससे मानसून आने के पहले ख़त्म हो जाए. प्रशासन का दावा है कि इस योजना से घाटों की सीढ़ियों के नीचे की ख़ाली जग़ह और घाटों के किनारे का गहरा पन कम हो जाएगा.


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काशी में दुनिया भर से आते हैं पर्यटक
काशी पहले से ही दुनिया भर के पर्यटकों की पहली पसंद रही है. वाराणसी मंडल के कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने बताया कि इस प्रोजेक्ट से घाटों को कटान से बचाया जा सकेगा. टापू जैसा बन जाने पर सैलानियों को नए तरह का नज़ारा देखने को मिलेगा. गंगा के छोर पर ऊंट, हाथी और घोड़े की सवारी भी पर्यटक कर सकेगा. साथ ही महत्वपूर्ण त्योहारों पर श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगा सकेंगे.


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अर्धचन्द्राकार घाटों पर देवदीपवली पर जलने वाले दीपों की ख़ूबसूरती भी इस आइलैंड से निहारा जा सकता है.  खुद इस टापू पर जलने वाले दीप भी इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाएंगे. गंगा पार पर्यटन का नया ठिकाना बनने से नाविकों समेत पर्यटन उद्योग से जुड़े सभी की आय बढ़ने की भी उम्मीद है.           


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