जब समय गुज़र जाता है, कई दशक बीत जाते हैं और पीढ़ियां गुज़र जाती हैं . तो लोग पुरानी बातें भूल जाते हैं . लेकिन किसी देश को कभी अपना इतिहास नहीं भूलना चाहिए . ब्रिटेन की गुलामी से आज़ाद हुए भारत को 70 वर्ष बीत चुके हैं . हम गुलामी की दुखभरी कहानियों को आज भी नहीं भूले हैं . लेकिन इन 70 वर्षों में ब्रिटेन बहुत कुछ भूल चुका है .और जो अपना इतिहास भूल जाते हैं उनसे हमेशा गलतियां होती हैं . ब्रिटेन ने भी एक ऐसी ही गलती की है. 


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London की West Minster Court में भारत के भगौड़े उद्योगपति विजय माल्या के प्रत्यर्पण के मामले पर सुनवाई चल रही है. इसी सुनवाई के दौरान वहां की जज ने, भारत से मुंबई की Arthur Road Jail के बैरक नंबर 12 का वीडियो मांगा है. ब्रिटेन की ये अदालत देखना चाहती है कि Arthur Road Jail के बैरक नंबर 12 में Natural Light है या नहीं... यानी जेल के अंदर सूर्य की रोशनी आती है या नहीं ? 


ये ब्रिटेन का दुस्साहस है. हमारा सवाल ये है कि क्या ब्रिटेन को ये पूछने का अधिकार है कि भारत की जेलें कैसी हैं ? ये वही जेले हैं जहां अंग्रेज़ों ने भारत के क्रांतिकारियों को कैद में रखा था . ये वही जेलें हैं जहां अंग्रेज़ अफसर, क्रांतिकारियों को यातनाएं देते थे, उन पर अत्याचार करते थे और उन्हें मार डालते थे. आज ब्रिटेन को विजय माल्या जैसे भगोड़े के मानव अधिकारों की बहुत चिंता हो रही है लेकिन क्या ब्रिटेन ने आज से 70 वर्ष पहले गुलामी के युग में कभी भारतीय कैदियों के मानव अधिकारों की बात की थी ? 


आज हम ब्रिटेन को ये याद दिलाना चाहते हैं कि भारत के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेज़ों ने जेलों का इस्तेमाल किया था. अंग्रेज़ों ने जिन जेलों में भारत के क्रांतिकारियों और नेताओं को रखा था, उन्हीं में से किसी एक जेल में विजय माल्या को भी रखा जाएगा.ब्रिटेन की अदालत में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व Crown Prosecution Service कर रही है . इसे CPS भी कहा जाता है . जांच के दौरान उन्हें मुंबई की Arthur Road Jail के बैरक नंबर 12 में रखे जाने की बात कही जा रही है . 


विजय माल्या का बचाव कर रही टीम ने ये कहा था कि बैरक नंबर 12 में प्राकृतिक रोशनी की कमी है . विजय माल्या की तरफ से ये कहा गया कि बैरक की तस्वीरों में कुदरती रोशनी तो दिख रही है . लेकिन ये पता करना बहुत मुश्किल है कि ये रोशनी कहां से आ रही है . ऐसा लगता है कि ये रोशनी प्राकृतिक नहीं है .इस पर जज ने कहा कि वो ये देखना चाहती हैं कि बैरक नंबर 12 में खिड़कियां कहां पर हैं ? जज ने कहा कि बैरक का वीडियो भी दिन की रोशनी में ही Record होना चाहिए . यानी अंग्रेज़ों की अकड़ में कोई कमी नहीं आई है. वैसे भारत की तरफ से अदालत में मौजूद CBI की टीम ने अदालत की इस मांग को स्वीकार कर लिया है. क्योंकि विजय माल्या को भारत वापस लाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है.


ब्रिटेन की इस Court ने भारत की जेलों की स्थिति पर चिंता जताई थी . इस पर भारत का तर्क ये था कि भारत की जेलों में कैदियों की संख्या ज़्यादा होने की जो बात कही जा रही है, उसका मुंबई की Arthur Road Jail के बैरक नंबर 12 से कोई संबंध नहीं है. ये बैरक बहुत साफ और स्वच्छ है . वहां सिर्फ 6 कैदी हैं . और कैदियों के लिए शौचालय की सुविधा है. भारत ने ये भरोसा भी दिया कि इस जेल में आधुनिक सुविधाएं हैं. और इस बैरक के गद्दे और बिस्तर भी काफी साफ हैं. लेकिन विजय माल्या की पैरवी करने वाली टीम ने ये कहा कि भारत सरकार के दावों पर भरोसा नहीं किया जा सकता. हालांकि जब विजय माल्या को भारत के बैंकों से कर्ज़ लेना था.. तब उन्हें भारत के सिस्टम पर पूरा भरोसा था. 


