Pakistan Army News: पाकिस्तान में दो बड़ी घटनाएं हुई हैं, जो आपको जरूर जाननी चाहिए. पहली ये कि पाकिस्तान में नए आर्मी चीफ का ऐलान हो गया है. पाकिस्तान की सूचना प्रसारण मंत्री मरियम औरंगज़ेब ने ऐलान किया कि लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर पाकिस्तान के अगले सेना प्रमुख होंगे. 


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हम आपको आसिम मुनीर की पूरी कुंडली बताएंगे. साथ ही पाकिस्तान के इस नए जनरल के भारत विरोधी एजेंडे का भी पर्दाफाश करेंगे. दूसरी बड़ी घटना है कि पाकिस्तान पूर्व जनरल कमर जावेद बाजवा का बयान. ये बयान, पाकिस्तान के सत्ता और सेना के गठजोड़ का सबसे बड़ा कबूलनामा है. पहले जानिए आसिम मुनीर का एंटी इंडिया बायोडेटा.



दूसरी ओर, जनरल बाजवा ने अपने रिटायरमेंट से लगभग एक हफ्ते पहले एक ऐसा बयान दिया है, जिसने पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी खलबली मचा दी है.दरअसल ये बयान 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से जुड़ा है. इस युद्ध में पाकिस्तान की शर्मनाक हार हुई थी और उसके दो टुकड़े हो गए थे. केवल यही नहीं, उसके 93 हज़ार सैनिकों ने ढाका में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. ये इतनी बड़ी हार थी कि पाकिस्तान में आज भी इसके बारे में बात नहीं की जाती है.


सामने आया बाजवा का झूठ


लेकिन पहली बार किसी पाकिस्तानी जनरल ने खुले तौर पर इस हार पर बात की है और सिर्फ़ बात नहीं की है. इस हार के पीछे की वजह भी बताई है. बुधवार को जनरल बाजवा एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे और वहां बतौर सेना प्रमुख अपने आखिरी भाषण में उन्होंने जो कुछ कहा वो आपको भी सुनना चाहिए. उन्होंने कहा कि 1971 की हार एक फौजी नाकामी नहीं.सियासी नाकामी थी.उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए कुछ गलत आंकड़े भी रखे.


जनरल बाजवा ने कहा, पूर्वी पाकिस्तान एक फौजी नहीं बल्कि सियासी नाकामी थी. अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि जनरल बाजवा के अनुसार अगर ये सियासी गलती थी, तो इसका गुनहगार कौन था. दरअसल लेकिन सच्चाई उनके दावों से कोसों दूर है, क्योंकि उस वक्त सत्ता में सेना ही थी.


सच्चाई ये है कि जिस समय पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांग्लादेश अस्तित्व में आया.उस वक्त पाकिस्तान में कोई चुनी हुई सरकार ही नहीं थी.वर्ष 1971 में वहां सत्ता में सेना ही काबिज थी और उस वक्त जनरल याह्या खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे. याहया ख़ान वर्ष 1966 में पाकिस्तानी सेना के कमांडर इन चीफ़ बने थे.इसके तीन वर्ष बाद यानी मार्च 1969 में वो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए और तब तक बने रहे जबक तक कि पाकिस्तान की 1971 में शर्मनाक हार नहीं हो गई. इस हार के बाद मजबूरी में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.


मानेकशॉ ने खुद बताई थी सच्चाई


बाजवा खुद मान रहे हैं कि 1971 में मिली हार की जिम्मेदारी पाकिस्तान की सेना ही थी.हो सकता है कि जनरल बाजवा की हिस्ट्री थोड़ी कमज़ोर हो.लेकिन पाकिस्तान के ज़्यादातर लोग तो ये सच जानते ही हैं. बाजवा भले ही जाते-जाते सेना के दामन पर लगा वर्षों पुराना दाग मिटाने को कोशिश कर रहे थे लेकिन उनके झूठ की परतें एक-एक कर खुलती गईं. अब हम आपको उनके दूसरे झूठ की सच्चाई भी समझा देते हैं.


बाजवा ने कहा कि 93 हज़ार पाक फौज़ियों के सरेंडर की बात तो पूरी तरह झूठी है. क्योंकि सरेंडर तो सिर्फ़ 34 हज़ार सैनिकों का हुआ था, वो भी ढाई लाख हिंदुस्तानी फौजियों के सामने. लेकिन जनरल बाजवा शायद भूल गए कि आंकड़े बदले जा सकते हैं, इतिहास नहीं. खुद फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशा ने कहा था कि भारतीय सेना के सामने उस दिन 34,000 सैनिकों का नहीं, बल्कि 93,000 लोगों का ही सरेंडर हुआ था.


जनरल बाजवा को गम इस बात का भी है कि हिंदुस्तान की जनता तो अपनी सेना पर जान छिड़कती है.लेकिन पाकिस्तान में उसे मिलती हैं गालियां. दरअसल वो जानते हैं कि इसकी वजह भी पाकिस्तान की सेना ही है.अगर सेना सियासत छोड़ दे और अपने काम से काम रखे तो शायद पाकिस्तान का भी कुछ भला हो जाए और सेना का भी.


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