Side Effects of Finger Print Scanner: अगर आपने आज दफ्तर में अटेंडेंस लगाने के लिए फिंगर प्रिंट स्कैनर पर उंगलियां स्कैन करते हैं तो हो सकता है कि आप बीमार हो जाएं. ऑफिस से बीमारी की छुट्टी लेने के लिए भी आप अपने ऑफिस में लगे बायोमीट्रिक स्कैनर को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. शीशानुमा दिखने वाला ये स्कैनर एक व्यक्ति के बैक्टीरिया यानी कीटाणु दूसरे व्यक्ति के हाथों में ट्रांसफर करने का काम कर रहा है.


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बरेली के Indian Council of Agricultural Research यानी ICAR-IVRI में हुए शोध में जो परिणाम सामने आए हैं, उसे सुनकर आप अगली बार अंटेंडेंस लगाते हुए जरूर सोचेंगे.


फिंगर प्रिट स्कैनर पर मिले बैक्टीरिया


ICAR-IVRI के रिसर्चर ने अलग अलग जगहों पर लगे 17 स्कैनर्स को टेस्ट किया. इन पर 23 अलग अलग प्रकार के बैक्टीरिया की 58 किस्में मिली. इनमें से 42 बैक्टीरिया ऐसे थे, जिन पर कोई भी एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर रही थी. 22 पर एक दवा तो 20 पर कई दवाओं ने काम किया.


चिंता वाली बात ये थी कि बायोमीट्रिक तरीके से जहां जितनी ज्यादा अटेंडेंस लग रही थी, वहां बैक्टीरिया भी उतने ही ज्यादा मिले. सभी तरह के खतरनाक बैक्टीरिया इन स्कैनर्स पर पनप रहे थे. इनमें सबसे खतरनाक बैक्टीरिया के नाम ई कोलाई, क्लैबसेला निमोनिया और एंटीरोबैक्टर एग्लोमीरेन हैं. ई कोलाई, आंतों के इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार होता है. क्लेबसेला निमोनिया, ये वो कीटाणु है जिस पर कोई एंटीबायोटिक दवा काम नहीं कर पा रही है


मुश्किल में पड़ सकते हैं मरीज 


Metro hospital की एमडी डॉ सोनिया लाल गुप्ता के मुताबिक इन सुपरबग्स की चपेट में आने पर व्यक्ति की हालत गंभीर हो सकती है. उसे अगर कोई खतरनाक इंफेक्शन हुआ तो हो सकता है उस पर दवाएं काम ना करें. अस्पतालों के आईसीयू में भी इस तरह के खतरनाक बैक्टीरिया पनप रहे हैं, जो मरीजों की जान को और मुश्किल में डाल देते हैं.


ऑफिस की अटेंडेंस, किसी जरुरी कागजात के लिए फिंगर स्कैन करते वक्त शायद ही कोई बीमारी के बारे में सोचता होगा. मोबाइल फोन की स्क्रीन को लेकर पहले भी कई रिसर्च हो चुकी हैं, जिसमें स्क्रीन पर 25 हज़ार बैक्टीरिया का घर पाया गया था. 2017 में ये मामला संसद में भी उठा था, जिसमें दिल्ली के आईसीएमआर Indian Council for Medical Research की स्टडी को सामने रखा गया.


मोबाइल फोन पर सबसे ज्यादा बैक्टीरिया


इस स्टडी में 386 लोगों ने हिस्सा लिया था. इनमें से 132 अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी थे. 54 लोग मेडिकल कालेज के स्टाफ थे. 100 मेडिकल स्टूडेंटस और 100 लोग (कंट्रोल ग्रुप) भी इसमें शामिल थे. इनमें से 82 फीसदी लोगों के मोबाइल फोन पर बैक्टीरिया की ग्रोथ यानी कीटाणु पाए गए. 


MOBILE PHONE की 'गंदी बात'


मोबाइल फोन के एक स्कवेयर इंच जगह पर 25 हज़ार कीटाणुओं का बसेरा होता है. यानी जितना बड़ा मोबाइल उतने ज्यादा कीटाणु. अमूमन टायलेट सीट मोबाइल फोन से साफ होती है क्योंकि उसकी वक्त वक्त पर साफ सफाई की जाती है. लेकिन मोबाइल फोन की सफाई करने वालों की संख्या दुनिया भर में गिनती के लोगों की ही है. 


इतना ही नहीं मोबाइल के हैंडसेट पर मौजूद बैक्टीरिया टायलेट के फ्लश हैंडल पर मौजूद GERMS यानी कीटाणुओं के मुकाबले 18 गुना ज्यादा खतरनाक होते हैं. मोबाइल फोन, टायलेट सीट, पब्लिक लिफ्ट्स के बटन और प्लास्टिक की पानी की बोतल और बॉटल के ढक्कन पर भी इसी तरह के बैक्टीरिया की ग्रोथ पाई जाती है.


कोरोना काल में लोगों को सैनेटाइजर का इस्तेमाल करने की आदत पड़ी थी, जो अब छूट गई है. बार बार हाथ धोने की आदत और सैनेटाइजर का प्रयोग इस जानलेवा खतरे से बचा सकता है.