ZEE जानकारीः झांसी की रानी, जिन्होंने जीवन को किस्मत के हवाले नहीं किया
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand469850

ZEE जानकारीः झांसी की रानी, जिन्होंने जीवन को किस्मत के हवाले नहीं किया

झांसी उस वक्त एक बहुत छोटा सा राज्य था . झांसी की रानी को उम्मीद थी कि ग्वालियर के सिंधिया और इंदौर के होल्कर शासक भी अंग्रेजों के खिलाफ उनका साथ देंगे .

ZEE जानकारीः झांसी की रानी, जिन्होंने जीवन को किस्मत के हवाले नहीं किया

आज 19 नवंबर है . आज के दिन का भारत की दो महिलाओं के साथ गहरा रिश्ता है. एक... झांसी की रानी लक्ष्मी बाई और दूसरी... भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी . आज इन दोनों का जन्मदिन है. हर साल 19 नवंबर को तमाम अखबार, और संचार के तमाम साधन आपको ये बता देते हैं कि आज भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती है.. लेकिन बहुत कम लोगों को ये पता है कि आज ही के दिन झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था. झांसी की रानी को हमारे देश में स्कूलों के फैंसी ड्रेस कॉम्पिटिशन तक सीमित कर दिया गया है. इसके अलावा उनका इस्तेमाल व्यंग्य के बाण छोड़ने के लिए होता है. जब भी कोई महिला बहादुरी से अपने जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करती है, तो लोग ये कह देते हैं कि झांसी की रानी मत बनो. लेकिन रानी लक्ष्मीबाई की शख्सियत ऐसे कटाक्षों से बहुत ऊपर है.

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु को आज 160 वर्ष बीत चुके हैं . आपने सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता ज़रूर सुनी होगी... 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' . अगर सुभद्रा कुमारी चौहान ने झांसी की रानी पर ये कविता नहीं लिखी होती तो शायद एक पूरी पीढ़ी झांसी की रानी को भूल चुकी होती. 

अगर आज आपको झांसी की रानी के बारे में जानना हो तो आपको इतिहास की किताबें खरीदकर खुद उन्हें पढ़ना होगा.. या फिर दोबारा स्कूल में दाखिला लेना पड़ेगा. हमारा सिस्टम खुद.. आपको झांसी की रानी की याद नहीं दिलाएगा. झांसी की रानी की वीरता और शौर्य को हमारे देश में वो स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था. जबकि 21वीं सदी में झांसी की रानी वाले तेवरों की बहुत ज़रूरत है.

इसलिए आज हम इतिहास के आईने पर जमी धूल को साफ करेंगे और आपको झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के शौर्य के बारे में बताएंगे. ये एक ऐसी बहादुर लड़की की कहानी है जो अपने जीवन की मुश्किलों के सामने टूटी नहीं. उसने अपने जीवन को किस्मत के हवाले नहीं किया....बल्कि अंग्रेज़ों से मुकाबला किया . आज के दौर में हर साल पूरी दुनिया की सबसे ताकतवर और प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट बनाई जाती है. अगर इस दौर में रानी लक्ष्मीबाई जीवित होतीं तो महिलाओं की Power List में झांसी की रानी का नाम सबसे ऊपर होता और कोई भी उन्हें हटा नहीं पाता. 

झांसी की रानी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने वाले Major-General Hugh Rose ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि ' झांसी की रानी का शौर्य दुर्लभ था . उनके जैसी बहादुर महिला इससे पहले मैंने किसी और देश में नहीं देखी थी. अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह करने वालों में वो सबसे योग्य और बहादुर थीं '

वर्ष 1857 में East India Company ने भारत पर अपनी पकड़ बहुत मजबूत कर ली थी . तब अंग्रेज़ धीरे-धीरे राजा-महाराजाओं की रियासतों का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में करना चाहते थे . गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी इस खेल में बहुत माहिर थे. झांसी में गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों की निगाह झांसी पर लगी हुई थी . अंग्रेज़ों ने गंगाधर राव और लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी का वारिस नहीं माना और दामोदार राव के बालिग हो जाने तक अंग्रेज़ों ने झांसी पर संपूर्ण कब्जा करने की योजना बनाई . 

इसके खिलाफ झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने England में Court of Directors को ये संदेश भेजा था कि झांसी का राज्य हमें अंग्रेज़ों की सरकार द्वारा नहीं दिया गया है . हमारे पूर्वजों ने पेशवा और उनके पूर्वजों की बहादुरी से सेवा की थी, उसके ईनाम में हमें झांसी का राज्य मिला था. 'ये एक तरह से ब्रिटेन को बहुत सीधा उत्तर था . 

