इसमें कोई दोराय नहीं कि जलेबी, भारत में सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाली मिठाई है. इसकी कुरकुरी, मीठी और सोने जैसी रंगत, इसे हर उम्र के लोगों का फेवरेट मिठाई बनाती है. कई जगह पर इसे दही तो कहीं रबड़ी के साथ खाया जाता है. इसके बिना शादी-पार्टी का मजा भी अधूरा लगता है. 


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लेकिन क्या आप जानते हैं, सबसे पहली बार भारत में जलेबी कब बनायी गयी थी? वैसे तो जलेबी की उत्पत्ति के बारे में कई मत हैं. कई इतिहासकारों का मानना है कि जलेबी का मूल रूप जलबिज था, जो प्राचीन फारस और अरब देशों में प्रचलित था. अब ऐसे में जलेबी के स्वदेशी होने पर सवालिया निशान लग जाते हैं.  


भारत में कब पहुंची जलेबी

भारत में जलेबी का आगमन लगभग 15वीं शताब्दी के आसपास हुआ. इसे विशेष रूप से मुसलमान शासकों द्वारा भारत में लाया गया. जलेबी ने जल्दी ही भारतीय समाज में अपनी जगह बना ली, और इसे त्योहारों, शादी-ब्याह, और अन्य खास अवसरों पर परोसा जाने लगा.


जलेबी से जुड़ी ये थ्योरी भी जानें

कुछ लोग कहते हैं कि जलेबी की उत्पत्ति तुर्की में हुई और भारत पहुंचने से पहले यह ट्यूनीशिया पहुंची. दूसरों का दावा है कि इसे अब्बासिद ख़लीफ़ा हारुन अल-रशीद के शासनकाल के दौरान एक संगीतकार द्वारा बनाया गया था. 
 
जलेबी की विशेषताएं

जलेबी को बनाने की विधि भी इसे खास बनाती है. इसे मैदा, दही और पानी के मिश्रण से तैयार किया जाता है. इस मिश्रण को एक विशेष पाईप में डालकर गर्म तेल में गोल आकार में तला जाता है. फिर इसे चाशनी में डुबोकर, गरमा-गरम परोसा जाता है. जलेबी के रंग और आकार में भिन्नता होती है, लेकिन आमतौर पर इसे सुनहरे रंग में तला जाता है.


जलेबी का सांस्कृतिक महत्व

भारत में जलेबी केवल एक मिठाई नहीं, बल्कि यह कई संस्कृतियों और परंपराओं का प्रतीक है. खासतौर पर, जलेबी को दीवाली, ईद, और अन्य त्योहारों पर विशेष महत्व दिया जाता है. उत्तर भारत में, खासकर दिल्ली और पंजाब में, जलेबी को सुबह-सुबह गर्मागर्म दूध या दही के साथ परोसा जाता है.