Brahma ji Manas Son: सप्तऋषि मंडल सात ऋषियों का समूह है, जिसमें ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक हैं मरीचि. इन्हीं सप्त ऋषियों की तपस्या, शक्ति और ज्ञान के प्रभाव से संसार में सुख और शांति है. इन्हें द्वितीय ब्रह्मा भी कहा जाता है, क्योंकि वह हमेशा ब्रह्मा जी की भांति सृष्टि की रचना के कार्य में लगे रहते हैं.


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पुराणों में इनकी कई पत्नियों का वर्णन आता है, जिनमें से एक तो दक्ष प्रजा पिता की पुत्र संभूति हैं और दूसरी का नाम है धर्मव्रता जो धर्म नामक ब्राह्मण की कन्या हैं. इन्हें ऋषि मरीचि को पति के रूप में पाने के लिए अपने पिता की आज्ञा से कठोर तप किया. जैसे ही महर्षि मरीच को इस बात की जानकारी हुई कि वह उन्हें पाने के लिए तपस्या में लीन हैं तो मरीचि ने स्वयं ही उनके पिता से पत्नी के रूप में उन्हें मांग लिया. उनके कश्यप और मनु जैसे कई पुत्र हुए, जिनकी वंश परम्परा से यह सारा जगत संपूर्ण, सुरक्षित और संचरित हो रहा है. ब्रह्मा जी ने उन्हें पद्मपुराण के कुछ अंश सुनाएं. महर्षि मरीचि ने ही भृगु ऋषि को दंड नीति की शिक्षा दी और स्वयं भी कई बार देवराज इंद्र की सभा में उपस्थित होकर दंडनीति का मंत्रित्व कर चुके हैं. 


सुमेरू पर्वत पर निवास करने वाले महर्षि मरीचि को महाभारत काल में चित्र शिखंडी भी कहा गया. ब्रह्मा जी ने स्वयं ही अपने मुख से अपने मानस पुत्र को 10 हजार श्लोकों वाले ब्रह्मपुराण को सबसे पहले सुनाया, जिसे इन्हें दान के रूप में याद कर लिया. बाद में महर्षि मरीचि ने ब्रह्मपुराण अन्य लोगों को सुनाकर इस लोक का कल्याण किया. वेदों और पुराणों में भी महर्षि मरीचि के चरित्र के बारे में कई स्थानों पर वर्णन है. 


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