मयंक राय/देहरादून: "जब दिल ही टूट गया, तो हम जी के क्या करेंगे" ये गाना तो सुना ही होगा. लेकिन एक युवक ने बताया कि दिल टूटने के बाद जिया भी जा सकता है और लोगों को जीने की प्रेरणा भी दी जा सकती है. जी हां, ऐसा ही कुछ देहरादून के दिव्यांश के साथ हुआ. उसका भी दिल टूटा लेकिन फिर उसने एक दिन खोल लिया 'दिल टूटा आशिक' कैफे. 


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दो साल की थी मोहब्बत 
करीब दो साल की मोहब्बत के बाद जब दिव्यांश का दिल टूटा तो उसके लिए अपनी मोहब्बत को भूल पाना आसान नहीं था. लेकिन यादें थीं, जो आसानी से जा ही नहीं रही थी. एक दिन दिव्यांश ने फैसला कर लिया कि अब वो ऐसे नहीं जियेगा. लिहाजा दिव्यांश ने एक कैफे खोल लिया और नाम दिया 'दिल टूटा आशिक'. जीएमएस रोड के इस कैफे पर जिसकी भी नजर पड़ती है, वह यहां जरूर रुकता है. यहां आकर लोग इस कैफे के पीछे की कहानी जानना चाहते हैं. युवक अपनी कहानी बताता भी है, लेकिन नाम छुपाकर ताकि उसकी मोहब्बत रुसवा न हो. 


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लॉकडाउन में गर्लफ्रेंड से हुआ ब्रेकअप
राजधानी के नामी कॉलेज से BSC आईटी करने वाले दिव्यांश के लिए ये लॉकडाउन बुरे सपने जैसा रहा. कोरोना संकट से पहले सब सामान्य था. प्रेमिका से मिलना भी आसान था, लेकिन लॉकडाउन में जब बंदिशें बढ़ने लगीं तो दोनों का प्यार लोगों के सामने आने लगा. बस दिक्कतें यहीं से शुरू हुई. लड़की की रुसवाई न हो इसके लिए दिव्यांश ने दूरी रखना उचित समझा लेकिन आज भी वह अपने प्यार को भूल नहीं पाया है.


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कैफे में मिलती है काउंसलिग 
दिल टूटा आशिक कैफे पर सबसे ज्यादा भीड़ युवाओं की ही जुटती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस कैफे में प्यार में टूटे आशिकों की काउंसिलिंग भी की जाती है. कोशिश यही रहती है कि सभी के टूटे हुए दिल को जोड़ा जा सके. यहां आने वाले लोग अपनी ब्रेकअप की कहानियां भी दिव्यांश से शेयर करते हैं. वो भी कोशिश करता है कि उन्हें उस दुख से बाहर निकाल सके ताकि लोग अपनी जिंदगी में आगे बढ़ सकें. आपको बता दें कि दिव्यांश ने काउंसलिंग के लिए बाकायदा एक टीम बना रखी है, जिसके सदस्य जरूरत के मुताबिक प्यार में हारे और टूटे लोगों को सलाह देते हैं.


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भाई ने की सबसे बड़ी मदद
जिस दौरान दिव्यांश बिल्कुल टूट चुका था. उस समय भाई राहुल बत्रा सबसे बड़ा मददगार बना. राहुल एक ब्लॉगर है और उसका खुद का यू-ट्यूब चैनेल भी है. राहुल अपने भाई के साथ कैफे में चाय-कॉफी बनाता है. हांलाकि, आज दिव्यांश संभल चुका है लेकिन आज भी राहुल हर समय उसके साथ रहता है. राहुल की मानें तो वो वक्त आसान नहीं था लेकिन अब सब कुछ ठीक है. 


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पापा थे कैफे के नाम से थे नाखुश
दिव्यांश के पापा संजीव बत्रा शुरू में इस कैफे के नाम को लेकर नाखुश थे. लेकिन आज बेटे की सफलता ने उनकी नाराजगी दूर कर दी है. मां ममता भी काफी खुश हैं कि उनका बेटा गम से निकलकर आज अपने पैरों पर खड़ा हो गया है. इस कैफे में आने वाले तमाम लोगों का पहला सवाल यही होता है कि कैफे का नाम 'दिल टूटा आशिक' क्यों रखा. इस पर दिव्यांश बड़े ही इत्मिनान से सभी को अपनी कहानी बताता है. 


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