China attitude on Terrorism: आपने एक कहावत जरूर सुनी होगी. हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं. ये कहावत हमारे पडोसी देश चीन पर बिल्कुल ठीक बैठती है. चीन (China) के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक तरफ तो शांति, सद्भाव और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक साझेदारी जैसी बड़ी बड़ी बातें करते हैं, लेकिन जब बारी एक्शन लेने की आती है तो वो आतंकवादियों के हितैषी बन जाते हैं और उन्हे बचाने की कोशिशों में जुट जाते हैं. चीन वीगर मुसलमानों के नरसंहार में जुटा है और इस कार्रवाई को वो आतंकवाद निरोधी अभियान यानी काउंटर टेरिरिज्म कहता है. उसी चीन को पाकिस्तान (Pakistan) में बैठे आतंकी महापुरुष नजर आने लगते हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

अब्दुल रऊफ अजहर को बैन लगने से बचाया


आतंकवाद के मुद्दे पर फिर चीन (China) के दोहरे रवैये की पूरी दुनिया के सामने पोल खुल चुकी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान (Pakistan) के खतरनाक आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर पर प्रतिबंध लगाए जाने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया था. इस प्रस्ताव के अनुसार आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के कमांडर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की मांग की गई थी और उसकी संपत्तियों को फ्रीज़ करने के साथ साथ उसकी यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने का भी समर्थन किया गया था. लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव को बहाना बना कर टाल दिया. चीन ने बहाना बनाया कि वो अभी तक भारत के प्रस्ताव को ठीक से नहीं पढ़ पाया है और बिना ठीक से समझे वो इस प्रस्ताव पर कोई कदम नहीं उठाएगा.


अब आपको बताते हैं कि UNSC में इस तरह के प्रस्ताव को पेश करने और उसे पास करने की क्या प्रक्रिया है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं, इसमें पांच सदस्य स्थाई होते हैं, जबकि 10 अस्थाई सदस्य भी इसका हिस्सा होते हैं और इन्हे सिर्फ दो वर्षों के लिए ही चुना जाता है. ऐसे किसी भी प्रस्ताव को पास करने के लिए UNSC के सभी 15 सदस्यों की सहमति जरूरी होती है. भारत के इस प्रस्ताव को अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस समेत सभी 14 देशों ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन एकमात्र चीन ने आतंकी अब्दुल रऊफ़ पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी नहीं दी और उसे टाल दिया.


UNSC में चीन बन गया रऊफ की ढाल


अब आपको ये भी जान लेना चाहिए कि चीन (China) ने जिस अजहर रऊफ को बैन से बचाया है वो कौन है और कितना खतरनाक है. आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का भाई है और वो इस आतंकी संगठन का मेन कमांडर भी है. रऊफ अजहर वर्ष 1999 में एयर इंडिया के विमान आईसी-814 को हाईजैक करने की साजिश में भी शामिल था. 


इस विमान में लगभग 173 यात्री सवार थे और इसे हाइजैक करके पहले पाकिस्तान (Pakistan) और फिर अफ़गानिस्तान के कंधार ले जाया गया था. अगवा यात्रियों को छोड़ने के बदले भारत को तीन ख़ूंखार आतंकियों को रिहा करना पड़ा था और उसमें अब्दुल रऊफ का बड़ा भाई मसूद अजहर भी शामिल था. वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले की साज़िश रचने में भी आतंकी रऊफ़ अज़हर शामिल था. इसके अतिरिक्त वर्ष 2016 में इंडियन एयर फोर्स के पठाकोट बेस पर हुए आतंकी हमले के पीछे भी उसका हाथ बताया जाता है. 


भारत में आतंकवाद फैला रहा है चीन


यही नहीं वो कश्मीर और भारत के कई हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों को विस्तार देने की कोशिश में जुटा है और अपने आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के जरिए भारत को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है. इस काम में उसे पाकिस्तान और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी पूरा संरक्षण प्राप्त है. जिस तरह चीन (China) उसे बचाने के लिए सामने आया है, उससे ये भी स्पष्ट हो जाता है कि उसके ऊपर सिर्फ पाकिस्तान ही नही चीन का भी हाथ है.


