Karni Mata Mandir Bikaner: करणी देवी मंदिर और काबा यानी सैकड़ों चूहों के रहस्य के बारे में अब आपको जो बताने जा रहे हैं, वो आपने शायद पहले कभी नहीं सुना होगा. दरअसल करणी देवी मंदिर में चूहों को काबा कहा जाता है. काबा यानी बच्चा. मान्यताओं के मुताबिक करणी देवी की संतान.करणी देवी मंदिर और काबा यानी सैकड़ों चूहों के रहस्य के बारे में अब आपको जो बताने जा रहे हैं, वो आपने शायद पहले कभी नहीं सुना होगा. दरअसल करणी देवी मंदिर में चूहों को काबा कहा जाता है. काबा यानी बच्चा. मान्यताओं के मुताबिक करणी देवी की संतान. लेकिन क्या है देवी दुर्गा का अवतार मानी जाने वाली मां करणी और मंदिर में रहने वाले काबों का कनेक्शन ? इस स्पेशल रिपोर्ट के जरिए आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि ये काबे, तो दिखने में आम चूहों जैसे ही है, लेकिन गौर से देखने पर ऐसा लगता नहीं है.


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पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में जीवन की शक्ति मानी जाती हैं देवी करणी. इसी आस्था के साथ यहां पूरे साल लोग आते हैं, लेकिन चूहों की चहल-पहल यहां सबका ध्यान खींचती है. चूहा तो हम इन्हें पहचान की सुविधा के लिए कह रहे हैं, वर्ना इन्हें तो यहां काबा, यानी देवी करणी की संतान का दर्जा प्राप्त है. इनकी महत्ता इतनी है, कि मंदिर मे जगह जगह साइन बोर्ड लगाकर हिदायत दी गई है, काबों का ध्यान रखते हुए आप पांव घसीटते हुए चलें. आप अंदाजा लगा सकते हैं, मंदिर में रहने वाले काबे, यानी कि चूहे कितने पवित्र माने जाते हैं यहां. यहां इनकी तादाद एक दो नहीं, बल्कि 2500 के करीब मानी जाती है.



अब सोचिए, इतनी तादाद में चूहे 100 बीघों में लगी फसल को भी बर्बाद कर सकते हैं, लेकिन इस छोटे से मंदिर के प्रांगण में ये प्रसाद वाले भोग, दूध और तय जगह पर पानी के सिवा कुछ नहीं खाते.


चमत्कार!


यहां तक, कि आने जाने वाले लोगों के पास से गुजरकर भी कभी ना तो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं और ना ही डरते हैं. चूहों की इतनी बड़ी तादाद, फिर भी पूरे मंदिर में इतनी व्यस्था, यहां आने वाले श्रद्धालु इसे देवी का चमत्कार ही मानते हैं. हैरानी ये भी है कि


चूहों का जूठा भोग कभी नुकसान नहीं करता.
चूहों का जूठा दूध, पानी, पंचामृत माना जाता है.
मंदिर के चूहे कभी बीमार नहीं पड़ते.
चूहों की वजह से यहां कभी प्लेग नहीं हुआ.
गुजरात से प्लेग पीड़ित चूहे यहां आकर ठीक हो गए.


करणी मंदिर में चूहों से जुड़ा ये चमत्कार साल 1994 का माना जाता है, जब गुजरात मे प्लेग ने एक महामारी का रूप ले लिया था. इसका असर राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों तक पहुंचा था. इस दौरान सैकड़ों चूहे बीकानेर के इस मंदिर तक आ गए थे.


लेकिन मंदिर प्रशासन का कहना है कि प्लेग ग्रसित चूहों से यहां बीमारी फैलने की बजाय, जो चूहे यहां आए थे, वो भी ठीक हो गए. करणी माता मंदिर के पुजारी गजेन्द्र दीपावत ने बताया कि सूरत में चूहों से प्लेग फैला था, उसके अलावा जो बीमार थे, काबों का जूठा जल चरणामृत की तरह पीने से ठीक हो गए. इस प्रसाद से कोई अस्वस्थ नहीं होता. प्लैग तक नहीं होता. 


सफेद चूहा दिखना शुभ


गजेन्द्र दीपावत करणी मंदिर के युवा पुजारी है. लेकिन चूहों से जुड़ी कई मान्यताएं इन्होंने पुरखों से सुनी हैं. इनके मुताबिक मंदिर में दो तरह के चूहे हैं.एक कालू और भूरे, और दूसरे सफेद. काले चूहे यहां हर तरफ दिखाई देते हैं, लेकिन सफेद चूहे यहां बेहद दुर्लभ होते हैं. इनका दिखना श्रद्धालुओं के बीच हद शुभ माना जाता है.


रंग के साथ चूहों की एक और भी कैटिगरी है. वो है मंदिर में इनका इलाका. मंदिर परिसर के बाहर जिन्हें जगह मिली है, चूहों के अच्छे कर्म हो तो परिसर में रहते हैं, इस तरह की मान्ता है. यानी जैसा कर्म वैसी जगह अच्छा करने पर परिसर के अंदर जगह. जो बाहर वाला काबा है, वो अंदर नहीं जाता, अंदर वाले बाहर नहीं जाते.


ये अपने आप में हैरान करने वाली बात है, कि चूहों का कैसा कर्म, और कर्म के आधार पर देवी मां से इनकी दूरी कैसे तय की जाती है. इस सवाल पर देवी मां का कनेक्शन जुड़ता है यमलोक से. यहां कहा जाता है कि मां करणी के वंशज की मौत होगी, तो यमलोक नहीं जाएंगे. यही रहेंगे, इसकी भी एक कैटिगरी है. अच्छे कर्म की वजह से चूहे अंदर या बाहर रहेंगे.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)