नई दिल्ली: वैसे तो प्रमुख कालाष्टमी (Kalashtami) का व्रत साल में एक बार कालभैरव जयंती (Kalbhairav Jayanti) के दिन किया जाता है लेकिन कालभैरव के भक्त हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाते हैं. इस दिन कालभैरव (Kalbhirav) की पूजा होती है जिन्हें भगवान शिव (Lord Shiv) के रौद्र रूप के तौर पर माना जाता है. इस दिन को भैरव अष्टमी (Bhairav Ashtami) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भक्तजन कालभैरव की पूजा करने के साथ ही व्रत भी रखते हैं. इस दिन कालभैरव के साथ ही मां दुर्गा (Goddess Durga) का भी दर्शन और पूजन विशेष फलदायी माना जाता है.


कालाष्टमी के व्रत से मिट जाते हैं कष्ट


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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कालाष्टमी का व्रत पूरी श्रद्धा और विधि विधान के साथ करने वाले व्यक्ति के सभी कष्ट मिट जाते हैं. इसका कारण ये है कि कालभैरव की पूजा से भगवान शिव का भी आशीर्वाद (Blessings) प्राप्त होता है क्योंकि कालभैरव शिव का ही रूप हैं. साथ ही देवी काली (Goddess Kali) की भी पूजा की जाती है जो मां दुर्गा का रूप हैं. ऐसे में कालाष्टमी का व्रत और पूजन करने से घर में सुख शांति बनी रहती है.


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किस दिन है कालाष्टमी?


मासिक कालाष्टमी का व्रत इस बार माघ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी 4 फरवरी गुरुवार को मनाया जाएगा.
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 4 फरवरी रात 12 बजकर 7 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 5 फरवरी रात 10 बजकर 7 मिनट पर


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पूजा की विधि


- धर्मग्रंथों के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए.


- इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनकर रात्रि जागरण करना चाहिए.


- व्रत करने वाले भक्तजन को फलाहार का सेवन करना चाहिए.


- इस दिन भैरव चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए.


- कालभैरव की सवारी कुत्ता है इसलिए इस दिन कुत्ते को भोजन करवाने का विशेष महत्व है.


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