नई दिल्ली: बागपत उत्तर प्रदेश को वह जिला जिसे जाटलैंड कहा जाता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सियासी गढ़ में बागपत अहम स्थान रखता है. बागपत पांडवों द्वारा बसाया गया एक प्राचीन शहर है, बागपत उन 5 गांवों में से एक था, जिसकी मांग पांडवों ने दुर्योधन से की थी और कहा था कि अगर वो ये गांव दे दें तो वो युद्द नहीं लड़ेंगे. बागपत लोकसभा सीट पर पहले चरण में 11 अप्रैल को वोट डाले गए. इस बार कुल 13 उम्मीदवार यहां से मैदान हैं. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, आरएलडी से जयंत चौधरी मैदान में हैं. जबकि, शिवपाल सिंह यादव की पार्टी ने चौधरी मोहम्मद मोहकम को प्रत्याशी बनाया है.


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अजीत सिंह लड़ चुके यहां से चुनाव
देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से ही सांसद रह चुके हैं और उसके बाद उनके बेटे अजित सिंह ने यहां पर कई बार चुनाव जीता है. साल 2014 में ऐसी चली मोदी लहर के दम पर भारतीय जनता पार्टी ने यहां परचम लहराया और मुंबई पुलिस के कमिश्नर रह चुके सत्यपाल सिंह सांसद चुने गए और अजित सिंह इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे.


2014 में चली थी मोदी बयार
जाटों का गढ़ माने जाने वाले बागपत में राष्ट्रीय लोक दल को बड़ा झटका तब लगा जब पिछले लोकसभा चुनाव में उनके प्रमुख अजित सिंह को यहां से हार झेलनी पड़ी. बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने इस सीट से 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की. जबकि अजित सिंह को 20 फीसदी से भी कम वोट मिले.


2014 में ये था समीकरण
साल 2014 के चुनाव पर इस सीट पर नंबर दो पर सपा, नंबर तीन पर रालोद और नंबर चार पर बसपा थी. साल 2014 के चुनाव में 15,05,175 वोटरों ने हिस्सा लिया था, जिसमें 56 प्रतिशत पुरुष और 43 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं. सत्यपाल सिंह सांसद और गुलाम मोहम्मद के बीच जीत का अंतर मात्र 20 प्रतिशत वोटों का था.


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क्या है राजनीति इतिहास 
साल 1977 में यहां पर भारतीय लोकदल के चौधरी चरण सिंह पहली बार सांसद चुने गए. इसके बाद वो लगातार दो बार जीते लेकिन तीनों बार वो अलग-अलग पार्टी से यहां विजेता बने. 1989 और 1991 में दोनों बार जनता दल की टिकट पर यहां अजित सिंह जीते, 1998 के उप चुनाव में अजित सिंह के राजनीतिक करियर पर 1 साल का छोटा सा ब्रेक लगा पर उन्होंने 1999 में फिर से वापसी की और लगातार 3 बार जीते, उन्होंने हर बार यहां अलग पार्टी से चुनाव लड़ा है लेकिन साल 2014 में बीजेपी ने यहां अजीत सिंह की जीत को हार में बदल दिया.