SC/ST एक्ट में बदलाव: देशभर में हंगामा क्यूं है बरपा?
कोर्ट ने इस कानून के जरिये तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को कोर्ट ने नरम कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) एक्ट, 1989 (एससी/एसटी एक्ट) से संबंधित एक अहम फैसला दिया है. इसमें ईमानदार सरकारी अधिकारियों को इस एक्ट के जरिये झूठे केसों में फंसाने से संरक्षण देने की बात कहते हुए एक्ट के प्रावधानों को नरम कर दिया गया. कोर्ट का यह मानना था कि कई लोग इस ऐक्ट का इस्तेमाल ईमानदार सिविल सेवकों को ब्लैकमेल करने के लिए झूठे मामले में फंसाने के इरादे से भी कर रहे हैं. इसलिए इस कानून के जरिये तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को कोर्ट ने नरम कर दिया. लिहाजा इसके खिलाफ देश भर के दलित संगठन सड़कों पर उतर आए हैं और दो अप्रैल को भारत बंद का ऐलान किया है. बढ़ते विरोध के बीच सरकार ने भी दो अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करने की बात कही है.
सुभाष काशीनाथ महाजन केस
दरअसल महाराष्ट्र सरकार में तकनीकी शिक्षा निदेशक डॉ. सुभाष काशीनाथ महाजन ने अपने विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ इस एक्ट के तहत मामला चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. इस अधिकारी पर एक कर्मचारी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने का आरोप था. इस वजह से डॉ सुभाष के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया. महाजन ने बांबे हाई कोर्ट की शरण ली लेकिन बांबे हाई कोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने और उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से इंकार कर दिया था. उसके बाद महाजन से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
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सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था
1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई मौकों पर निर्दोष नागरिकों को आरोपी बनाया जा रहा है और सरकारी कर्मचारियों को अपनी ड्यूटी निभाने से डराया जाता है, जबकि यह कानून बनाते समय विधायिका की ऐसी मंशा नहीं थी.
2. जब तक अग्रिम जमानत नहीं मिलने के प्रावधानों को ‘वाजिब मामलों’ तक सीमित किया जाता है और पहली नजर में कोई मामला नहीं बनने जैसे मामलों में इसे लागू नहीं किया जाता, तब तक निर्दोष नागरिकों के पास कोई संरक्षण उपलब्ध नहीं होगा.
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3. पीठ ने यह भी कहा कि इस कानून के तहत दर्ज ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, जिनमें पहली नजर में कोई मामला नहीं बनता है या न्यायिक समीक्षा के दौरान पहली नजर में शिकायत दुर्भावनापूर्ण पाई जाती है.
4. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में किसी लोक सेवक या सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकार से मंजूरी और गैर लोक सेवक के मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की स्वीकृति से ही की जाएगी, जो उचित मामलों में ऐसा कर सकते हैं. न्यायालय ने कहा कि इसकी मंजूरी देने के कारण दर्ज किए जाने चाहिए और आगे हिरासत में रखने की अनुमति देने के लिए मजिस्ट्रेट को इनका परीक्षण करना चाहिए.
5. पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत नहीं देने का प्रावधान उन परिस्थितियों में लागू नहीं होगा, जब पहली नजर में कोई मामला नहीं बनता हो या साफतौर पर मामला झूठा हो. इसका निर्धारण तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार संबंधित अदालत करेगी.
विरोध
1. सरकार का कहना है कि एससी- एसटी के कथित उत्पीड़न को लेकर तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और मामले दर्ज किए जाने को प्रतिबंधित करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश इस कानून को कमजोर करेगा. दरअसल, इस कानून का लक्ष्य हाशिये पर मौजूद तबके की हिफाजत करना है.
2. इस मामले में सरकार के भीतर भी मुखर विरोध उठा था. बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने इस फैसले का विरोध किया. लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के नेतृत्व में राजग के एससी और एसटी सांसदों ने इस कानून के प्रावधानों को कमजोर किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा के लिए पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी.