China Naval Base: समंदर में बढ़ी ड्रैगन की ताकत, चीन के इस कदम के सामने अमेरिका भी मलता रह गया हाथ
China Naval Base: अमेरिकी अधिकारियों और एनालिस्ट्स के मुताबिक, बड़े नौसैनिक जहाजों की मेजबानी करने वाला नौसेना बेस इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव का विस्तार करने में बड़ा कारक साबित होगा. एक अधिकारी ने कहा, `हमारा आकलन है कि इंडो-पैसिफिक चीनी नेताओं के लिए एक अहम टुकड़ा है, जो इंडो-पैसिफिक पर चीन का अधिकार मानते हैं.`
China Naval Base: चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आ रहा है. कई देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाने वाला ड्रैगन अब कंबोडिया में नौसेना बेस बना रहा है ताकि उसका इस्तेमाल पीएलए कर सके. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का यह पहला और ओवरसीज में दूसरा आउटपोस्ट है. वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक गल्फ ऑफ थाइलैंड में कंबोडिया के उत्तरी हिस्से पर स्थित रीम नेवल बेस पर चीन की सेना मौजूद रहेगी.
अमेरिकी सेना की हो सकती है निगरानी
कंबोडिया से पहले पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में चीन का एक मिलिट्री बेस है.रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के ठिकानों से थिएटर में सैन्य बलों की तैनाती के अलावा अमेरिकी सेना की खुफिया निगरानी भी की जा सकती है. रिपोर्ट में कहा गया कि ये नया नौसेना बेस चीन की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सैन्य बेस का नेटवर्क स्थापित तैयार करना चाहता है ताकि वैश्विक शक्ति बनने की उसकी तमन्ना पूरी हो सके.
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चीन का प्रभाव बढ़ाएगा ये नौसेना बेस
अमेरिकी अधिकारियों और एनालिस्ट्स के मुताबिक, बड़े नौसैनिक जहाजों की मेजबानी करने वाला नौसेना बेस इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव का विस्तार करने में बड़ा कारक साबित होगा. एक अधिकारी ने कहा, 'हमारा आकलन है कि इंडो-पैसिफिक चीनी नेताओं के लिए एक अहम टुकड़ा है, जो इंडो-पैसिफिक पर चीन का अधिकार मानते हैं.' अधिकारी ने आगे कहा, 'वे वहां चीन के उदय को एक बहुध्रुवीय दुनिया की ओर एक वैश्विक प्रवृत्ति के हिस्से के तौर पर देखते हैं जहां प्रमुख शक्तियां अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में खुद के हितों पर ज्यादा जोर देती हैं.'
साल 2019 में वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने एक सीक्रेट अग्रीमेंट पर साइन किया है, जिसमें उसकी सेना दूसरे देश के नौसेना अड्डे का इस्तेमाल कर सकती है. इस बात का पता अमेरिका और अधिकारियों को भी है. हालांकि दोनों देशों ने इस रिपोर्ट का खंडन किया था. उस वक्त कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन और चीन के रक्षा मंत्रालय ने रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया था.
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