Jaimala Ceremony Importance: हिंदू धर्म में चली आ रही कई परंपराओं और रस्मों से कोई अनजान नहीं है. इनका आज भी लोग शादी-विवाह या किसी धारमिक काम के समय पालन करते हैं. हालांकि बदलते समय के साथ आज इनमें से कुछ रिवाजों में बहुत सी चीजें खत्म हो गई हैं. आपने देखा होगा कि हिंदू समाज में होने वाली शादियां सबसे किठन तरीकों में से एक होती हैं. 


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आपको बता दें, लड़का-लड़की की शादी में सबसे पहले लड़के वाले बारात लेकर लड़की के घर आते हैं. इसके बाद लड़की की मां  बारातियों का स्वागत करके और दूल्हे की आरती उतारकर अंदर बुलाती है. इसके बार द्वार पूजी होती है. फिर बारी आती है, लड़का-लड़की के वरमाला रस्म की. इसे जयमाला के नाम से भी जाना जाता है. वेदों में भी इसका वर्णन है. 


सभी ये जानते हैं कि हिंदू धर्म के अनुसार, शादी केवल लड़का-लड़की के बीच नहीं होती है. यहां दो परिवारो का मिलन माना जाता है. इसलिए कई हिन्दू रस्म के साथ उन्हें पूरा किया जाता है. इन्ही रस्मों में से एक है वरमाला पहनाने की रस्म. इसकी शुरुआत सबसे पहले माता पार्वती और भगवान शिव की शादी से हुई थी. फिर रमायण और महाभारत के समय में इस रिति को होते देखा गया. लेकिन क्या आप जानते हैं दूल्हा-दुल्हन एक दूसर को वरमाला क्यों पहनाते हैं? आज हम आपको यहां बताएंगे जयमाल की रस्म के बारे में सबकुछ. आइये जानें...   


क्यों होती है वरमाला की रस्म
इतिहास की बात करें तो वरमाला की रस्म इसलिए एक प्रथा बन गई क्योंकि शंकर-पार्वती और भगवान श्री राम-सीता की शादी में भी यही हुआ था. इसे स्वयंवर का नाम भी दिया गया था. इस रस्म को पूरा करके दूल्हा-दुल्हन शादी के सात जन्मों के बंधन को निबाने का वादा भी करते हैं. इसे शादी का पहला कदम कहा जा सकता है. दूल्हा-दुल्हन के एक-दूसरे को वरमाला पहनाने के पीछे ये वजह होती है कि अब दोनों जीवनभर के लिए एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं.


दूल्हन पहले क्यों पहनाती है वरमाला
पहले के समय में भी स्वयंवर रचाया जाता था. इसमें लड़की अपने मन पसंद के वर को चुनकर माला पहनाती थी. क्योंकि स्त्रियों को शुरू से अपना वर चुनने का अधिकार रहा है. इसलिए आज भी यही रिती चल आ रही है. इसमें पहले दुल्हन दूल्हे के गले में माला डालती है.