आतंकवादियों के प्रति चीन के प्रेम का ये कोई पहला उदाहरण नहीं है. इसी वर्ष जून में भी चीन ने लश्कर ए तैयबा के डिप्टी चीफ अब्दुल रहमान मक्की को भी प्रतिबंधित सूची में डाले जाने से बचा लिया था. जबकि मक्की आतंकी गतिविधियों  के लिए धन जुटाने, आतंकियों की भर्ती करने और भारत में हमले के लिए युवाओं को भड़काने में शामिल रहा है. यही नहीं वो वर्ष 2008 में हुए मुम्बई आतंकी हमलों की साजिश रचने में भी शामिल था. 26 नवंबर 2008 को हुए उन हमलों में 166 बेगुनाह लोगों की जान चली गई थी. 


मसूद अजहर को भी बचाने की कोशिश की थी


जैश ए मोहम्मद के सरगना और दुनिया के सबसे खूंखार आतंकियों में से एक मसूद अजहर पर तो चीन का विशेष प्रेम रहा है. मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के लिए भारत ने करीब 10 साल तक प्रयास किया, लेकिन चीन की वजह से वो हर बार बचता रहा.


वर्ष 2009 में यानी 2008 में मुम्बई हमलों के ठीक बाद भारत ने पहली बार UNSC में मसूद अज़हर पर बैन लगाने और उसे ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करने के लिए प्रस्ताव रखा था. लेकिन चीन ने वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर उस प्रस्ताव को पास होने से रोक दिया था.


2016 में यानी पठानकोट में इंडियन एयरफोर्स स्टेशन में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के साथ मिलकर UNSC में दूसरी बार मसूद अजहर के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन इस बार भी चीन इस आतंकवादी के सामने ढाल बन कर खड़ा हो गया. भारत ने वर्ष 2017 में तीसरी बार मसूद अजहर को बैन करवाने के लिए प्रस्ताव पेश किया. लेकिन इस बार भी चीन (China) ने वीटो का इस्तेमाल कर प्रस्ताव को पास होने से रोक दिया.


पुलवामा हमले के बाद लग पाया था मसूद पर बैन


वर्ष 2019 में पुलवामा में CRPF के काफिले पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने मसूद अजहर के खिलाफ चौथी बार प्रस्ताव पेश किया था. इस बार अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन समेत कई देशों के दबाव की वजह से चीन को आखिरकार पीछे हटना पड़ा और 10 सालों बाद मसूद अजहर को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया जा सका.


इन तीनों आतंकवादियों को अमेरिका समेत दुनिया के कई देश पहले ही आतंकवादी घोषित कर चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद चीन इन्हे बचा रहा है. यानी चीन के नजरिए से समझें तो मसूद अज़हर, रऊफ अज़हर या फिर अब्दुर्रहमान मक्की. ये आतंकवादी कितने भी आतंकी हमले क्यों न कर लें. कितने ही लोगों की जान क्यों न ले लें. लेकिन इन्हे आतंकवादी नहीं कहना चाहिए क्योंकि इससे चीन (China) का दोस्त पाकिस्तान भी नाराज हो सकता है. हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान (Pakistan) अपने वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों या फिर कारोबारियों को नहीं इन आतंकवादियों को ही अपनी असली पूंजी मानता है.


भारत ने चीन और पाकिस्तान को लगाई लताड़


भारत ने आतंकवाद पर चीन (China) के इस दोहरे रवैये पर उसे जमकर लताड़ लगाई है. चीन की अध्यक्षता वाली संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत ने गंभीर सवाल उठाए. भारत की तरफ से कहा गया कि सबूतों के आधार पर दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादियों को ब्लैकलिस्ट करने की सूची को होल्ड पर डाला गया है. ये अच्छा नहीं है और इससे सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की प्रकिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं. 


इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रुचिरा कांबोज ने दुनिया को चेताया था कि आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए ख़तरा है और आतंकवाद पर दोहरे मापदंड नहीं अपनाए जाने चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आतंकवाद को गुड टेरेरिज्म और बैड टेरेरिज्म के चश्मे से न देखने की नसीहत दे चुके हैं. लेकिन चीन (China) के लिए इस नसीहत का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि पाकिस्तान (Pakistan) के लिए आतंकवाद उसकी स्टेट पॉलिसी है और चीन भी उसी पॉलिसी का बड़ा हिस्सा है. ऐसे में आज हमें चीन और पाकिस्तान से ये उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वो आतंकवाद के खिलाफ़ कार्रवाई करेंगे. हमें खुद ही आतंकवाद के खिलाफ मज़बूती से खड़ा होना होगा और उसे मुंहतोड़ जवाब देना होगा. 


(ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)