लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को अलग तरह से परवान चढ़ाने में जुटे दो नेताओं को लोकसभा चुनाव के परिणाम भरी दुपहरी में सूर्यास्त का अहसास करा गए. ये दोनों अपनी-अपनी पार्टी बनाकर चुनावी जंग में उतरे थे.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ये दो नेता हैं- प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया (प्रसपालो) के अध्यक्ष शिवपाल यादव और जनसत्ता पार्टी के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया. ये दोनों इस चुनाव में अपनी छाप तो नहीं ही छोड़ पाए, इतने वोट भी नहीं पा सके कि इनका राजनीतिक रुतबा कायम रह सके.


अपने भतीजे अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी प्रमुख) से मतांतर के बाद शिवपाल ने पिछले साल ही अपनी पार्टी बनाई थी, मगर कुछ हासिल नहीं हुआ. शिवपाल हालांकि अभी भी सपा के विधायक हैं. वह प्रसपालो के टिकट पर फिरोजाबाद से अपने दूसरे भतीजे अक्षय यादव के खिलाफ लड़े थे.


कोई सीट नहीं दिला पाए
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिवपाल भले ही अपनी पार्टी को कोई सीट नहीं दिला पाए, मगर सपा को नुकसान जरूर पहुंचाया. उन्हें अक्षय यादव की हार का कारण माना जा रहा है. भतीजे को जहां 4.67 लाख वोट मिले, वहीं चाचा 91,869 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे. फिरोजाबाद सीट से भाजपा उम्मीदवार चंद्रसेन जीते.


क्षमता पर सवाल
इस चुनाव में प्रसपालो के उम्मीदवार अन्य निर्वाचन क्षेत्र में भी कुछेक हजार वोट ही पा सके. अखिलेश यादव के समर्थक अब प्रसपालो प्रमुख की क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं.


कोई कमाल नहीं
दूसरी तरफ, राजा भैया और उनकी जनसत्ता पार्टी भी इस चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाई, बल्कि उनका खेमा उत्साहहीन नजर आई. कटाक्षों की बौछार झेलती रही सो अलग.


प्रतापगढ़ और कौशांबी में दबदबा
कुंडा से पांच बार विधायक रहे राजा भैया का प्रतापगढ़ और कौशांबी में अभी भी दबदबा है, लेकिन इन निर्वाचन क्षेत्र में वह अपने उम्मीदवारों को ठीकठाक वोट नहीं दिला पाए.


अपराजेयता भी अब संदिग्ध
प्रतापगढ़ से जनसत्ता पार्टी के उम्मीदवार अक्षय प्रताप सिंह 46,963 वोट पाकर चौथे पायदान पर रहे. कौशांबी में इसी पार्टी के उम्मीदवार शैलेंद्र कुमार 1.56 लाख वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे. इसके साथ ही राजा भैया की अपराजेयता भी अब संदिग्ध हो गई है.


(इनपुट-आईएएनएस)