Bhaum Pradosh Vrat 2024 Shubh Muhurat: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि जो व्यक्ति शिव जी की पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और जीवन में सुख-शांति आती है. ज्येष्ठ महीने का पहला प्रदोष व्रत आज यानी 4 जून को रखा जा रहा है. ये व्रत मंगलवार के दिन पड़ रहा है इस कारण ये भौम प्रदोष व्रत कहलाएगा.


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भौम प्रदोष व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की शुरुआत आज यानी ​04 जून को रात 12 बजकर 18 मिनट पर हो गई है. वहीं, इसका समापन 04 जून को रात 10 बजकर 01 मिनट पर होगा. प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. इस कारण प्रदोष व्रत आज यानी 4 जून को रखा जा रहा है. पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 7 बजकर 16 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. 



करें ये काम
प्रदोष काल में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव स्तुति का पाठ कर सकते हैं. शिव स्तुति शिव के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मंत्रों में से एक मानी जाती है. इससे भगवान शिव व्यक्ति को मनचाहा फल देते हैं और जीवन की समस्याएं हर लेते हैं.



यहां पढ़ें शिव स्तुति


शिव शम्भुं स्तुति


नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं


नमामि सर्वज्ञमपारभावम्।


नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं


नमामि शर्वं शिरसा नमामि॥१॥


नमामि देवं परमव्ययंतं


उमापतिं लोकगुरुं नमामि।


नमामि दारिद्रविदारणं तं


नमामि रोगापहरं नमामि॥२॥


नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं


नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।


नमामि विश्वस्थितिकारणं तं


नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥


नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं


नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।


नमामि चिद्रूपममेयभावं


त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥


नमामि कारुण्यकरं भवस्या


भयंकरं वापि सदा नमामि ।


नमामि दातारमभीप्सितानां


नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥


नमामि वेदत्रयलोचनं तं


नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।


नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं


नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥


नमामि विश्वस्य हिते रतं तं


नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।


यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता


नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥


यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं


तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।


आराधितो यश्च ददाति सर्वं


नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥


नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं


उमापतिं तं विजयं नमामि ।


नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं


पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥


नमामि देवं भवदुःखशोक


विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।


नमामि गंगाधरमीशमीड्यं


उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥


नमाम्यजादीशपुरन्दरादि


सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।


नमामि देवीमुखवादनानां


ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥


पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः


विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।


अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः


सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥


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'रुद्राष्टकम'


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं ।


विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥


निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं ।


चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥


निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं ।


गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।


करालं महाकालकालं कृपालं ।


गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥


तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं ।


मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥


स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा ।


लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥


चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं ।


प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥


मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।


प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥


प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं ।


अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥


त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं ।


भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥


कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी ।


सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥


चिदानन्दसंदोह मोहापहारी ।


प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥


न यावद् उमानाथपादारविन्दं ।


भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।


न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं ।


प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजां ।


नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥


जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं ।


प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।


ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)