जिस काम को 6 प्रधानमंत्री नहीं कर सके, उसे अटल बिहारी वाजपेयी ने कर दिखाया...
भारतीय राजनीति में वह एक ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने गठजोड़ की राजनीति को तमाम विरोधाभासों के बावजूद धरातल पर कामयाब बना दिया. देश में जब गठबंधन की सरकारें हकीकत बनीं, उस समय उन्होंने ही देश को पहली बार कई दलों की सरकार चलाने का पहला सफल फॉर्मूला दिया था.
नई दिल्ली : देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाषण शैली के लाखों लोग दीवाने हैं. यही कारण है कि दूसरी पार्टियों में भी उनके वैसे ही समर्थक हैं, जैसे उनकी पार्टी में हैं. कहना होगा कि वह लोकप्रियता के मामले में पार्टी की हदों से दूर हैं. भारतीय राजनीति में वह एक ऐसे शख्स के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने गठजोड़ की राजनीति को तमाम विरोधाभासों के बावजूद धरातल पर कामयाब बना दिया. देश में जब गठबंधन की सरकारें हकीकत बन गई, उस समय उन्होंने ही देश को पहली बार गठबंधन की सरकार चलाने का पहला सफल फॉर्मूला दिया था.
अटल बिहारी वाजपेयी ही थे, जिन्होंने कहा था कि हम सरकार के लिए जोड़ तोड़ की राजनीति नहीं करेंगे. उनकी 13 दिन की सरकार गिर गई थी. इसके बाद वह 13 महीने के लिए पीएम बने. एक वोट से फिर से उनकी सरकार गिरी. इसके बाद फिर चुनाव हुए. वाजपेयी फिर से पीएम बने. इस बार उन्होंने करीब करीब 5 साल सरकार चला कर दिखा दी. एक दक्षिणपंथी पार्टी के मुखिया ने देश में सभी कौनों की पार्टियों को मिलाकर सरकार चलाने का फॉर्मूला देश को दिया. इससे पहले देश में छह बार ऐसे प्रयास हो चुके थे, जब गठबंधन की सरकारें बनीं, लेकिन कोई भी उसे पूरा नहीं कर पाया. पहली बार देश में गठबंधन की गांठों से पार पाते हुए वाजपेयी ने पूरे पांच साल सरकार चलाई. ये वह समय था, जब कहा जा रहा था कि देश में अब गठबंधन ही सत्य है. सरकारें अब गठबंधन की ही बनेंगी. लेकिन उन सरकारों को चला कोई नहीं पाया. ये काम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने तीसरे कार्यकाल में पूरी की. उनके बाद मनमोहन सिंह ने दस साल गठबंधन की सरकार चलाई.
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आइए नजर डालते हैं कि देश में वाजपेयी से पहले कब कब गठबंधन सरकारों के प्रयास विफल रहे...
1. मोरारजी देसाई : देश में इमरजेंसी के बाद चुनाव हुए. जाहिर है कांग्रेस और इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर थी. इन चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई. जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने. कहा जाता है कि वह पहली सरकार थी, जिसमें महंगाई कम हुई थी. मोरारजी देसाई 24 मार्च 1977 को प्रधानमंत्री बने. हालांकि वह इस सरकार को चला नहीं पाए. पार्टी में उठे असंतोष और बिखराव के कारण 28 जुलाई 1979 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
2. चरण सिंह : कांग्रेस के सहयोग से चौधरी चरण सिंह देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने. लेकिन वह सबसे कम समय तक पीएम रहे. 24 हफ्तों में ही उन्हें अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी, कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ले लिया. वह 28 जुलाई 1979 को पीएम बने और 14 जनवरी 1980 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
3. वीपी सिंह : गठबंधन सरकार बनाने का तीसरा प्रयास वीपी सिंह के रूप में हुआ. राजीव गांधी को हराकर पीएम वीपी सिंह बने. इससे पहले वह राजीव गांधी सरकार में मंत्री रह चुके थे. लेकिन बाद में कांग्रेस से अलग होकर जनता दल बनाया और 2 दिसंबर 1989 को देश के सातवें पीएम बने. करीब एक साल तक वह पीएम रहे. वह 10 नवंबर 1990 तक पीएम रहे. उनकी सरकार को भाजपा और लेफ्ट पार्टियों ने समर्थन दिया. लेकिन वह भी सरकार चला नहीं पाए.
4. चंद्रशेखर : 23 महीने वीपी सिंह की सरकार चलने के बाद चंद्रशेखर देश के 8वें पीएम बने. जनता दल में टूट हो गई. इसके बाद कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर ने पीएम पद की शपथ ली. लेकिन वह भी गठबंधन सरकार के सिर्फ 7 माह पीएम रह सके. कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गई. चरण सिंह के बाद वह दूसरे सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहे.
इसके बाद चुनाव हुए. इसी दौरान राजीव गांधी की हत्या हो गई. इसके बाद नरसिंहा राव पीएम बने. उनके पांच साल पूरे करने के बाद 1996 में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम पद की शपथ ली, लेकिन 13 दिन ही पीएम रह सके.
5. एचडी देवेगौड़ा : इसके बाद 1 जून 1996 को कांग्रेस के सहयोग से संयुक्त मोर्चा के एचडी देवेगौड़ा पीएम बने. लेकिन वह भी सिर्फ 10 महीने की पीएम रहे सके. कांग्रेस ने फिर से समर्थन वापस लिया और 21 अप्रैल 1997 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
6. इंद्रकुमार गुजराल : एचडी देवेगौड़ा के बाद फिर से मध्यावधि चुनाव का खतरा मंडराने लगा. इसके बाद उस सरकार में विदेश मंत्री रहे इंद्रकुमार गुजराल का नाम पीएम पद के लिए आगे बढ़ाया गया. तब कांग्रेस ने फिर से बाहर से सरकार को समर्थन दिया. 21 अप्रैल 1997 को गुजराल देश के 12वें प्रधानमंत्री बने. लेकिन 11 महीने के बाद वह 19 मार्च 1998 को उन्होंने भी अपना इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति केआर ने उनका इस्तीफा स्वीकार तो कर लिया, लेकिन उन्हें पद पर बने रहने के लिए कहा.
1998 में हुए चुनाव के बाद वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. लेकिन वह अपनी इस सरकार को 13 महीने ही चला पाए. फिर से चुनाव हुए तो अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार पीएम बने. इस बार उन्होंने करीब 5 साल सफलतापूर्वक सरकार चलाई.