नई दिल्लीः कांग्रेस के लिए खास मानी जाने वाली मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट अब उसके हाथों से खिसकती हुई नजर आ रही है. सिंधिया परिवार के वर्चस्व वाली इस सीट पर अभी तक इसी राजघराने के सदस्यों का कब्जा रहा है, लेकिन मौजूदा हालातों को देखकर लग रहा है जैसे ग्वालियर राजघराने पर से अब जनता का विश्वास उठ चुका है, तभी तो राजघराने के सदस्य पहली बार यहां हारते हुए दिखाई दे रहे हैं. वह भी छोटे-मोटे अंतर से नहीं, बल्कि एक लाख के ज्यादा के अंतर से.


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बता दें मध्य प्रदेश की इस सीट पर शुरुआत से ही सिंधिया परिवार का राज है, जबकि पिछले 20 सालों से कांग्रेस का. अंतिम बार राजमाता विजायराजे सिंधिया ने बीजेपी को गुना में जीत दिलवाई थी, लेकिन यह पहली बार होगा जब सिंधिया राजघराने से इतर कोई अन्य व्यक्ति गुना में जीत हासिल करेगा. जो कि बीजेपी की एक बड़ी जीत को दिखाता है. बता दें भाजपा उम्मीदवार केपी यादव पहले सिंधिया के ही सांसद प्रतिनिधि रह चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला अपने ही सांसद प्रतिनिधि के साथ चल रहा है.



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गुना लोकसभा सीट पर पहली बार 1957 में चुनाव हुए थे, जिसमें राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने यहां कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज कराई थी. इसके बाद 1962, 1967 , 1971 और 1977 में भी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने ही यहां जीत दर्ज कराई थी. उनके बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने गुना की जनता का विश्वास जीता और यहां के सांसद चुने गए और उनकी मौत के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनकी विरासत को संभाला, लेकिन अभी तक के नतीजों को देखकर लग रहा है, जैसे अब सिंधिया परिवार की विरासत उनके हाथ से निकल रही है.


फोटो साभारः facebook

पिता की मौत के बाद राजनीति में आए सिंधिया ने 2002 के उपचुनाव में पहली बार जीत दर्ज कराई थी. जिसके बाद उन्होंने 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में भी जीत हासिल की थी. हालांकि सिंधिया परिवार की जीत का सिलसिला अब टूटता हुआ दिखाई दे रहा है. वहीं सिंधिया के हार की तरफ बढ़ने पर हर कोई हैरान है कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है. क्योंकि गुना में राजघराने का कोई भी सदस्य आज तक कभी नहीं हारा है.


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2018 के अंत में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों को देखकर तो कोई भी इस बात का अंदाजा तक नहीं लगा सकता था कि सिंधिया इतने बड़े अंतर से अपने ही सांसद प्रतिनिधि से हार जाएंगे. हालांकि, गुना की जनता के बदले फैसले को राजनीतिज्ञ मोदी लहर का असर बता रहे हैं. शायद यही कारण है कि कांग्रेस का गढ़ अब ढहने की कगार पर है.