11 मार्च हर मां के लिए एक अहम तारीख बन गई है. इसका कारण है महाराष्ट्र सरकार द्वारा हर गवर्नमेंट डॉक्यूमेंट में पिता के साथ मां का नाम भी जरूरी करना. भले ही यह फैसला सिर्फ एक राज्य तक सीमित है लेकिन इससे देशभर की माताओं को उनके त्याग और अपने बच्चे के प्रति समर्पण को पहचान मिली है. बता दें 1 मई, 2024 से लागू  जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल दस्तावेज, प्रॉपर्टी दस्तावेज, आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे सभी सरकारी दस्तावेजों पर मां का नाम अनिवार्य होगा.


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इसमें कोई दोराय नहीं कि एक मां अपने बच्चे के लिए पिता से ज्यादा त्याग करती है. बच्चे को गर्भ में 9 महीने तक रखने के परिश्रम से लेकर उसके बड़े होने तक सारा काम एक मां की जिम्मेदारी बन जाती है. यह काम कोई भी पुरुष नहीं कर सकता है. लेकिन जब भी बच्चे की पहचान की बात आती है तो सबसे पहले पिता का नाम आता है. यह पैट्रिआर्कल सोसायटी वह व्यवस्था है जिसमें एक मां के महत्व को पूरी तरह से नकार दिया जाता है. एक औरत बस पुरुषों के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाती है.



पैट्रिआर्कल सोसायटी में नहीं समझा गया महिलाओं का महत्व

पितृसत्ता जहां एक पुरुष ही सारे फैसले लेता है. वही घर का मुखिया होता है. महिलाओं को उतनी ही आजादी होती है जितनी की एक पुरुष उसे देना चाहे. वह भी सिर्फ इसलिए कि वह पैसा कमाकर लाता है. आज भी भले हम मॉर्डन सोसायटी बन रह हैं लेकिन अभी भी महिलाओं को अपने मन का काम करने के लिए अपने पिता, भाई, पति या बेटे से सलाह लेनी पड़ती है. जब अपने बेसिक अधिकारों के लिए ही लड़ना पड़े तो इससे खुद के महत्व को समझा जा सकता है.


पहचान के लिए क्यों जरूरी मां का नाम

अपनी पहचान के लिए मां का नाम जोड़कर आप उस व्यक्ति को पहचान देते हैं जिसने आपकी खुशी और आराम के लिए हर मुमकिन कोशिश की है. भले ही वह कमाती ना हो लेकिन घर संभालना उसकी जिंदगी को आसान नहीं बना देता है. ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि एक मां पिता का किरदार निभा सकती है लेकिन एक पिता के लिए अपने बच्चों का मां बनना नामुमकिन जैसा होता है.


बच्चे के लिए माता-पिता दोनों जरूरी

जिस तरह से एक बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए माता-पिता दोनों का होना जरूरी माना जाता है. ठीक उसी तरह बच्चे की पहचान भी उसके माता-पिता दोनों के नाम से होनी चाहिए. ताकी बच्चा यह समझ सके कि मां का किरदार उसके जीवन पिता से कम नहीं है.