कर्नाटक विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस ने अपने-अपने सियासी दांव लगाने शुरू कर दिए हैं. मीडिया में भी सारी चर्चाएं इन्‍हीं दोनों दलों के बीच हो रही हैं. हालांकि इन सबके बीच सूबे की सियासत में कभी कद्दावर पार्टी रही जनता दल (सेक्‍युलर) यानी जेडीएस की चर्चा थोड़ी कम हो रही है. लेकिन सियासी और जातीय समीकरण के लिहाज से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की इस पार्टी को माना जा रहा है कि यह कांग्रेस या बीजेपी के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है.


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वजह
1. एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बनने से पहले कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री रहे हैं. वह कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं. उनके बेटे एचडी कुमारस्‍वामी भी कर्नाटक के मुख्‍यमंत्री रहे हैं. हालांकि राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक कुमारस्‍वामी के विवादों के चलते देवगौड़ा की साख भी प्रभावित हुई है.


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2. 224 सीटों वाली विधानसभा के लिए जेडीएस ने बसपा के साथ गठबंधन कर लिया है. हालांकि बसपा का कोई बड़ा जनाधार नहीं है लेकिन इस गठबंधन के तहत जेडीएस ने अल्‍पसंख्‍यकों के साथ दलितों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है.


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3. इसका सीधा असर कांग्रेस पर पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्‍योंकि कर्नाटक के कुल 13 जिलों में से दक्षिणी कर्नाटक के चार जिलों में वोक्‍कालिगा समुदाय का दबदबा है. यह समुदाय ही जेडीएस का प्रमुख वोटबैंक है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के बीच जिन सीटों पर सीधा मुकाबला होगा, उसमें जेडीएस, कांग्रेस के लिए वोटकटवा का काम करेगी क्‍योंकि दोनों ही दलों का वोटबैंक एक जैसा है.


4. हालांकि कुछ समय पहले एचडी देवगौड़ा ने रेल मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की थी, उसके बाद बीजेपी के साथ तालमेल के कयास लगाए गए थे लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने ऐसी किसी संभावना से इनकार किया था. बीच में इस तरह की अटकलें भी उठीं कि जेडीएस और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो सकता है लेकिन एचडी देवगौड़ा ने इससे भी साफ इनकार कर दिया है.


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5. बीजेपी के सीएम चेहरे बीएस येदियुरप्पा को लिंगायत समुदाय का तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की बेटे एचडी कुमारस्वामी को वोक्कालिगा समुदाय का नेता माना जाता है. राज्य में इन दोनों जातियों की आबादी क्रमश: 17 और 12 फीसदी मानी जाती है. राज्य में करीब 17 फीसदी अल्पसंख्यक भी हैं जिसमें 13 फीसदी मुसलमान और चार फीसदी ईसाई हैं. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग की तादाद काफी अधिक है. ये पूरी आबादी का 32 प्रतिशत हैं.


जातीय समीकरण
राज्य की राजनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों जातियों का दबदबा है. सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं. सत्तर के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतिहर जाति वोक्कालिगा लोगों के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे. वोक्कालिगा, दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है. कांग्रेस के देवराज उर्स ने लिंगायत और वोक्कालिगा लोगों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ दिया. अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और दलितों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर देवराज उर्स 1972 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. इस बार मुख्‍यमंत्री सिद्दारमैया भी देवराज उर्स जैसा प्रयास करते नजर आ रहे हैं. वह खुद पिछड़े तबके से आते हैं और प्रभुत्‍व जातियों को छोड़कर अति पिछड़ों और दलितों को साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं.