कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. 12 दिन से किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं. इस बीच पांच बार केंद्र सरकार के साथ चर्चा हुई है. लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है.
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नई दिल्ली: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. 12 दिन से किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं. इस बीच पांच बार केंद्र सरकार के साथ चर्चा हुई है. लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है. किसान कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं, MSP को लेकर ठोस भरोसा चाहते हैं.
5 दिसंबर की बैठक में किसान सरकार के सुझावों पर Yes/No का जवाब देते रहे. हालांकि पांचवे दौर की बैठक में भी कोई नतीजा नहीं निकल सका. अब 9 दिसंबर को छठे राउंड की बैठक होगी. उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि हमारे पास एक साल का राशन-पानी है. हम कई दिनों से सड़क पर हैं. अगर सरकार चाहती है कि हम सड़क पर ही रहें, तो हमें कोई दिक्कत नहीं है.
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हम आपको हर वो बात बताएंगे जो इस आंदोलन से जुड़ी है. इसके लिए सबसे पहले आपको उन तीन कृषि कानूनों को भी जानना चाहिए जिसके विरोध में किसान आंदोलनरत हैं.
पहला कृषि कानून
किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020: इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है. सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे.
क्यों है विरोध?
लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. इसके जरिये बड़े कॉर्पोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं.
किसानों के डर की वजह
किसानों को यह डर है कि सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म कर सकती है, जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है. लेकिन केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी को खत्म नहीं किया जाएगा.
दूसरा कृषि कानून
किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक 2020: इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है. किसान की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा.
किसानों के डर की वजह
किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी.
तीसरा कृषि कानून
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक: यह कानून अनाज, दालों, आलू, प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित करता है. यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है. इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी.
किसानों के डर की वजह
किसानों का कहना है कि यह न सिर्फ उनके लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है. इसके चलते कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है?
क्या है किसानों की आशंका और कैसे दिया सरकार ने जवाब?
किसानों का डर | सरकार का जवाब |
किसानों को लगता है कि MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस बंद तो नहीं हो जाएगी? | सरकार का जवाब है कि MSP चल रही थी, चल रही है और आने वाले वक्त में भी चलती रहेगी. |
किसानों को डर है कि APMC यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूसर मार्केट कमेटी खत्म तो नहीं हो जाएगी? | प्राइवेट मंडियां आएंगी, लेकिन हम APMC को भी मजबूत बनाएंगे. |
मंडी के बाहर ट्रेड के लिए PAN कार्ड तो कोई भी जुटा लेगा और उस पर टैक्स भी नहीं लगेगा. | सरकार का वादा- ट्रेडर के रजिस्ट्रेशन को जरूरी करेंगे. |
मंडी के बाहर ट्रेड पर कोई टैक्स नहीं लगेगा? | APMC मंडियों और प्राइवेट मंडियों में टैक्स एक जैसा बनाने पर विचार करेंगे. |
विवाद SDM की कोर्ट में न जाए, वह छोटी अदालत है. | सरकर का कहना है कि ऊपरी अदालत में जाने का हक देने पर विचार करेंगे. |
नए कानूनों से छोटे किसानों की जमीन बड़े लोग हथिया लेंगे? | किसानों की सुरक्षा पूरी है. फिर भी शंकाएं हैं तो समाधान के लिए तैयार हैं. |
इस कानून सिर्फ होल्डर्स और बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा? | केंद्र ने कहा कि पुरानी प्रणाली चलती रहेगी और किसानों को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. |
एमएसपी और कन्वेंशनल फूड ग्रेन खरीद सिस्टम खत्म नहीं इस पर लिखित आश्वासन मांग रहे किसान. | सरकार का कहना है कि इस पर विचार-विमर्श के बाद ही निर्णय हो पाएगा. |
कुछ दूसरे किसान नए क़ानूनों में बदलाव के बजाय इन्हें वापस लेने की मांग कर रहे हैं. | हालांकि इस पर सरकार ने अपना रुख साफ नहीं किया है, लेकिन कृषि मंत्री की बातों ऐसा बिलकुल नहीं लगा कि कानून वापस होंगे. |
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