ZEE News Time Machine: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में आज बुधवार को हम आपको बताएंगे साल 1956 के उन किस्सों के बारे में जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे. ये वही साल जब भारत में पहले न्यूक्लियर रिएक्टर 'अप्सरा' की शुरुआत हुई. जब देश को आईएनएस विक्रांत के रूप में पहला एयरक्राफ्ट कैरियर मिला. ये वही साल है जब अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव में हार मिलने के बाद अपने प्रतिद्वंद्वी के घर पर लड्डू खाने पहुंच गए. आइये आपको बताते हैं साल 1957 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.


एशिया का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

न्यूक्लियर रिएक्टर किसी भी परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ होता है. यही वो पॉवर होती है जिसके जरिए किसी देश की परमाणु शक्ति का अंदाजा लगाया जाता है. 1957 में एशिया के पहले न्यूक्लियर रिएक्टर 'अप्सरा' की भारत में शुरुआत हुई. 20 जनवरी को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका लोकार्पण किया. गर्व की बात ये भी कि इसे युनाइडेट किंगडम की मदद व स्वदेशी तकनीक से बनाया गया था. भारतीय न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा ने अपने सहयोगी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के साथ मिलकर पहले न्यूक्लियर रिएक्टर 'अप्सरा' की डिजाइन और रूपरेखा तैयार की थी. अप्सरा लाइट वाटर स्विमिंग पूल-टाइप रिएक्टर है, जिसमें अधिकतम वन मेगावॉट थर्मल का बिजली उत्पादन होता था.


ब्रिटेन से भारत आया 'हिंद महासागर का सिकंदर'


भारत का समुद्री इतिहास हम सभी को गौरवान्वित करता है. इस शानदार इतिहास में भारतीय नौसेना के पोतों का भी अहम योगदान है. भारतीय नौसेना के पोत इतिहास में एक नाम जो सबसे पहले और शिखर पर आता है, वह है INS विक्रांत. 1945 में ब्रिटिश नौसेना ने इस युद्ध पोत को अपनी नौसेना में शामिल किया था. इस वक्त INS विक्रांत का नाम HMS हर्कुलस हुआ करता था. दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद HMS हर्कुलस की सेवा भी समाप्त कर दी गई और 1957 में ये जहाज ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सरकार को बेच दिया था. INS विक्रांत को 1961 में नौसेना के लड़ाकू विमानों में शामिल किया गया. देश की कई महत्वपूर्ण लड़ाइयों में INS विक्रांत ने विदेशी दुश्मनों के खूब छक्के छुड़ाए हैं. विक्रांत के कारण भारत का समुद्र में दबदबा बढ़ गया था.


जब हारकर जीत का लड्डू खाने पहुंचे अटल


1957 में अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रदेश के 3 स्थानों से लोकसभा चुनाव लड़ा था. जिनमें लोकसभा क्षेत्र बलरामपुर, मथुरा और लखनऊ शामिल थे. अटल बिहारी वाजपेयी मथुरा और लखनऊ से चुनाव हार गए थे. लखनऊ में कांग्रेस से पुलिन बिहारी बनर्जी ‘दादा’ जहां जीत का जश्न मना रहे थे, वहीं अटल जनसंघ के कार्यालय पर मौजूद लोगों के साथ हार-जीत का विश्लेषण कर रहे थे. तभी अचानक अटल जी उठे और कुछ लोगों के साथ बनर्जी के घर पहुंच गए. अटल को घर के सामने देख बनर्जी दादा के घर मौजूद लोग हड़बड़ा गए. उन लोगों से अटल जी बोले, ‘दादा जीत की बधाई... चुनाव में तो बहुत कंजूसी की लेकिन अब न करो कुछ लड्डू-वड्डू तो खिलाओ’. जिसके बाद पुलिन बिहारी बनर्जी घर से बाहर आए उन्होंने अटलजी को गले लगाया और लड्डू भी खिलाया. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ और मथुरा से भले भी चुनाव हर गए थे लेकिन बलरामपुर सीट से चुनाव जीत कर पहली बार लोकसभा जरूर पहुंचे.


इंदिरा गांधी पर गिरा तंबू


देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ गईं इंदिरा गांधी 17 जनवरी 1957 को लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजा दिनेश सिंह के प्रचार में उत्तर प्रदेश के बांदा आईं थीं. शहर के रामलीला मैदान में उनके लिए मंच बनाकर तंबू लगाया गया था. इसी में उनकी जनसभा हो रही थी. इंदिरा गांधी भाषण दे ही रहीं थीं तभी किसी ने शरारत की और तंबू की रस्सी काट दी. तंबू मंच के ऊपर आ गिरा और इंदिरा गांधी उसमें गिर कर ढक गईं. जनसभा में हड़कंप मच गया. मंच और आसपास मौजूद कांग्रेस नेताओं ने आनन-फानन में इंदिरा गांधी को तंबू से बाहर निकाला और सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. चर्चा थी कि यह हरकत सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं ने की थी.


वो नेता जिसने नहीं मांगा मस्जिद में वोट


1957 में कुछ नेता ऐसे भी हुए जिन्होंने हार को गले लगाना बेहतर समझा. लेकिन अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. ऐसे ही नेताओं में से एक थे पंडित नेहरू के करीबी दोस्त शौकतुल्लाह शाह अंसारी. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में एक बेहद संपन्न परिवार में जन्मे शौकतुल्लाह शाह अंसारी को कांग्रेस ने 1957 में यूपी की रसड़ा सीट से मैदान में उतारा था. शौकतुल्लाह शाह ने इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए जवाहरलाल नेहरू के कहने पर हामी भरी थी. प्रचार के दौरान एक दिन जब अंसारी शुक्रवार के दिन मस्जिद के पास से गुजर रहे थे, तो उनसे कहा गया कि वे मस्जिद में नमाज अता कर लें. साथ ही नमाज के बाद लोगों से वोट देने की अपील कर लें. इस पर अंसारी ने कहा कि आज जुमे का दिन है, इसलिए नमाज अता करने के लिए मैं मस्जिद में जरूर जाऊंगा लेकिन वोट नहीं मांगूंगा. शौकतुल्लाह शाह एक सेक्यूलर नेता थे और मस्जिद जाकर वोट मांगना उन्हें गवारा नहीं था. रसड़ा सीट पर जमीनी पकड़ न होने के कारण शौकतुल्लाह शाह को हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया.


