नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद से राहुल गांधी के नेतृत्व एवं पार्टी के संगठन को लेकर उठ रहे सवालों पर राजनीतिक विश्लेषक और 'सीएसडीएस' के निदेशक संजय कुमार ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष 'असेट' और 'लाइबिलिटी' दोनों हैं. उन्होंने पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए बड़े नेताओं के बीच टकराव दूर करने की जरूरत पर भी जोर दिया. कुमार ने कहा कि 2019 की यह करारी हार कांग्रेस के लिए अप्रत्याशित है, क्योंकि उसके खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं थी. इसलिए लगता है कि कांग्रेस को इससे कहीं बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए था और जिस तरह की हार हुई है उसमें तो नेतृत्व की जिम्मेदारी निश्चित तौर पर बनती है.


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बाहरी के अध्यक्ष बनने से होगी मुश्किल
राहुल और गांधी परिवार से हटकर किसी दूसरे नेता को कांग्रेस का नेतृत्व सौंपने की जरूरत के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ दें और गांधी परिवार के बाहर का कोई दूसरा व्यक्ति अध्यक्ष बन जाए तो शुरुआत के कुछ महीने बहुत मुश्किल होंगे और बिखराव की स्थिति होगी. तब पार्टी के लिए एकजुट रहना मुश्किल हो जाएगा. हो सकता है कि आगे चलकर चीजें ठीक हो जाएं. 



कुमार ने कहा, ‘मेरा मानना है कि राहुल 'असेट' और 'लाइबिलिटी' दोनों हैं. राहुल गांधी 'लाइबिलिटी' हैं, क्योंकि वह पार्टी के पक्ष में वोटों को लामबंद नहीं कर पा रहे हैं. दूसरी तरफ, वह 'असेट' भी हैं, क्योंकि उनकी वजह से पार्टी एकजुट है.’



जनता कांग्रेस की विचारधारा को नकार रही है
इस चुनाव में कांग्रेस की गलतियों के सवाल पर उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टी ने काफी नकारात्मक प्रचार करने की कोशिश की. उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति पर आरोप लगाने की कोशिश की जिसकी जनता के बीच बहुत विश्वसनीयता है. उन्हें बहुत पहले ही समझ जाना चाहिए था कि आपकी बात जनता के बीच स्वीकार नहीं की जा रही. इस चुनाव में कांग्रेस की अच्छी छवि और मजबूत साख नहीं बन पाई. कुमार ने माना कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के विमर्श में जनता कांग्रेस की विचारधारा को नकार रही है. 


बीजेपी बहुसंख्यकों के पक्ष में है
उन्होंने कहा कि अब भी बड़े पैमाने पर लोगों को यही लगता है कि कांग्रेस की विचारधारा बहुसंख्यक विरोधी और अल्पसंख्यक समर्थक है. वे मानते हैं कि यह पार्टी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण कर रही है और उसे बहुसंख्यकों की चिंता नहीं है. जबकि भाजपा के बारे में लोगों को लगता है कि वह बहुसंख्यकों के पक्ष में है. अब देखना होगा कि कांग्रेस की यह छवि कब टूटती है.



कांग्रेस में नई जान फूंकने के उपायों के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संगठन को मजबूत करना होगा. बड़े-बड़े नेताओं के बीच टकराव बहुत ज्यादा है, जिसे दूर करना होगा. जिले और ब्लॉक स्तर पर कार्यकर्ताओं से लगातार वार्तालाप की जरूरत है. नेताओं को समय पर सड़क पर आने और जनता के साथ संपर्क साधने की जरूरत है.