कभी पुलिस तो कभी डिलीवरी बॉय बने रोबोट, कोरोना काल में ऐसे की इनसानों की मदद
पिछले चार महीनों में कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉक डाउन ने पूरी दुनिया के सोचने का तरीका बदल दिया है. इस वक्त में सबसे ज्यादा अगर किसी का उपयोग हुआ है, तो वो है रोबोट्स का.
नई दिल्ली: पिछले चार महीनों में कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से हुए लॉकडाउन ने पूरी दुनिया के सोचने का तरीका बदल दिया है. इस वक्त में सबसे ज्यादा अगर किसी का उपयोग हुआ है, तो वो है रोबोट्स का. यूरोप के कई देशों में रोबोट्स रोजमर्रा की जीवनशैली में शामिल हो गए हैं.
सबसे पहले चीन ने रोबोट्स का प्रयोग कोराना वायरस से लड़ने में किया. चाहे पूरे शहर में दवा का छिड़काव हो या फ्यूमिगेशन, वहां यह काम रोबोट्स करते हैं. सिंगापुर में भी इस तकनीक का जम कर इस्तेमाल हुआ.
घर के काम के लिए रोबोट्स
जब लोग घरों पर रहने लगे, तो घर का काम करने के लिए ऐसे रोबोट्स आए, जो हंसते हुए सारा काम निपटाने लगे. यूरोप और अमेरिका में इस तरह के रोबोट्स का खूब इस्तेमाल हुआ. अमेरिका में लोगों ने अपना अकेलापन हटाने के लिए दोस्त रोबोट्स की खरीदारी की, जो उनके कहने पर गाना सुनाता, खाना बनाता और घर के काम करता. आप चाहें तो उसकी गोद में सिर रख कर सो भी सकते हैं.
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पुलिस ने भी किया इस्तेमाल
ट्यूनीशिया की राजधानी में पोलिस ने अपने पेट्रोल में रोबोट्स शामिल किए. इन रोबोट्स की ड्यूटी थी कोरोना वायरस पीड़ितों की आवाजाही पर नजर रखना, उन्हें सचेत करना और रोगियों को दूसरों से मिलने से रोकना.
एस्टोनेशिया ने उठाए ये कदम
एस्टोनियन कंपनी स्टारशिप ने लॉक डाउन के समय में एक ऐसा रोबोट इंट्रोड्यूस किया, जो लोगों को उनके घर का सामान, राशन-पानी घर तक पहुंचाया करता था. रोबोट को कहीं भी आने-जाने में रोक-टोक नहीं थी. ह्यूमन टच ना होने की वजह से वे घर तक जा कर सामान की डिलीवरी करते थे.
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नए रोबोट्स इस तरह होंगे
वर्क फ्रॉम होम को आसान बनाने के लिए अब ऐसे रोबोट बन रहे हैं जो काम आसान करेंगे. की बोर्ड चलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. वे समय पर चेताएंगे कि आपको इतने कदम और चलना है. आपका हैल्थ रूटीन, खान-पान सबकी देखरेख करेंगे.
अमरीकी वैज्ञानिक डॉ एडवर्ड जॉर्ज कहते हैं, ‘नई पीढ़ी के युवा अपने साथी के रूप में रोबोट को पसंद कर रहे हैं. जो बिलकुल डिमांड नहीं करता.’ हालांकि रोबोट के बढ़ते चलन से सोशन साइंटिस्ट हिलेरी विलियम्स ने चेताया है कि आने वाले दिनों में मशीनों पर निर्भरता की वजह से अवसाद और तनाव में कई गुना वृद्धि होगी.
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