चांदी की कुर्सी को नेहरू की ठोकर!


1957  में बिहार के भागलपुर में कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरु विशेष विमान से रैली वाली जगह पहुंचे. उसके बाद जीप में बैठकर सैंडिस कंपाउंड में आयोजित रैली को संबोधित करने के लिए गए. उस वक्त नेहरू का क्रेज पूरे देश में था. नेहरू की सभा में शामिल होने के लिए दूसरे जिलों से भी लोग आए थे. उनके बैठने के लिए रजवाड़े से चांदी की कुर्सी का प्रबंध किया गया. नेहरू जैसे ही मंच पर चढ़े तो उनके समर्थकों ने उन्हें बैठने के लिए चांदी की कुर्सी दी, चांदी की कुर्सी देख नेहरू नाराज हो गए और अपने समर्थकों पर गुस्सा उतारते हुए कहा कि आजादी के बाद भी जनता के पास बैठने के लिए कुर्सी नहीं है, तो मैं चांदी की कुर्सी पर कैसे बैठ सकता हूं. नेहरू ना सिर्फ नाराज हुए, बल्कि उन्होंने चांदी की कुर्सी को भी लात मारकर गिरा दिया. सादा कुर्ता पजामा पहने और टोपी लगाए नेहरू ने सैंडिस कंपाउंड में लगभग 1 घंटे तक भाषण दिया. जिसमें उन्होंने कई सारी योजनाओं के बारे में भी बात की. नेहरू के इसी भाषण का असर रहा कि इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी को अभूतपूर्व जीत मिली.


पोलो में विश्व चैंपियनशिप बना भारत


आजाद भारत शिक्षा तकनीकी और कला के साथ-साथ खेल के क्षेत्र में भी नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा था. 1957 में आयोजित विश्व पोलो चैंपियनशिप में भारत ने वो कमाल किया जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है. 1957 में जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय की कप्तानी में भारत पोलो वर्ल्ड चैंपियनशिप में शामिल हुआ. फ्रांस में हुई इस चैंपियनशिप के फाइनल में जीत दर्ज कर भारत ने विश्व विजेता का खिताब हासिल किया था. उस वक्त भारत का मुकाबला इंग्लैंड, अर्जेंटीना, स्पेन, मैक्सिको और फ्रांस जैसी दिग्गज टीमों से था. इन खतरनाक टीमों के बीच जिस तरह से भारत के महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय के साथ मिलकर मेजर कृष्ण सिंह, कुंवर विजय सिंह और राव राजा हनुत सिंह ने पोलो खेला, वो इतिहास बन गया. 1957 का वो पहला और आखिरी मैच था, जब भारत विश्व में पोलो का चैम्पियन था.


जब पहली बार हुआ बूथ पर कब्जा


1957 में पहली लोकसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया और देश का दूसरा आम चुनाव हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर प्रचंड जीत हासिल करते हुए अपनी सरकार बनाई. कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में से 371 पर जीत का परचम लहराया. इसी चुनाव में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की घटना भी सामने आई थी. 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव के दौरान बिहार के बेगूसराय जिले के रचियारी गांव में बूथ कैप्चरिंग की घटना सामने आई. रचियारी गांव के कछारी टोला बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया. इसके बाद से ही चुनावों में बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आम होने लगी.


शिमला में बना भारत का पहला डॉग स्क्वाड


देश की सुरक्षा को बनाए रखने में डॉग स्क्वाड का अहम योगदान रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश का पहला खोजी कुत्तों का दस्ता यानी डॉग स्क्वाड कब और कहां बना? 1957 में पहला डॉग स्क्वाड हिमाचल में तैयार किया गया. लाखों रुपये खर्च करके आयरलैंड से जर्मन शेफर्ड नस्ल का डॉग 'HERO' लाया गया, जिसने आगे चलकर खोजी कुत्तों के दस्ते की परंपरा शुरू की. डाग स्क्वायड की स्थापना लेफ्टिनेंट गवर्नर राजा बजरंग बहादुर सिंह ने की थी. 250 यूरो में शेफर्ड नस्ल का कुत्ता HERO खरीदा गया था. एक से शुरु हुई डॉग स्क्वाड की संख्या 5 सालों में 14 हो गई थी. दूसरे प्रदेशों ने भी हिमाचल की तर्ज पर डॉग स्क्वाड गठित किए. कई प्रदेशों ने डॉग स्क्वाड बनाने में भी हिमाचल के ट्रेनर्स की मदद ली. डॉग स्क्वायड का इस्तेमाल नक्सल प्रभावित इलाकों से लेकर बॉर्डर पर बम तक ढूंढने में किया जाता है.


केरल में बनी पहली कम्युनिस्ट सरकार


5 अप्रैल 1957 वो दिन था जब भारत में पहली बार कम्यूनिस्ट सरकार बनी. ये देश और दुनिया में पहला मौका था, जब लोकतांत्रिक तरीके से कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई. EMS नम्बूदरीपाद ने केरल के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. इसी के साथ वो देश में पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी बने. यानी पहली बार किसी राज्य में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.


यहां देखें VIDEO: