Ramayan: राम सहित चारों भाइयों का विवाह होने के बाद गुरु वशिष्ठ से मंत्रणा कर अवध के महाराजा दशरथ ने राज्याभिषेक की तैयारियां शुरु कर दीं तो देवताओं को लगा कि अब तो श्री राम राजकाज में व्यस्त हो जाएंगे. रावण सहित अन्य राक्षसों के संहार के जिस उद्देश्य से उन्होंने मनुष्य के रूप में अवतार लिया है वह पूरा ही नहीं होगा. बस देवता तुरंत माता सरस्वती के पास पहुंचे और उन्हें पूरा बात बता कर सहयोग करने की प्रार्थना की.


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माता सरस्वती ने बनाई यह योजना


बुद्धि की देवी माता सरस्वती ने देवताओं की बात सुनने के बाद मदद का आश्वासन तो दे दिया लेकिन वह विचार करने लगीं कि श्री राम को किस तरह से राजा बनने से रोककर उस मार्ग पर भेजा जाए, जिससे रावण जैसे आततायी का वध हो सके. उन्हें इस काम के लिए अयोध्या में मंथरा समझ में आयी. वो महारानी कैकेयी की मुंह लगी दासी थी. देवी सरस्वती ने देवताओं के लिए कम अक्ल वाली कैकेयी की दासी मंथरा की बुद्धि फेर दी. बुद्धि भ्रष्ट होने के बाद मंथरा ने रानी कैकेयी से कहा कि तुम्हारा सगा पुत्र भरत तो ननिहाल में है और राजा ने उसे चालाकी से वहां भेजा है. फिर चुपके से रामचंद्र को राजगद्दी पर बैठा दिया जाएगा. 


 


दासी बनने के डर से भेजा श्री रामचंद्र को वनवास


राम की मां कौसल्या तुमसे जलती है क्योंकि राजा का तुम पर विशेष प्रेम है. इस राज्याभिषेक के बाद तुम्हें रामचंद्र की मां नहीं बल्कि दासी बनकर रहना पड़ेगा. जब कैकेयी ने कहा कि वह जीते जी किसी की दासी नहीं बनेंगी तो मंथरा ने उन्हें एक उपाय बताया. 


 


महाराजा दशरथ का दर्द और रघुकुल की रीत


वह बोली कि तुम राजा से वो दोनों वरदान मांग लो, जो तुमने अब तक नहीं मांगे हैं. मंथरा को अपना सबसे बड़ा हितैषी मानते हुए, कैकेयी कोपभवन में चली गई और राजा दशरथ जब उन्हें मनाने गए तो कैकेयी ने दो वरदान मांग लिए. पहला कि भरत को राजा बनाओ और दूसरा राम को वनवास भेजो. राजा वरदान देने के लिए विवश थे क्योंकि “रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाए पर वचन न जाई”. 


 


ऐसे पूरी हुई देवी-देवताओं की इच्छा


दशरथ ने कहा कि भरत को राजा बनाने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि राम को राज्य का लोभ नहीं है पर राम के वनवास वाला वरदान मत मांगो, नहीं तो मैं जी नहीं पाऊंगा लेकिन कैकेयी अपनी ज़िद पर अड़ी रही क्योंकि देवी-देवताओं की यही इच्छा थी.