Patna: एक तरह से देखें तो बांका बिहार का आखिरी और झारखंड की सीमा से लगता हुआ जिला है. भले ही आर्थिक तौर पर बांका बिहार के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शामिल हो, लेकिन राजनीतिक तौर पर बांका दशकों पहले से काफी एक्टिव रहा है.


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बांका की राजनीति में मधु लिमये के अलावा दिग्विजय सिंह एक बड़ा नाम हैं. दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) को बांका के लोग प्यार से 'दादा' कहा करते थे. दिग्विजय सिंह मूल रूप से बांका के ही बगल के जमुई जिले के गिद्धौर के रहने वाले थे. भले ही दिग्विजय जमुई जिले से हों, लेकिन उन्होंने बांका को अपना कर्मस्थली बना लिया था. 


समाजवादी विचारधारा वाले दिग्विजय सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर व जार्ज फर्नाडीस जैसे नेताओं के साथ व सानिध्य में रहकर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी. दरअसल, 1994 में समता पार्टी को नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ-साथ दिग्विजय, जार्ज व शरद यादव जैसे नेताओं ने मिलकर बनाया था. लेकिन 2009 लोकसभा चुनाव में जदयू ने दिग्विजय सिंह को राज्यसभा सदस्य होने का हवाला देकर लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देने का फैसला किया. 


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पार्टी के इस फैसले से दिग्विजय इतना गुस्सा हुए कि अपनी बनाए पार्टी से बगावत कर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. इस चुनाव में दिग्विजय ने नीतीश कुमार को खुली चुनौती दे दी कि उनके पार्टी के उम्मीदवार में दम हैं तो चुनाव हराकर दिखाएं.  


इस चुनाव के दौरान दिग्विजय सिंह और नीतीश कुमार को एक-दूसरे के सामने खड़े देख हर कोई हैरान था. इस चुनाव में दिग्विजय को नगाड़ा छाप चिन्ह मिला. फिर क्या था मंच पर दिग्विजय के चढ़ते ही लोग उन्हें 'दादा दादा' कहकर पुकारने लगे. लोगों में अपने प्रति इस प्रेम को देखकर सिंह भावुक हो गए. 


इसके बाद जब उन्होंने अपना भाषण देना शुरू कर दिया तो भीड़ उत्साह से भर गया. फिर तेवर में आकर सिंह बोले, ‘ये नगाड़ा विद्रोह का नगाड़ा है. हमें इसे इतना बजाना है कि नीतीश कुमार की नींद हराम हो जाए.’ दरअसल, दिग्विजय सिंह ने देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से अपनी पढ़ाई की थी. इसके बाद वह जेएनयू में ही प्रोफेसर भी बन गए थे. 


राजनीति में आने के बाद से ही वह बांका में बेहद सक्रिय हो गए थे. 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले दिग्विजय भारत सरकार में विदेश राज्य मंत्री व रेलवे राज्य मंत्री जैसे अहम पदों पर रह चुके थे. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह बिहार के गिने-चुने प्रमुख नेताओं में शामिल थे.


2009 के चुनाव में बगावत कर एक तरह से दिग्विजय ने सीधे नीतीश कुमार को चुनौती दी थी. इस चुनाव में नीतीश कुमार ने पूरी ताकत दिग्विजय सिंह को हराने के लिए लगा दिया. लेकिन आखिरकार जीत सिंह की हुई. लाखों वोट से चुनाव जीतकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर दिग्विजय सिंह सदन पहुंचे.