आज के दौर में डेटिंग की दुनिया काफी कॉम्प्लिकेटेड हो गई है. कई लड़के इस उलझन में हैं कि लड़कियों से सही तरीके से बात कैसे करें, कनेक्शन कैसे बनाएं या फ्रेंडजोन से कैसे बचें. ऐसे में ‘डेटिंग कोच’ एक नया पेशा बन गया है, जहां ये गुरू हजारों से लेकर लाखों रुपये लेकर सिंगल पुरुषों को सिखाते हैं कि कैसे अट्रैक्टिव लड़कियों को इम्प्रेस किया जाए.


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टीओआई के एक खबर के अनुसार, इस बिजनेस में कई नाम सामने आ रहे हैं. जैसे कि यदुवीर सिंह मनहास, जो लड़कों को लड़कियों से ‘कोल्ड अप्रोच’ यानी अनजान लड़कियों से सीधे बातचीत करने की कला सिखाते हैं. उनके अनुसार, अगर आप उस लड़की को दोबारा नहीं देखेंगे, तो आपको ज्यादा एक्टिव होना होगा. उनके कोर्स में बार, क्लब और मॉल जैसे पब्लिक जगहों पर लड़कियों से बातचीत की प्रैक्टिस करवाई जाती है. हाल ही में, उनकी बाली ट्रिप पर ऐसी ट्रेनिंग की कीमत 4 लाख रुपये प्रति व्यक्ति था. डेटिंग कोचों का एक और शब्दकोष है- ‘क्लोजिंग’ जैसे शब्द. क्लोजिंग का अर्थ होता है- नंबर पाना, किस करना या सेक्स तक पहुंचना. इन गुरुओं के लिए यह एक तरह का खेल बन गया है, जहां लड़कियों को लक्ष्य की तरह देखा जाता है.


क्या कहते हैं कोच और उनके छात्र?
प्रतीक जैन, जो पहले फाइनेंस में थे, अब पुरुषों को ‘असली मर्दानगी’ अपनाने की सलाह देते हैं. उनके इंस्टाग्राम पर ऐसे वीडियो भरे पड़े हैं जो बताते हैं कि महिलाओं से बात करना एक कला है, जिसे सीखने की जरूरत है. उनके छात्रों के लिए आत्मविश्वास सबसे बड़ा बदलाव होता है. वहीं, फरीदाबाद के अरुणव गुप्ता का कोर्स भी कुछ ऐसा ही है. वे सबसे पहले अपने छात्रों का फैशन मेकओवर करवाते हैं. इसके बाद उन्हें रोजाना नए लोगों से बात करने जैसे टास्क दिए जाते हैं. अरुणव के अनुसार, लड़कियों आपको बता देती हैं कि उन्हें आपसे बात करने में रुचि है या नहीं. अगर वह मुस्कुरा रही हैं या उनके पैर आपकी ओर हैं, तो इसका मतलब वे दिलचस्पी रखती हैं.


डेटिंग कोर्स के विवादास्पद पहलू
हालांकि, इन कोर्सों में कुछ सुझाव उपयोगी हैं, जैसे- बातचीत को परफॉर्मेंस न समझें और अनुभव पर ध्यान दें. लेकिन अधिकतर टिप्स लड़कियों को एक वस्तु की तरह पेश करते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ वीडियो में कम उम्र की लड़कियों को पुल करने का जिक्र है, जो नैतिक रूप से काफी गलत है. दिलचस्प बात यह है कि कोच खुद मानते हैं कि उनके छात्र 'परिणाम’ पर अधिक ध्यान देते हैं. जैसे कि एक कोच कश्तीज सहारावत कहते हैं कि छात्र चाहते हैं कि वे खूबसूरत और अट्रैक्टिव लड़कियों के साथ जुड़ें. उनका ध्यान आत्म-सुधार पर नहीं, बल्कि वैलीडेशन पर रहता है.


समाज में डेटिंग गुरुओं की जगह
डेटिंग गुरुओं की यह दुनिया सवाल खड़े करती है. क्या यह वाकई में पुरुषों को जेनुइन कनेक्शन बनाना सिखा रही है या सिर्फ महिलाओं को लुभाने का एक खेल बना रही है. इन कोर्सों में मौजूद कई कंटेंट न केवल पुराने जेंडर स्टीरियोटाइप को दोहराते हैं, बल्कि लड़कियों की सहमति और उनके इमोशन की अनदेखी भी करते हैं. एक्सपर्ट्स का मानना है कि असली समस्या भारतीय पुरुषों की सामाजिक परवरिश में है, जहां बचपन से लड़के-लड़कियों के बीच सामाजिक दूरी बना दी जाती है.