DNA With Sudhir Chaudhary: 500 वर्षों के इंतजार के बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. और बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि का विवाद इतिहास की बात बन चुका है. लेकिन हमारे देश में अब भी कई ऐसे मंदिर और मस्जिद हैं, जिनका विवाद अभी समाप्त नहीं हुआ है. हैरानी की बात ये है कि इनमें से ज्यादातर विवादित धार्मिक स्थल उत्तर भारत में स्थित हैं. जबकि दक्षिण भारत में आपको ऐसे बहुत कम प्राचीन मंदिर दिखाई देंगे, जिन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई हो.


मुस्लिम आक्रमणकारियों ने किए मंदिरों पर हमले


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ऐसा इसलिए है क्योंकि 800 वर्षों के दौरान जिन मुसलमान आक्रमणकारियों ने भारत पर अनगिनत हमले किए वो दक्षिण भारत पर अपना प्रभाव उस तरह से नहीं जमा पाए, जिस तरह से उन्होंने उत्तर भारत में अतिक्रमण किया. इसका नतीजा ये हुआ कि उत्तर भारत के कई प्राचीन मंदिरों की जगह या उनके आस पास मस्जिदें बना दी गई और अब भारत में कई धार्मिक स्थल ऐसे हैं. जहां मंदिर के साथ मस्जिद है या मस्जिद के साथ मंदिर है. अब आपको ये सोचना चाहिए कि क्या ये मात्र एक संयोग है या फिर बाहर से आए आक्रामणकारियों ने अपनी सभ्यता को भारत के बहुसंख्यक लोगों पर थोपने के लिए ये प्रयोग किया था.


500 वर्ष पहले हुआ था ऐसा


उदाहरण के लिए 500 वर्ष पहले हिंदुओं की आस्था के केंद्र, अयोध्या में राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बना दी गई. लेकिन तेलंगाना में भगवान राम और उनकी पत्नी सीता को समर्पित सैंकड़ों वर्ष पुराने श्री सीता राम चंद्र स्वामी मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. इसी तरह कुछ लोगों का दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के जिस ज्योतिर्लिंग के दर्शन आप करते हैं, उसका मूल स्वरूप वहां नहीं बल्कि उस जगह पर मौजूद है, जहां साढ़े तीन सौ साल पहले मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर एक मस्जिद बना दी गई थी. लेकिन इसके विपरीत तमिलनाडु में भगवान शिव को समर्पित 800 वर्ष पुराने रामेश्वर मंदिर को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचा.  


अयोध्या के बाद काशी की बारी


अयोध्या के बाद, काशी विश्वनाथ को हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर देखा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अयोध्या भगवान राम की नगरी है तो काशी यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है. लेकिन अयोध्या की तरह यहां भी मंदिर और मस्जिद को लेकर विवाद है. हिंदु पक्ष का दावा है कि जहां भगवान शिव को समर्पित असली ज्योतिर्लिंग मौजूद है. वहां पर औरंगजेब द्वारा एक मस्जिद बना दी गई थी जिसे आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है. ज्ञान वापी का अर्थ होता है ज्ञान का तालाब या कुआं.


18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की तरफ से जारी किया गया था. मूल रूप से इसे फारसी में लिखा गया था. लेकिन इसका हिंदी में अनुवाद करके इसे अदालत में भी जमा कराया गया है. इसमें लिखा है कि औरंगजेब को ये खबर मिली है कि मुलतान के कुछ सूबों और बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं और इन पाठशालाओं में हिंदू और मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदमाशी भरे ज्ञान, विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं. धर्म संचालक बादशाह ने ये सुनने के बाद सूबेदारों के नाम ये फरमान जारी किया है कि वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं गिरा दें. उन्हें इस बात की भी सख्त ताकीद की गई है कि वो सभी तरह के मूर्ति पूजा संबंधित शास्त्रों का पठन पाठन और मूर्ति पूजन भी बंद करा दें. इसके बाद औरंगजेब को ये जानकारी दी जाती है कि उनके आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है.


औरंगजेब के गुनाहों का सबूत


यानी एक एतिहासिक दस्तावेज खुद इस बात की पुष्टि करता है कि औरंगजेब के आदेश पर ही काशी विश्वनाथ मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया था. लेकिन अब आप ये देखिए हमारे देश में क्या हो रहा है. AIMIM पार्टी के नेता अकबरुद्दीन औवेसी ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में औरंगजेब की कब्र पर जाकर चादर चढ़ाई है. औरंगजेब वही मुगल शासक है, जिसने भारत में कई मंदिरों को तुड़वाया, हिंदुओं पर जजिया कर लगाकर उनका दमन किया और हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश की. लेकिन आज उसे इसी देश में याद किया जा रहा है.