अंग्रेज़ों की तरफ से Major Ellis ने झांसी की रानी से बात की और कहा कि उन्हें पूरा सम्मान दिया जाएगा और साथ ही 5 हजार रुपए प्रति महीने की पेंशन भी दी जाएगी . तब झांसी की रानी ने उत्तर दिया था कि 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी' . ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ झांसी की रानी के ये शब्द.. एक बहुत बड़ा नारा बन गये थे . 5 अप्रैल 1857 को अंग्रेजों ने झांसी के किले पर कब्जा जमा लिया था. लेकिन इस लड़ाई में अंग्रेजों की तरफ से लड़ने वाले 36 अफसर मारे गए थे . ये अंग्रेजों के लिए बड़ा झटका था . 

झांसी उस वक्त एक बहुत छोटा सा राज्य था . झांसी की रानी को उम्मीद थी कि ग्वालियर के सिंधिया और इंदौर के होल्कर शासक भी अंग्रेजों के खिलाफ उनका साथ देंगे . झांसी की रानी की योजना थी, झांसी से बाहर निकलकर ग्वालियर के किले पर कब्ज़ा जमाना. करीब 100 किलोमीटर के इस रास्ते में कई जगहों पर अंग्रेज़ों से रानी लक्ष्मी बाई के भयंकर युद्ध हुए . रानी लक्ष्मी बाई ने ग्वालियर पर सफल हमला किया . उस वक्त ग्वालियर रियासत पर जयाजीराव सिंधिया का शासन था . ग्वालियर पहुंचने के बाद रानी लक्ष्मी बाई ने नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया . रानी लक्ष्मी बाई ये सुनकर बहुत निराश थीं कि ग्वालियर रियासत ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह नहीं किया . तब रानी लक्ष्मी बाई ने ग्वालियर रियासत के महाराज जयाजीराव सिंधिया को एक संदेश दिया था.. जो ऐतिहासिक है . 

रानी लक्ष्मी बाई ने कहा था कि 'मैं ग्वालियर इसलिए आई हूं ताकी आप अपनी वेशभूषा मुझे दें दें और मेरे महिलाओं के वस्त्र और आभूषण जो अब मैं छोड़ चुकी हूं आप ग्रहण कर लें .' ये ग्वालियर के महाराजा के स्वाभिमान को चुनौती थी . लेकिन इसके बाद भी ग्वालियर के महाराज अंग्रेज़ों के ही चरणों में पड़े रहे . ग्वालियर के बाद झांसी की रानी ने अपने जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ी . ये लड़ाई ग्वालियर के पास कोट की सराय में हुई . 17 जून 1858 को झांसी की रानी की उम्र 22 वर्ष और 6 महीने थी . ये झांसी की रानी के जीवन का आखिरी दिन था . एक अंग्रेज़ ने उनके सिर पर तलवार से वार किया था.. जिससे उनका माथा फट गया था. 

वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गए थे . तब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले John Lang का एक पत्र, ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री Tony Abbott को भेंट के रूप में दिया था . आप सोच रहे होंगे कि John Lang कौन थे ? तो आपको बता दें कि John Lang ने वर्ष 1854 में East India Company के सामने झांसी की रानी का पक्ष रखा था . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने John Lang का जो पत्र भेंट किया था वो 8 जून 1854 को अंग्रेज़ों के गवर्नर जनरल को लिखा गया था . 

झांसी की रानी ने महिलाओं को भी युद्ध लड़ने के लिए ट्रेनिंग दी थीं . नेता जी सुभाष चंद्र बोस भी झांसी की रानी से बहुत प्रभावित थे . इसीलिए उन्होंने आज़ाद हिंद फौज में अपनी एक रेजीमेंट का नाम रानी झांसी रेजीमेंट रखा था. आज हमने आपके लिए झांसी की रानी के जीवन के संघर्षों का एक वीडियो विश्लेषण तैयार किया है . इसे देखकर आपको भी प्रेरणा मिलेगी . 

अब आप सोचिए कि 22 साल की उम्र में आप क्या कर रहे थे ?
22 साल की उम्र... ज़िंदगी का वो पड़ाव होता है जब लोग सिर्फ.. अपने बारे में सोचते हैं और सिर्फ अपने भविष्य की चिंता करते हैं. लेकिन 22 साल की उम्र में रानी लक्ष्मीबाई, देश के लिए कुर्बान हो गईं. क्योंकि उन्हें हमारे देश के भविष्य की चिंता थी . और यही बात उन्हें सबसे अलग बनाती है.

आज के दौर में किसी 22 वर्ष के युवा से आप ऐसी कुर्बानी की उम्मीद नहीं कर सकते . आजकल इस उम्र के युवाओं को इस बात की फिक्र होती है कि सोशल मीडिया पर उन्हें कितने Likes और Retweets मिले . इस हफ़्ते उनके Followers की संख्या कितनी बढ़ी? इस हफ़्ते पार्टी कहां है? और Latest स्मार्टफोन कैसे हासिल किया जाए ?

यानी हमारे देश के युवा.. पार्टी करना चाहते हैं . मौजमस्ती करना चाहते हैं..महंगे मोबाइल फोन लेना चाहते हैं.. . और महंगी गाड़ियों में घूमना चाहते हैं. उन्हें Free Data और Happy Hours में दिलचस्पी है. उनके पास देश के बारे में सोचने की फुरसत नहीं है

Trending news