सन 1927 से चल रहा एक्सपेरिमेंट, अब तक नहीं हुई खत्म, साइंटिस्ट बोले- अभी 100 साल और लगेंगे...
Longest Experiment: एक ऐसा वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट चल रहा है, जो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे लंबे समय तक चलने वाले साइंटिस्ट एक्सपेरिमेंट के रूप में दर्ज है. इस एक्सपेरिमेंट की शुरुआत 1927 में थॉमस पार्नेल ने की थी.
World’s Longest Running Experiment: ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी में एक ऐसा वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट चल रहा है, जो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में सबसे लंबे समय तक चलने वाले साइंटिस्ट एक्सपेरिमेंट के रूप में दर्ज है. इस एक्सपेरिमेंट की शुरुआत 1927 में थॉमस पार्नेल ने की थी, जो यूनिवर्सिटी के पहले फिजिक्स के प्रोफेसर थे. यह एक्सपेरिमेंट पिच (तरल पदार्थ) की धीमी गति से बहने की प्रकृति को दर्शाता है. हालांकि यह कमरे के तापमान पर ठोस प्रतीत होता है, लेकिन पिच वास्तव में एक अत्यधिक गाढ़ा तरल है. आज, लगभग एक सदी बाद यह प्रयोग अब भी जारी है और वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अगली 100 सालों तक चलता रहेगा.
यह भी पढ़ें: बाहर से झोपड़ी, अंदर से लग्जरी घर... झोपड़पट्टी के अंदर घुसते ही आएगी बंगले वाली फीलिंग, देखें वायरल Video
किस वजह से किया जा रहा एक्सपेरिमेंट
पिच ड्रॉप एक्सपेरिमेंट की शुरुआत थॉमस पार्नेल ने 1927 में की थी, जिसका उद्देश्य यह दिखाना था कि सामान्य वस्तुएं भी बहुत आश्चर्यजनक गुण दिखा सकती हैं. पिच टार से बनाई जाती है और इसे दुनिया का सबसे गाढ़ा तरल माना जाता है. पहले इसका उपयोग नावों को पानी से बचाने के लिए किया जाता था. हालांकि यह प्रतीत होता है कि पिच ठोस और कठोर है और इसे हथौड़े से तोड़ा जा सकता है, लेकिन पिच बहने में अत्यधिक धीमी होती है और यह पानी की तुलना में 100 बिलियन गुना अधिक गाढ़ी होती है.
देखें वायरल वीडियो-
एक कांच की फनल में हो रहा एक्सपेरिमेंट
इस प्रयोग के लिए पार्नेल ने पिच का एक नमूना गर्म किया और उसे एक कांच की फनल (बेलनाकार नली) में डाला, जिसमें एक सील किया हुआ स्टेम था. जब पिच ठंडी हुई, तो उन्होंने उसे तीन साल तक सेट होने दिया, फिर 1930 में फनल का स्टेम काट दिया. इसके बाद, पिच धीरे-धीरे फनल से टपकने लगी. यह प्रक्रिया इतनी धीमी थी कि पहले बूंद को गिरने में आठ साल लग गए और अगले पांच बूंदों को गिरने में 40 साल से अधिक का समय लगा. 1930 में फनल काटने के बाद अब तक केवल नौ बूंदें गिरी हैं.
कस्टमर ने खोली Swiggy डिलीवरी स्कैम की पोल? 400 ग्राम का गोभी सिर्फ 145g निकला, स्क्रीनशॉट वायरल
प्रयोग की गति और इसके परिणाम
इस प्रयोग को एक साधारण कैबिनेट में रखा गया है, जिसमें कोई विशेष परिस्थिति नहीं बनाई गई है. पिच की गति मौसम के तापमान पर निर्भर करती है. गर्म मौसम में पिच थोड़ी तेजी से टपकती है, जबकि ठंडे मौसम में यह धीमी हो जाती है. हालांकि, इस प्रयोग की शुरुआत से अब तक कोई भी व्यक्ति बूंद गिरते हुए नहीं देख सका. 2000 में, आठवीं बूंद को रिकॉर्ड करने के लिए एक कंप्यूटर और कैमरा सेटअप किया गया था, लेकिन एक ब्लैकआउट के कारण वह रिकॉर्ड नहीं हो सका.
1961 में, प्रोफेसर जॉन मेन्स्टोन ने इस प्रयोग की देखरेख करना शुरू किया और उन्होंने 52 साल तक इसे संभाला. दुर्भाग्यवश, पार्नेल व मेन्स्टोन भी अपनी जिंदगी में बूंद गिरते हुए नहीं देख सके. वर्तमान में, प्रोफेसर एंड्रयू व्हाइट पिच ड्रॉप प्रयोग के तीसरे और मौजूदा संरक्षक हैं.
पुरस्कार और सम्मान
2005 में, पिच ड्रॉप प्रयोग को मान्यता मिली, जब मेन्स्टोन और पार्नेल (मरणोपरांत) को इग नोबेल पुरस्कार मिला. इस अद्भुत प्रयोग ने यह साबित किया है कि विज्ञान में कुछ चीज़ें इतनी धीरे-धीरे घटित होती हैं कि उन्हें देख पाना मानव जीवन के लिए संभव नहीं होता, लेकिन फिर भी विज्ञान का यह प्रयोग लगातार दर्शाता है कि सटीकता और समय के साथ विज्ञान के रहस्य को समझने का एक तरीका होता है.