अब हम आपको काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में बताते हैं.


- ये मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है.


- भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही.


- 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं.


- लेकिन 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई.


- 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं.


- लेकिन तब से ही यह विवाद आज तक जारी है और यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है.


क्या आप जानते हैं कि आजादी के 75 वर्षों के बाद भी ज्ञानवापी मस्जिद जैसी गलती को सुधारा क्यों नहीं गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 75 वर्षों के दौरान जिन नेताओं ने देश को चलाया वो धर्म निरपेक्षता की बड़ी-बड़ी बातें करते रहे और उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि देश की बहुसंख्यक आबादी क्या चाहती है.


इसका सबसे बड़ा उदाहरण है गुजरात का सोमनाथ मंदिर. काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Mandir) की तरह सोमनाथ मंदिर भी भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है लेकिन 11वीं शताब्दी में मुसलमान आक्रमणकारी महमूद गजनी ने इस मंदिर पर कई बार आक्रमण किए, इसका शिवलिंग तोड़ दिया और सारा खजाना लूट लिया. इसके बाद 13वीं शताब्दी में आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khalji) ने भी इस मंदिर के साथ यही किया. तब मंदिर की क्या हालत हो गई थी वो तस्वीरें आज भी मौजूद हैं.


पूर्व मंत्री ने किताब में लिखी थीं ये बातें


जाहिर है हिंदुओं की आस्था के केंद्र इस मंदिर का फिर से निर्माण कराने की जिम्मेदारी आजाद भारत की पहली सरकार और उस सरकार के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की थी. लेकिन नेहरू उस समय भी धर्म निरपेक्षता के नशे में इस कदर डूबे हुए थे कि उन्होंने ये साफ कर दिया था कि वो सोमनाथ मंदिर के निर्माण से खुश नहीं है. ये बातें देश की पहली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे केएम मुंशी ने अपनी पुस्तक Pilgrimage to Freedom में लिखी हैं. उन्होंने लिखा है कि नेहरू मानते थे कि सोमनाथ मंदिर के निर्माण से हिंदुत्व का फिर से उदय हो जाएगा. लेकिन सोमनाथ मंदिर के प्रति जवाहर लाल नेहरू का विरोध यहीं खत्म नहीं होता. वो इस मामले में सरदार पटेल से भी नाराज थे.


जब नेहरू ने किया विरोध


जब नवंबर 1947 में सरदार पटेल सोमनाथ मंदिर पहुंचे और वहां दिए गए एक भाषण में उन्होंने घोषणा की कि इस मंदिर का निर्माण नए वर्ष से शुरू हो जाएगा तो नेहरू उनसे भी नाराज हो गए 
इसके बाद जब भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन के लिए बुलाया गया तो नेहरू ने इसका भी पुरजोर विरोध किया. लेकिन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद फिर भी वहां गए और उन्होंने वहां एक भाषण भी दिया. जिसे देश के सभी अखबारों में तो छापा गया लेकिन कांग्रेस के सभी मुखपत्रों में इस भाषण को कोई जगह नहीं मिली और नेहरू ने Secularism के नाम पर अपने ही अखबारों को Censor कर दिया. यानी धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ की शुरुआत भारत के आजाद होते ही हो गई थी.


काशी विश्वनाथ कॉरीडोर की खुदाई में मिले थे पत्थर


वर्ष 2011 के Census के मुताबिक इस समय भारत में 30 लाख से ज्यादा मंदिर हैं, इनमें छोटे, बड़े, नए और प्राचीन सभी तरह के मंदिर शामिल हैं और कहा जाता है इनमें से 10 हजार से ज्यादा प्राचीन मंदिरों को कभी ना कभी नुकसान पहुंचाया गया, कुछ को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया, तो कुछ को गिराकर वहां मस्जिद बना दी गई. काशी विश्वनाथ मंदिर को भव्य रूप देने के लिए जो काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनाया गया है, उसके लिए जो खुदाई हुई थी, उसमें 3 सितंबर 2020 को प्राचीन मंदिर के पत्थर मिले थे. ये पत्थर भी ज्ञानवापी परिसर के पश्चिम दिशा में ही पाए गए थे. अब तक यहां पर कई प्राचीन साक्ष्य मिल चुके हैं जो बताते हैं कि यहां कोई मंदिर हुआ करता था. इसकी जांच का जिम्मा मंदिर प्रशासन ने पुरातत्व विभाग को सौंपा है.


Video