अरावली की गोद में बन रहा ‘तपोवन’, असोला में लगाए जाएंगे 50 हजार से ज्यादा पेड़
दिल्ली के अरावली पहाड़ियों में स्थित असोला वाइल्डलाइफ सेंचुरी में एक अनूठा `तपोवन` विकसित किया जा रहा है. इस महत्वाकांशी परियोजना के तहत कम से कम 50 हजार से ज्यादा पेड़ लगाए जाएंगे.
दिल्ली के अरावली पहाड़ियों में स्थित असोला वन्यजीव अभयारण्य (Asola Wildlife Sanctuary) में एक अनूठा 'तपोवन' विकसित किया जा रहा है. इस महत्वाकांशी परियोजना के तहत कम से कम 50 हजार से ज्यादा पेड़ लगाए जाएंगे.
यह तपोवन 22 उप-वन में विभाजित होगा, जिनमें से प्रत्येक किसी न किसी ऋषि या भारतीय पौराणिक कथा के चरित्र को समर्पित होगा. इन उप-वनों में ऐसे पौधे लगाए जाएंगे जिनका ज्योतिष शास्त्र से संबंध है. उदाहरण के लिए, वशिष्ठ ऋषि को समर्पित उपवन में वैद्यनाथ का पेड़ लगाया जाएगा, जबकि दुर्गा मां को समर्पित उपवन में ज्वाला का पौधा लगाया जाएगा.
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुछ विदेशी प्रजातियां अरावली की जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हैं. इसलिए, उन्हें देशी प्रजातियों के ऐसे पौधों से बदला जा रहा है, जिनका ज्योतिषीय महत्व समान है. यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगी बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करेगी.
प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम
तपोवन प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का एक अनूठा संगम प्रस्तुत करेगा. पर्यटकों के लिए यह एक आकर्षण का केंद्र बनने के साथ-साथ पर्यावरण शिक्षा का भी केंद्र होगा. अधिकारियों का कहना है कि तपोवन को विकसित करने के लिए स्थानीय समुदायों को भी शामिल किया जाएगा. इससे उन्हें वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता के प्रति जागरूक बनाने में मदद मिलेगी.
दिल्ली का पर्यावरण होगा बेहतर
तपोवन प्रोजेक्ट न केवल दिल्ली के पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद करेगी बल्कि यह पारंपरिक ज्ञान और प्रकृति के बीच संबंध को मजबूत करेगी. यह परियोजना देश में अपने तरह की एक अनूठी पहल है और पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है.
2023 में बनाया छोटा तपोवन
वन विभाग ने 2023 में असोला भट्टी वाइल्डलाइफ सेंचुरी में एक और छोटा वन बनाया था, जिसे 'नक्षत्र वाटिका' नाम दिया गया था. यह राशियों की थीम पर आधारित था. इस वन में गोलाकार आकार के बगीचे में 27 अलग-अलग प्रजातियों के 50-50 पौधे लगाए गए थे, जहां हर प्रजाति के लिए बराबर जगह निर्धारित की गई थी.