अप्रैल 2018 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजय माल्या और ललित मोदी के प्रत्यर्पण के मामले पर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री Theresa May से बात की थी . दिसंबर 2017 में विजय माल्या के वकीलों ने ये कहा था कि भारत की जेलें, Russia की जेलों से भी खराब हैं. 


तो इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Theresa May से ये कहा था कि भारत की जेल वही जेल हैं जहां अंग्रेज़ों ने महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू और बहुत सारे दूसरे नेताओं को रखा था, इसीलिए ब्रिटेन की अदालतों को आज इन जेलों पर सवाल उठाने का कोई हक नहीं है . आज हमारे पास एक किताब है... इस किताब का नाम है काला पानी का ऐतिहासिक दस्तावेज' . इस किताब में एक क्रांतिकारी राम चरण लाल शर्मा ने अपने उन दिनों के बारे में बताया है जब वो अंडमान में मौजूद काले पानी की जेल में थे . 


राम चरण लाल शर्मा को अंग्रेज़ों के खिलाफ कुछ कविताएं लिखने के आरोप में काले पानी की सजा दी गई थी . ज़रा सोचिए... उस समय गुलामी का कैसा बुलडोज़र चल रहा था . सिर्फ कुछ कविताएं लिखने पर काला पानी की सज़ा दे दी गई थी . उस समय एक कैदी को एक साल में एक ही चिट्ठी लिखने की इजाज़त थी. तब क्रांतिकारी राम चरण लाल शर्मा ने अपने भाई को एक चिट्ठी लिखी थी. वो चिठ्ठी इस किताब के पेज नंबर 41 पर मौजूद है . ये चिट्ठी हम आपको पढ़कर सुनाना चाहते हैं 


वर्ष 1921 में अंग्रेजों ने मालाबार से 101 भारतीयों को गिरफ्तार किया था . इन लोगों को Coimbatore ले जाया जा रहा था . इन्हें ट्रेन में सामान ढोने के लिए इस्तेमाल होने वाले Air Tight Container में बंद कर दिया गया था . इस यात्रा के दौरान ही 64 कैदियों की दम घुटने से मौत हो गई थी. और 7 क़ैदी अस्पताल ले जाते हुए मर गए थे . गुलामी के दौर में अंग्रेजों की जेलों की हालत भी बहुत बुरी थी . ब्रिटिश राज के दौरान बनी भारतीय जेल समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक जेलों में गंदगी की वजह से कैदियों को बीमारियां होती थीं. जेलों में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं थी. जेलों में पानी की सप्लाई नहीं होती थी. तब अंग्रेज़ों ने कहा था कि ब्रिटिश सरकार के पास सुविधाएं देने के लिए पैसा नहीं है. 


19वीं शताब्दी के अंत में जेलों में कैदियों की मृत्यु दर बहुत ज़्यादा थी.मद्रास और बंगाल में कैदियों की मृत्यु दर सबसे ज़्यादा थी. जेलों की हालत इतनी खराब थी कि कुछ कैदी जेल में आने के कुछ दिनों के अंदर ही मर जाते थे . सबसे आश्चर्य की बात ये है कि अंग्रेज इन कैदियों पर दवाइयों का टेस्ट करते थे और मर जाने पर उनके पार्थिव शरीर के साथ भी प्रयोग करते थे . इससे पता चलता है कि अंग्रेज़ी हुकूमत को कैदियों के मानव अधिकारों की कितनी चिंता थी . लेकिन आज अंग्रेजों को विजय माल्या के मानवाधिकारों की बात करते हुए ज़रा सी भी लज्जा नहीं आ रही है . उन्हें विजय माल्या के सुख और उनकी सुविधाओं की चिंता है, पर विजय माल्या की वजह से जो लोग सड़कों पर आ गये, उनकी कोई चिंता नहीं है.


आज अंग्रेज़ों ने जिस तरह की मानसिकता दिखाई है . उससे एक बार फिर ये साफ हो गया है कि आज भी अंग्रेज़ों का नज़रिया भारत के लोगों के प्रति बदला नहीं है . अब अंग्रेज़ों को अपनी अकड़ के सिंहासन से नीचे उतर जाना चाहिए क्योंकि अब भारत स्वतंत्र हो चुका है . भारत ने ये स्वतंत्रता बहुत बड़े बलिदान के बाद पाई है . हम रहें या ना रहें लेकिन ये देश हमेशा रहेगा . हमें पूरा भरोसा है कि वो दिन जरूर आएगा जब भारत Superpower बनेगा . दुनिया भारत को विश्व गुरु बनते हुए ज़रूर देखेगी. 


आज के दौर में भारत एक बहुत बड़ी आर्थिक शक्ति है. GDP की कसौटी पर भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा देश है, और अगले एक वर्ष में भारत ब्रिटेन से आगे निकल जाएगा और पांचवां सबसे बड़ा देश बन जाएगा.
भारत की हैसियत अब ऐसी है कि वो कॉमनवेल्थ देशों का नेतृत्व कर सकता है.