मुंबई: बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर को मुंबई के दादर स्थित चैत्यभूमि पर देश के अलग-अलग हिस्से से लाखों लोग आते रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र के ताकतवर राजनीतिक परिवार ठाकरे परिवार के लोग इससे दूरी बनाते रहे हैं. ठाकरे परिवार इस चैत्यभूमि से कुछ ही दूरी पर रहते हैं, लेकिन पिछले 40 साल इस परिवार का कोई भी सदस्य यहां नहीं गया.


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बाला साहेब ठाकरे साल 1978 में चैत्य भूमि पर आए थे, लेकिन इसके बाद से उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने वालों को चैत्य भूमि की कोई सुध नहीं रही. हालांकि शिवसेना से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाने वाले राज ठाकरे ने पार्टी के झंडे में आंबेडकरी विचार धारा को ध्यान में रखकर नीला रंग जरूर समाहित किया. वहीं चैत्य भूमि से महज कुछ फर्लांग दूर राज ठाकरे अपने आवास से निकलकर बाहर श्रद्धांजलि देने भी नहीं आए.


महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य और बीजेपी नेता भाई गिरकर का आरोप है कि आंबेडकर विचार धारा के लोगों का मानना है कि पिछले 1978 से लेकर अबतक ठाकरे परिवार से किसी भी व्यक्ति का नहीं आना ये दर्शाता है कि महज वोटों के लिए इन्हें ये संगठन और इस जनता की याद आती है. पिछले 26 नवंबर से लेकर अब तक एक बार भी इस दौरान ना तो मुख्यमंत्री ने बैठक ही ली और ना ही खुद आए भी. संविधान के रचनाकार के प्रति इस तरह के व्यवहार निसंदेह स्वीकार्य नहीं है.


हालांकि इस बारे में आंबेडकर के पौत्र का मानना है कि मुख्यमंत्री ने नाते उद्धव ठाकरे जरूर आएंगे. शिव सेना बीजेपी और आरपीआई का गठबंधन तो सालों साल चला, लेकिन ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चैत्य भूमि पर पिछले 40 साल में कभी भी नहीं आया. हालांकि 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस के मौके पर की जा रही प्रशासन की तरफ से तैयारियों का जायजा लेने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे मुंबई महानगर पालिका मुख्यालय में अधिकारियों से तकरीबन 3 घंटे मीटिंग करके हर पहलू की जानकारी तो ले ली, लेकिन अभी तक संशय ही है कि मुख्यमंत्री क्या चैत भूमि पर जाकर 40 साल परिवार के सदस्य की तरफ से गैरहाजिर रहने का चलन अपनाते हैं या मुख्यमंत्री के तर्ज पर शरीक होते हैं.


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