Mamata Banerjee: करीब 9 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य पश्चिम बंगाल पर कुल मिलाकर 5.86 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. इस लिहाज से राज्य के हर व्यक्ति पर औसतन 60,000 रुपये का कर्ज है. राज्य विधानसभा में मंगलवार को पेश वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में बाजार से 79,000 करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने का प्रस्ताव किया गया है. यह 2022-23 के 75,000 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से कुछ ज्यादा है. सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस साल 2011 में जब सत्ता में आई थी, तब राज्य पर 1.97 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था. अर्थशास्त्री अजिताभ रे चौधरी ने अधिक कर्ज बोझ पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर इतने ऊंचे कर्ज के साथ संपत्ति का भी सृजन हो तो भावी पीढ़ी पर कर्ज का बोझ कम पड़ेगा.


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वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पश्चिम बंगाल बजट प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद राज्य में इसको लेकर राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बजट को विकासोन्मुख बताया, जिसमें रोजगार सृजन और आर्थिक विकास पर ध्यान देने के साथ सामाजिक विकास में संतुलन बनाए रखा गया तो दूसरी ओर भाजपा विधायक और केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अशोक कुमार लाहिड़ी के अनुसार बजट में राज्य के बढ़ते कर्ज को नियंत्रित करने के लिए कोई निर्देश नहीं है. चिंताजनक बात यह भी है कि पिछले कर्ज के ब्याज भुगतान का बोझ चालू वित्त वर्ष के अंत तक आसमान छू जाएगा. इसलिए, इस भारी ब्याज का भुगतान करने के साथ-साथ राज्य सरकार के कर्मचारियों को वेतन, मजदूरी और रिटायरमेंट फायदे जैसे प्रतिबद्ध व्यय को पूरा करने के बाद, राज्य सरकार के पास पूंजीगत व्यय को पूरा करने के लिए शायद ही कोई रिजर्व होगा.


वहीं माकपा केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि बजट आगामी पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए पेश किया गया है, खासकर 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को वृद्धावस्था मासिक भत्ता 1,000 रुपये से संबंधित प्रस्ताव. वे सिर्फ 1,000 रुपये के साथ क्या करेंगे? रोजगार सृजन की कोई गुंजाइश नहीं है. शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं है. सरकार ने भारी कर्ज के कारण राज्य की भयावह स्थिति को सुधारने के लिए कुछ भी नहीं किया है.


(इनपुट-आईएएनएस/पीटीआई)


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