Chhathi Maiya Story: दिवाली के समापन के साथ ही महापर्व छठ की तैयारियों की शुरुआत हो जाती है. चार दिवासीय लोक आस्था के इस महापर्व के  लिए लोग दूर-दूर से अपने गांव चले आते हैं. उनकी छठी मैया में गहरी आस्था होती है. हर साल लाखों, करोड़ों की तादाद में लोग छठी मैया की पूजा करने के लिए अपने घर दौड़े चले आते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि कौन हैं छठी मैया और क्या है उनका महत्व.


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ब्रह्मा जी की मानस पुत्री


पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं. ये सूर्य देव की बहन भी मानी जाती हैं. छठ के दौरान इनकी पूजा की जाती है, इस वजह से इस पर्व का नाम छठ पड़ा. एक बार ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के लिए खुद को दो भागों में बांटा. दाएं भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया.


प्रकृति का अंश


ऐसी मान्यता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना कहा जाता है. प्रकृति का छठ अंश होने की वजह से देवी का एक नाम षष्ठी भी है, आम बोलचाल की भाषा में छठी मैया के नाम से जाना जाता है.


मां की महिमा


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं हुई, जिसके बाद महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को यत्र आहुति के लिए बने प्रसाद को खाने के लिए कहा. प्रसाद ग्रहण करने के बाद प्रियंवद की पत्नी मालिनी को संतान की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था.


शुरू हुई प्रथा


प्रियंवद मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और वहां पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे. ऐसी मान्यता है कि उसी समय ब्रह्माजी की मानस पुत्री षष्ठी माता अवतरित हुईं. उन्होंने कहा कि उनकी पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होगी. इसके बाद राजा ने मां के कहे अनुसार ही किया और उनको पुत्र की प्राप्ति हुई. राजा ने जब यह पूजा की, तब कार्तिक शुक्ल षष्ठी का दिन था, तब से यह प्रथा चली आ रही है. 


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)