नई दिल्ली: बिहार में नीतीश राज  फिर से शुरू हो गया है, लेकिन इस बार स्थिति पहले जैसी नहीं है. भाजपा के दो उप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के हर कदम पर नजर रखेंगे. इसे भाजपा (BJP) का मास्टरस्ट्रोक भी कहा जा रहा है. इससे पहले सुशील मोदी भाजपा की तरफ से डिप्टी सीएम हुआ करते थे, मगर इस बार उनकी जगह दो अन्य नेताओं को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है. 


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संविधान में जिक्र नहीं
कुछ वक्त पहले तक उप मुख्यमंत्री ‘अपरिचित’ – ‘अंजाना’ सा शब्द लगता था, लेकिन अब यह आम हो गया है. हालांकि, संविधान में इसका कोई जिक्र नहीं है. यह सत्ता के संतुलन को बनाये रखने के लिए सियासी दलों द्वार गढ़ा गया पद है. सीधे शब्दों में कहें तो ऐसे राज्यों में जहां एक से अधिक कद्दावर नेता मुख्यमंत्री पद की दौड़ में होते हैं या फिर जहां गठबंधन सरकारें होती हैं, वहां उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति की जाती है, ताकि सियासी समीकरण बने रहें. 


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क्या होते हैं डिप्टी CM के अधिकार?
उप मुख्यमंत्री को लेकर यह सवाल मन में आना लाजमी है कि क्या उसके पास दूसरे मंत्रियों से ज्यादा अधिकार होते हैं? पदनाम से तो ऐसा लगता है कि जैसे इस पद पर बैठने वाले के पास लगभग CM जितनी ही शक्तियां होंगी, लेकिन असल में ऐसा नहीं है. डिप्टी सीएम कैबिनेट के अन्य मंत्रियों की तरह ही होते हैं और उनके भी निश्चित विभाग होते हैं. चूंकि मुख्यमंत्री सभी मंत्रियों में प्रथम माना जाता है, इसलिए उसके पास सबसे अधिक अधिकार एवं शक्तियां होती हैं.


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यहां सबसे ज्यादा उप मुख्यमंत्री
बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी दो उप मुख्यमंत्री हैं, लेकिन इस मामले में सबसे आगे है आंध्र प्रदेश, जहां पांच डिप्टी CM बनाये गए हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने अपनी टीम में 5 उपमुख्यमंत्रियों को शामिल किया है. आंध्र प्रदेश देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां इतनी बड़ी संख्या में उप मुख्यमंत्री हैं. अपने इस फैसले के बारे में जगनमोहन ने कहा था कि इसके जरिए राज्य के मुख्य समुदायों दलित, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और कापू को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा.


उप प्रधानमंत्री से हुई शुरुआत 
उप मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा एक तरह से उप प्रधानमंत्री से शुरू हुई. वल्लभभाई पटेल (Vallabhbhai Patel) को पंडित जवाहरलाल नेहरू सरकार में उप प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था. हालांकि, यह 1950 में संविधान अपनाने से पहले की बात है. इसके बाद 1989 में हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल ने वीपी सिंह सरकार में उप प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी. उनके शपथ ग्रहण समारोह को लेकर भी एक रोचक किस्सा है. राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने जब देवीलाल को शपथ दिलाना शुरू किया, तो उन्होंने देवीलाल को मंत्री के रूप में संबोधित किया, जिस पर उन्होंने ऐतराज जताया. वह चाहते थे कि उन्हें उप प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई जाए. काफी देर तक यह सिलसिला चला फिर आखिरकार राष्ट्रपति को यह कहना पड़ा कि वो जैसे चाहते हैं शपथ ले सकते हैं. 


अदालत में दी थी चुनौती
देवीलाल के डिप्टी पीएम के तौर पर शपथ लेने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस दलील को स्वीकार करते हुए याचिका खारिज कर दी कि यह पद सिर्फ नाम के लिए है और देवीलाल अन्य तमाम मंत्रियों की तरह ही होंगे. अपने फैसले में कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि देवीलाल के पास पीएम की कोई शक्ति नहीं होगी और वह अन्य मंत्रियों की तरह ही होंगे. 


कौन थे पहले डिप्टी सीएम?
एक तरह से देखा जाए तो नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjeeva Reddy) देश के पहले उप मुख्यमंत्री थे. 1953 में आंध्र प्रदेश की स्थापना के बाद जब टी. प्रकाशम मुख्यमंत्री बने तो नीलम संजीव रेड्डी को उप मुख्यमंत्री बनाया गया. बाद में जब तेलंगाना को आंध्र प्रदेश में शामिल किया गया, तब उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. उस दौर में उन्होंने किसी को भी डिप्टी सीएम बनाने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि इसकी जरूरत नहीं है. 1992 में कर्नाटक में पूर्व विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा भी उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. पहली बार दो मुख्यमंत्री भी कर्नाटक में ही 2012 में बनाए गए थे. अब तो एक या दो डिप्टी CM बनाना आम बात हो गई है.