Latest article of Global Times on India America: अपने आर्थिक और सैन्य दबदबे का इस्तेमाल कर पड़ोसी देशों की जमीन कब्जाते जा रहे चीन के सामने जब से भारत ने डटकर जवाब देना शुरू किया है, तब से वह हैरान है. अमेरिका के साथ बढ़ते भारत के रक्षा और आर्थिक संबंधों से उसे अपने लिए डर लग रहा है. उसका यह डर अब चीन को भौंपू कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स के ताजा आर्टिकल में दिखा है. 10 नवंबर को प्रकाशित हुए लेख में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि चीन, भारत को एक अहम पड़ोसी मानता है और वह उसे दुश्मन के तौर पर नहीं देखा. आर्टिकल में यह भी नसीहत दी गई है कि मतभेदों को संभालने के लिए दोनों देश वार्ता और व्यापार के जरिए आगे बढ़ सकते हैं. विवाद सुलझाने का यही सबसे सही तरीका है. 


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भारत को चीन का 'ज्ञान'


अपने आर्टिकल (Latest article of Global Times on India) में ग्लोबल टाइम्स भारत को बिन मांगा  'ज्ञान' देने से भी बाज नहीं आया. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, भारत को आखिरकार यह बात माननी होगी कि चीन एक अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है. उसकी अर्थव्यवस्था का आकार भारत से लगभग छह गुना बड़ा है. अगर भारत वास्तव में विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, तो चीन बहुत मददगार हो सकता है. आर्टिकल में कहा गया कि सीमा विवादों से जुड़ी सभी कठिनाइयों के बावजूद, चीन और भारत को आखिरकार एक-दूसरे के साथ साझेदार और पड़ोसी देशों के रूप में व्यवहार जारी रखना चाहिए, न कि अपना विवेक खोकर एक-दूसरे के साथ प्रतिद्वंद्वियों के रूप में निपटें.


'किसी का दुश्मन नहीं है चीन'


चीन (China) के मुखपत्र में लिखा गया है कि अमेरिका और भारत दोनों को यह एहसास होना चाहिए कि चीन न तो अमेरिका का दुश्मन है और न ही भारत का दुश्मन है. चीन भलाई के लिए एक शक्ति, शांति के लिए एक शक्ति और विकास में एक प्रमुख योगदानकर्ता है. ड्रैगन ने अमेरिका को सलाह दी कि अगर वह वास्तव में मजबूत आर्थिक विकास का आनंद लेना चाहता है, तो वह चीन के बिना ऐसा नहीं कर सकता. वहीं अगर भारत भी आधुनिकीकरण, शहरीकरण और औद्योगीकरण में आगे बढ़ना चाहता है हो तो उसे चीन का साथ हर हाल में लेना होगा. उसने नसीहत दी कि चीन और भारत महत्वपूर्ण पड़ोसी देश हैं. हिमालय को विभाजित नहीं बल्कि एकजुट करने का काम करना चाहिए. 


अमेरिका के साथ भारत की टू प्लस टू वार्ता (Latest article of Global Times on India America) पर बात करते हुए चीन ने कहा कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते कई मोर्चों पर लगातार मजबूत हुए हैं. अमेरिका और भारत ने एक सैन्य रसद समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका मतलब है कि अमेरिका किसी भी समय भारत में अपनी सैन्य शक्तियों को तैनात करने के लिए भारत के समुद्री बंदरगाहों, हवाई अड्डों या अन्य सैन्य सुविधाओं का उपयोग कर सकता है. अमेरिकी और भारतीय सेनाओं ने पहले से ही उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक साथ सैन्य आक्रामक रणनीति अपनाई है.


'भारत- US सहयोग से दिक्कत नहीं लेकिन'


ग्लोबल टाइम्स (Global Times) ने कहा कि अगर भारत-अमेरिका सहयोग से किसी तीसरे देश के वैध अधिकारों को खतरा नहीं है, तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. हां, अगर भारत-अमेरिका सहयोग, विशेष रूप से सैन्य और सुरक्षा पक्षों पर, चीन जैसे तीसरे देश के वैध हितों के लिए खतरा पैदा करेगा तो यह एक गंभीर चिंता का विषय होगा. ड्रैगन ने कहा कि अगर वाशिंगटन को लगता है कि वह भारत को मनाकर अपने खेमे में शामिल कर लेगा तो वह विफल हो जाएगा. 


भारत-अमेरिका की डील


बात दें कि भारत के टू प्लस टू वार्ता के लिए अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भारत (India America) आए थे. इसमें कई मुद्दों पर दोनों देशों में बातचीत हुई. वार्ता का मुख्य केंद्र चीन के खिलाफ सामरिक क्षमता को मजबूत करना था. बैठक में तय किया गया कि डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन के लिए समझौता किया जाएगा. अमेरिका के सहयोग से भारत अपने देश में ही लड़ाकू वाहन बनाएगा. इस बख्तरबंद गाड़ी का नाम 'स्ट्राइकर' होगा. इसके साथ ही अमेरिका से MQ-9B ड्रोन लेने पर बातचीत की गई.