S Radhakrishnan met Mao Zedong: दक्षिण भारत के एक गांव में जन्मे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी थे. उन्होंने फिलॉसिफी में एमए किया. फिर बाद में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त हो गए. डॉ.राधाकृष्णन ने अपनी लेखनी और भाषणों से पूरी दुनिया को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया. 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए. वो एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे. वे जीवनभर अपने आपको शिक्षक मानते रहे. यही वजह थी कि जब वो उप राष्ट्रपति बनने के बाद चीन गए तो वहां के तानाशाह को भी उन्होंने सीख देने में जरा भी देर नहीं लगाई.


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शिक्षा के क्षेत्र में लगातार पांच बार नोबल प्राइज के लिए नॉमिनेशन


राधाकृष्णन के पश्चिमी दर्शन के विशाल ज्ञान से कई पश्चिमी दार्शनिक हैरान थे. राधाकृष्णन ने अपने भाषणों में भारतीय दर्शन के बारे में भी बात की. साल 1926 में राधाकृष्णन की किताब, 'हिंदू व्यू ऑफ लाइफ' ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई. करीब दो साल बाद उनकी दूसरी किताब 'एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ' 1929 में आई. इन किताबों ने पूरी दुनिया में उनके ज्ञान की धाक जमा दी. यही वजह थी कि 1931 से 1935 तक शिक्षा के क्षेत्र में कई बार उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेशन मिला. वो अंग्रेजी के प्रकांड पंडित थे. ये उनकी काबिलियत थी जो  महज 20 साल की उम्र में, उन्हें मद्रास यूनिवर्सिटी में शिक्षक के रूप में पहली नौकरी मिली. 1929 में वो मैनचेस्टर कॉलेज के प्रोफेसर बने फिर 1931 में भारत लौटे. जहां उन्हें आंध्र विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया. 


माओत्से तुंग से मुलाकात


सितंबर 1957 में, राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में तीन सप्ताह के विदेश दौरे पर गए थे. इस सफर में उनकी चीन की यात्रा भी शामिल थी. जहां डॉ. राधाकृष्णन ने चीनी तानाशाह माओत्से तुंग से मुलाकात की. ये राधाकृष्णन का जलवा था कि वो चीन में माओत्से तुंग के अधिकारिक आवास पर पहुंचे तो माओ खुद भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति की अगवानी के लिए बाहर निकले थे. 


थपथपा दिया था माओ का गाल


माओ से हाथ मिलाने के बाद राधाकृष्णन ने माओ के बाएं गाल पर थपकी दी. चीनी प्रीमियर माओ ने सोचा भी नहीं था कि कोई शिक्षक उनके साथ  ऐसा कर सकता है, हालांकि इससे पहले कि माओ कुछ कहते, डॉ. राधाकृष्णन ने कहा, 'सभापति महोदय, चौंकिए नहीं, मैंने स्टालिन और पोप के साथ भी ऐसा ही किया था.' ये सुनते ही माओ चुप हो गए. इसके बाद साथ में खाना खाते हुए माओ ने शरारत में राधाकृष्णन की प्लेट पर अपनी प्लेट में से उठाकर एक चॉपस्टिक्स रख दी. माओ नहीं जानते थे कि भारतीय नेता वेजिटेरियन हैं. इस बीच, राधाकृष्णन ने भी बुरा नहीं माना और विनम्रता से भोजन समाप्त करते हुए किसी बात का बतंगड़ नहीं बनने दिया.


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