Chhath Puja importance: पंचदिवसीय दीपोत्सव के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व का महत्व बहुत ही अधिक है. इस पर्व में लोग अस्त और फिर उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस बार छठ पूजा का मुख्य पर्व 18 नवंबर को प्रारंभ होगा और अगले दिन यानी 19 नवंबर को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पूर्ण होगा. हालांकि पर्व का प्रारंभ तो नदी अथवा नहर किनारे वेदी बनाने के साथ ही चतुर्थी से हो जाता है. मान्यता है कि इस व्रत का  विधि विधान से पालन करने वालों के जीवन के सभी दुख दर्द दूर हो जाते हैं तथा उन्हें मान सम्मान प्राप्त होने के साथ ही धन वैभव में वृद्धि होती है.


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प्रचलन में हैं कई तरह की कथाएं


1. छठ पूजा को लेकर अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की. श्री राम और सीता ने व्रत रखने के बाद सप्तमी को सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्ध्य देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया था. 


2. एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व पर अर्घ्य देने की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर यह परंपरा शुरु की थी. कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करने का उल्लेख है. वह अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए सूर्य की पूजा करती थी. 


3. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवद के कोई संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी. उन्हें पुत्र तो हुआ, परन्तु वह जीवित नहीं रहा. प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए. उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी  कहलाती हूं. राजा ने उनके बताए अनुसार देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें संतान की प्राप्ति हुई. बाद में षष्ठी को ही छठी मैया या छठ मैया कहा जाने लगा.
   


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)