Startup India: देश में इन दिनों स्टार्टअप की लहर देखने को मिल रही है. हर कोई नए-नए आइडिया के साथ नए बिजनेस को सेटअप करने में लगा हुआ है. वहीं कुछ स्टार्टअप काफी ज्यादा सफल होते हुए भी देखने को मिल रहे हैं और कुछ स्टार्टअप अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं. इस बीच स्टार्टअप से जुड़े कुछ अहम शब्दों को जान लेना भी काफी अहम हो जाता है, ताकी बिजनेस से जुड़ी बातों को समझना और भी ज्यादा आसान हो सके. यहां हम स्टार्टअप से जुड़े 10 शब्दों के बारे में आपको बताने वाले हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में...


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

एंटरप्रेन्योर
एंटरप्रेन्योर वो होते हैं तो कारोबार को शुरू करते हैं. इन्हें व्यवसायी या फिर उद्यमी कहा जाता है. बिजनेस में होने वाले मुनाफे-घाटे के लिए ये जिम्मेदार होते हैं.


क्राउडफंडिंग
क्राउडफंडिंग पैसा जुटाने का एक तरीका है. क्राउडफंडिंग के जरिए कारोबार में पैसा लगाने के लिए लोगों से पैसा मांगा जाता है.


प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट
इसके तहत आपको अपने आइडिया के बारे में बताना होता है ताकी निवेशकों से पैसा उठा सकें. प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट के आधार पर निवेशक आपके बिजनेस में निवेश करते हैं.


बी-2-बी बिजनेस
इसके तहत दो कारोबारों के बीच व्यवसाय होता है. इसमें कोई ग्राहक नहीं होता है. दो कारोबार ही एक दूसरे के क्लाइंट्स होते हैं. B2B का मतलब बिजनेस-टू-बिजनेस होता है.


बी-2-सी बिजनेस
इसके तहत बिजनेस और ग्राहकों के बीच लेनदेन होता है. इसमे बिजनेस सीधे ग्राहकों से जुड़े होते हैं. B2C बिजनेस का मतलब बिजनेस-टू-कस्टमर होता है.


प्री रेवेन्यू
प्री रेवेन्यू उस स्टेज को कहा जाता है, जब स्टार्टअप की कोई कमाई नहीं होती है. इस स्थिति में निवेशकों के जरिए यह अनुमान लगाया जाता है कि कोई स्टार्टअप कितनी कमाई कर सकता है. रेवेन्यू जनरेट करने से पहले की स्थिति को प्री रेवेन्यू कहा जाता है.


ग्रॉस मार्जिन
कोई प्रोडक्ट कितने में बना यानी उसकी लागत कितनी आई और उस प्रोडक्ट को कितने में बेचा गया... लागत और बेचने के बीच जो अंतर आएगा उसे ग्रॉस मार्जिन कहा जाता है.


नेट मार्जिन
ग्रॉस मार्जिन में से प्रोडक्ट पर होने वाले अन्य खर्च जैसे मार्केटिंग, डिस्ट्रिब्यूशन, डिस्काउंट जैसे अन्य खर्च घटाए जाते हैं. इसके बाद जो बचता है उसे नेट मार्जिन कहा जाता है.


ओवरहेड चार्ज
ओवरहेड चार्ज वो होते हैं जो प्रोडक्ट को बनाने या डिलीवरी से जुड़े नहीं होते हैं. इनमें गोदाम का किराया, ऑफिस का किराया, इंश्योरेंस, लीगल फीस जैसे खर्च आते हैं.


कैश फ्लो स्टेटमेंट
कैश फ्लो स्टेटमेंट के तहत बिजनेस के पास पैसा आने और पैसा जाने के बारे में बताया जाता है. कहां से पैसा आ रहा है और कहां पैसा जा रहा है, इसके बारे में कैश फ्लो स्टेटमेंट में डिटेल में जानकारी दी जाती है.


जरूर पढ़ें:                                                                      


सिर्फ रजिस्ट्री कराने से नहीं बनते प्रॉपर्टी के मालिक, ये एक गलतफहमी अभी कर लें दूर NSE ने न‍िवेशकों को चेताया, यहां न‍िवेश करने वाले हो जाएंगे 'कंगाल'; आज ही न‍िकाल लें पैसा